Prayagraj:अतीक अहमद का अपराधी से राजनेता तक का सफर,जानें पूरी कहानी
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Prayagraj:अतीक अहमद का अपराधी से राजनेता तक का सफर,जानें पूरी कहानी

Prayagraj: वैसे तो इलाहाबाद को शिक्षा के हब के रूप में जाना जाता है आईएएस पीसीएस और अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से छात्र यहां आकर रहते हैं और तैयारी करते हैं। लेकिन इलाहाबाद यानी प्रयागराज को क्राइम सिटी के रूप में भी जाना जाता है। अतीक अहमद नाम आपने सुना होगा और आजकल उमेश पाल हत्याकांड के बाद और ज्यादा चर्चाओं में आ गया है। इस विडियो को आखिरी तक देखेगे तो आप को पता चल जाएंगा कि उमें पाल की हत्या क्यो की गई होगी।
Prayagraj: दरअसल अतीक को बाहुबली अतीक अहमद बनाने वाला कोई और नहीं बल्कि हमारा ही सिस्टम है। महज 17 साल की उम्र में फिरोज तांगेवाले के लड़के यानी अतीक अहमद पर हत्या का आरोप लगा। इसके बाद अतीक यहीं नहीं रुका। आरोप लगते रहे और उसका रंगदारी और वसूली का धंधा चल निकला। इलाहाबाद में एक जमाना था जब चांद बाबा का ऐसा जलवा यानी धमक होती थी कि चैक और रानी मंडी इलाके में चांद बाबा की इजाजत के बगैर पुलिस वाले जाने तक से डरते थे लेकिन उस वक्त 22 साल के अतीक ने ठीक-ठाक हिसाब बना लिया और 70-80 के दशक में धीरे-धीरे राजनीति में कदम रखना शुरु कर दिया पुलिस और नेताओं की शह मिलती चली गई अतीक ने अपना बड़ा गिरोह तैयार कर लिया। अब यह गिरोह चांद बाबा के गिरोह से ज्यादा खतरनाक होने लगा।

सन 1986 के आसपास प्रदेश में सरकार थी वीर बहादुर सिंह की और उसी दौरान अतीक को पुलिस उठा ले जाती है। लेकिन दिल्ली से आए एक फोन ने अतीक को और मजबूत किया पुलिस देखती रह गई और उसे छोड़ना पड़ा। अपराध की दुनिया में अतीक लंबी छलांग लगाने लगा। मगर उसको पता था कि अभी भी उसे बहुत आगे पहुंचना है, इसीलिए उसने सियासत में मजबूत तरीके से दखल देने का मन बनाया। मगर उसके गुना सियासी सफर में रोड़ा बन सकते थे, इसीलिए जो भी उसकी कामयाबी के बीच में आया उसे जान से हाथ धोना पड़ा यानी जान देकर कीमत चुकानी पड़ी। फिर एक ऐसा दौर आ गया जब अतीक ने अपराध की दुनिया में ऐसा रुतबा खड़ा कर दिया कि पुलिस तक के लिए वे एक चैलेंज बनता चला गया।

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हत्या अपहरण फिरौती जैसे मामलों में मुकदमों की फाइल और एफआईआर बढ़ती चली गई। लेकिन अतीक का पुलिस कुछ नहीं बिगाड़ पा रही थी। इसी बीच अतीक ने एक ऐसा दांव खेला की पुलिस चाह कर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। यानी राजनीति में उसने कदम रखते इतना दबदबा बनाया। अगर जो एक खलनायक के रूप में देखा जाए या कहा जाए वह भी गलत नहीं होगा। क्योंकि जब उस पर मुकदमों का भार बढ़ता चला गया तो 1 दिन आया कि उसने बुर्का पहनकर कोर्ट में जाकर सरेंडर कर दिया। जेल जाते ही पुलिस उस पर एक के बाद एक मुकदमा ठोकने लगी और रासुका भी लगा दी। आम जनता के बीच संदेश गया कि पुलिस अतिक का उत्पीड़न कर रही है। जिसके बाद उसके पक्ष में जनता की सहानुभूति बढ गई।

