Partition Horror Memorial Day News: हर साल 14 अगस्त को भारत में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जो 1947 में भारत-पाक विभाजन की त्रासदी को याद करता है। यह दिन उन लाखों लोगों की पीड़ा, विस्थापन और बलिदान को स्मरण करने का अवसर है, जिन्होंने इस ऐतिहासिक घटना के दौरान अकल्पनीय कष्ट सहे। इस विभीषिका को हिंदी साहित्य के कवियों और लेखकों ने अपनी रचनाओं में मार्मिक ढंग से उकेरा है। उनकी कविताएँ और लेख न केवल उस दर्द को व्यक्त करते हैं, बल्कि मानवीयता, एकता और साहस की भावना को भी उजागर करते हैं।
साहित्य में विभाजन की त्रासदी
भारत-पाक विभाजन को इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक माना जाता है, जिसमें अनुमानतः 10 से 20 मिलियन लोग विस्थापित हुए और लाखों ने अपनी जान गँवाई। हिंदी साहित्य में इस दुखद अध्याय को कई लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं में जीवंत किया है।
यशपाल का ‘झूठा-सच’
हिंदी साहित्य में यशपाल का उपन्यास झूठा-सच विभाजन की त्रासदी का एक महाकाव्यात्मक दस्तावेज है। दो खंडों—वतन और देश (1958) और देश का भविष्य (1960)—में लिखा गया यह उपन्यास विभाजन के दौरान की हिंसा, लूटपाट, और सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के पतन को यथार्थवादी ढंग से चित्रित करता है। यशपाल ने न केवल विभाजन के दर्द को उकेरा, बल्कि शरणार्थियों के पुनर्वास और उनके नए जीवन की चुनौतियों को भी दर्शाया। इस उपन्यास में मानवीयता की चिंगारी को बचाए रखने का संदेश भी छिपा है।
भीष्म साहनी का ‘तमस’
भीष्म साहनी का उपन्यास तमस (1973) विभाजन के समय की सांप्रदायिक हिंसा और मानवीय त्रासदी को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास पाँच दिनों की कहानी को बयान करता है, जो बीसवीं सदी के भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक विडंबनाओं को उजागर करता है। साहनी की कहानियाँ जैसे अमृतसर आ गया है, जहूरबख्श, और पाली भी विभाजन की त्रासदी को गहरे मानवीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती हैं। उनकी रचनाएँ साम्प्रदायिकता के दंश के बीच भी मानवता की जीत को रेखांकित करती हैं।
कृष्णा सोबती की मार्मिक रचनाएँ
कृष्णा सोबती ने अपनी रचनाओं में विभाजन की भयावहता को गहरी संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया है। उनका उपन्यास ज़िन्दगीनामा (1979) और कहानियाँ जैसे सिक्का बदल गया और बादलों के घेरे विभाजन के दर्द के साथ-साथ ज़िंदादिली और मानवीयता को दर्शाती हैं। उनका आत्मकथात्मक उपन्यास गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिन्दुस्तान (2017) सच्ची घटनाओं और पात्रों के माध्यम से विभाजन की पीड़ा को जीवंत करता है। सोबती की रचनाएँ पाठकों को उस दौर की भयावहता का प्रत्यक्ष अनुभव कराती हैं।
अमृता प्रीतम की कविता अज आखाँ वारिस शाह नूँ
पंजाबी और हिंदी साहित्य की प्रख्यात कवयित्री अमृता प्रीतम की कविता अज आखाँ वारिस शाह नूँ विभाजन की त्रासदी का एक मार्मिक दस्तावेज है। इस कविता में अमृता ने पंजाब की धरती पर हुए नरसंहार और स्त्रियों पर हुए अत्याचारों को करुण स्वर में व्यक्त किया है। उनकी पंक्तियाँ, “अज आखाँ वारिस शाह नूँ, कित्थों कबरां विचों बोल,” पंजाब की पीड़ा को एक सार्वभौमिक करुणा में बदल देती हैं। उनकी रचना पिंजर भी विभाजन के दौरान स्त्रियों के दुख और उनकी जिजीविषा को उजागर करती है।
समकालीन कवियों की आवाज़
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर समकालीन कवियों ने भी इस दर्द को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है। उदाहरण के लिए, स्वामी सत्येंद्र जी की कविता में विभाजन के दौरान हुए विस्थापन और संघर्ष को चित्रित किया गया है। उनकी पंक्तियाँ, “14 अगस्त हुआ भारत बंटवारा, जिसमें लाखों लोग मरे संघर्ष,” उस दौर की त्रासदी को संक्षिप्त लेकिन गहन रूप में व्यक्त करती हैं। इसी तरह, एक अन्य कविता में लिखा गया, “इसी सरहद पर कल डूबा था सूरज होकर दो टुकड़े,” जो विभाजन की विभीषिका को प्रतीकात्मक रूप में दर्शाती है।
साहित्य का संदेश, एकता और सद्भाव
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस न केवल अतीत के दर्द को याद करने का अवसर है, बल्कि यह हमें एकता और सामाजिक सद्भाव की महत्ता भी सिखाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन को 2021 में घोषित करते हुए कहा था, “यह दिन हमें सामाजिक विभाजन और वैमनस्यता के जहर को खत्म करने के लिए प्रेरित करता है।” साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं में यही संदेश दिया है। कमलेश्वर का उपन्यास कितने पाकिस्तान (2000) इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कृति है, जो हिंदू-मुस्लिम संघर्ष और विभाजन के दुष्प्रभावों को चित्रित करते हुए एकता और प्रेम की वकालत करता है।
निष्कर्ष
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस हमें उस दुखद इतिहास की याद दिलाता है, जिसने भारत के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया। हिंदी साहित्य के कवियों और लेखकों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से इस त्रासदी को न केवल जीवंत किया, बल्कि उसमें निहित मानवीयता और साहस को भी उजागर किया। यशपाल, भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती, और अमृता प्रीतम जैसे साहित्यकारों की रचनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि दुख और पीड़ा के बीच भी मानवता और एकता की भावना को जीवित रखना आवश्यक है। यह साहित्य नई पीढ़ियों को इतिहास से सबक लेने और एकजुट भारत के निर्माण की प्रेरणा देता है।
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