Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने आज बिहार में जातिगत जनगणना (caste census in Bihar) कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। यानि बिहार सरकार के फैसले को सही माना गया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने और कानून के अनुसार उचित कदम उठाने की अनुमति दी है। मालूम हो कि बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने बिहार सरकार के जातीय जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इस याचिका (petition) में कहा गया था कि जातीय जनगणना का नोटिफिकेशन मूल भावना के अनुसार नही है और यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है। याचिका में जातीय जनगणना की अधिसूचना को खारिज करने की मांग की गई थी। अखिलेश कुमार के अलावा हिंदू सेना नामक संगठन ने भी जातीय जनगणना की अधिसूचना पर रोक की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि जातिगत जनगणना कराकर बिहार सरकार देश की एकता और अखंडता को खत्म करना चाहती है। बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने बीती 6 जून को जातीय जनगणना की अधिसूचना जारी कर दी थी।
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Supreme Court: दरअसल, बिहार में 7 जनवरी से जाति आधारित सर्वे शुरू हो चुका है। राज्य सरकार ने इस सर्वे को कराने की जिम्मेदारी जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट को सौंपी गई है। इसके तहत सरकार मोबाइल फोन एप के जरिए हर परिवार का डाटा डिजिटली एकत्र कर रही है। यह जातीय सर्वे दो चरणों में होगा। पहला चरण सात जनवरी से शुरू होगी। इस सर्वे में परिवार के लोगों के नाम, उनकी जाति, जन्मस्थान और परिवार के सदस्यों की संख्या से जुड़े सवाल होंगे। साथ ही इस सर्वे में लोगों की आर्थिक स्थिति और आय से जुड़े सवाल भी पूछे जाएंगे।
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जातिगत सर्वे के दूसरे चरण की शुरुआत एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक होगी। इस दौरान लोगों की जाति, उनकी उपजाति और धर्म से जुड़े आंकड़े जुटाए जाएंगे। बिहार सरकार ने 2023 तक जातीय सर्वे का काम पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। सरकार इस सर्वे पर करीब 500 करोड़ रुपए खर्च करेगी। बताया जा रहा है कि इस जनगणना से पता चलेगा कौन सी जाति के कितने लोग कहां रहते है।