Prayagraj: हालांकि 1 साल जेल में रहने के बाद वह बाहर आया और 1989 में वेस्ट इलाहाबाद से उसने निर्दलीय पर्चा भर दिया इस चुनाव में अतीक का सामना पुरानी गैंगस्टर चांद बाबा से हुआ जिससे उसकी कई दफा गैंगवार भी हो चुकी थी लेकिन अतीक ने इस चुनाव में धनबल और सहानुभूति का पूरा खेल खेला और चांद बाबा को हराकर किनारे कर दिया। चुनाव के कुछ महीने बाद ही चांद बाबा की हत्या हो गई। धीरे-धीरे अतीक ने चांद बाबा के पूरे गिरोह का सफाया कर दिया। हालात यह हो गए कि लोग इलाहाबाद वेस्ट सीट से टिकट लेने से मना करने लगे। फिर क्या था लगातार अतीक अहमद इस सीट पर चुनाव लड़ता और जीत जाता।

Prayagraj:3 बार इस सीट से अतीक अहमद निर्दलीय विधायक रहा और सन 1996 में चैथी बार समाजवादी पार्टी में अति को टिकट दे दिया। इसके बाद अतीक के समाजवादी पार्टी से संबंध डगमगाने लगे उनमें खटास आने लगी। अपना दल ने 2002 में अतीक को टिकट देकर चुनाव लड़वाया जिसमें अतिक विजई रहा। 2004 में अतीक ने एक और लंबी छलांग लगाई और समाजवादी पार्टी से ही लोकसभा का टिकट ले लिया। वो भी फूलपुर से जहां से यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य आते है। फूलपुर से अतीक अहमद जीत गए और उसके बाद राजनीति में उसके पैर ठीक-ठाक पर जम गए। कभी सपा तो कभी बसपा में वह शामिल हो जाता। 2012 में अतीक अहमद ने जेल से ही पर्चा भरा लेकिन जीत नहीं पाया।

यह है अतीक की जुर्म की दुनिया
अतीक के खिलाफ 44 मामले दर्ज जिनमें लखनऊ कौशांबी चित्रकूट इलाहाबाद ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या और अपहरण और जबरन वसूली जैसे मामले दर्ज है। अतीक के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले इलाहाबाद में दर्ज हुए।

 

विधायक राजू पाल से कैसे हुई
दरअसल 2004 में लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट से फूलपुर लोकसभा से अतीक अहमद सांसद बन गया। इसके बाद इलाहाबाद वेस्ट की विधानसभा सीट खाली हो गई उपचुनाव में सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया मगर बसपा ने उसके सामने राजूपाल को खड़ा कर दिया। राजूपाल ने अशरफ को हराया और अपनी जीत पहली बार इस सीट से दर्ज करा दी।

कुछ महीने बाद यानी 25 जनवरी 2005 को दिनदहाड़े राजू पाल की गोली मारकर हत्या कर दी। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर अतीक और उसके भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया। इसके बाद भी अतीक अहमद सांसद बना रहा लेकिन 2007 के दिसंबर महीने में जब सपा पर दबाव बना तो मुलायम सिंह ने अतीक को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। राजू पाल के गवाहों को डराने धमकाने की कोशिश की गई जिसमें उमेश पाल भी शामिल था। लेकिन मुलायम सिंह के सत्ता से जाने और मायावती के आने की वजह से अधिक कामयाब नहीं हो पाए। सांसद से अब इनामी सांसद बन गया

उसके घर कार्यालय व अन्य ठिकानों पर न्यायालय के आदेश पर कुर्की की गई अतीक पर 20000 का इनाम घोषित किया गया। मायावती के डर से अतिक ने दिल्ली में जाकर आत्मसमर्पण कर दिया। दरअसल मायावती के आने के बाद उसकी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी। 2013 में जब समाजवादी पार्टी सरकार में आई तो एक बार फिर अतीक साइकिल पर सवार हो गया, फिलहाल में जमानत पर बाहर आया क्षेत्र में पार्टी के लिए काम करने लगा पार्टी ने कोई पद नहीं दिया। छोटे भाई अशरफ को भी जमानत पर बाहर निकाल लिया। उसके बाद 2017 में योगी मुख्यमंत्री बने और उन्होंने फिर से अधिक पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया अब उनकी पत्नी शाइस्ता बसपा में है लेकिन अतिक जेल में है और कोई भी पार्टी उसे अपना कहने को तैयार नहीं है।

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