7 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समारोह की शुरुआत करते हुए कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि 1937 में कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम’ के कुछ महत्वपूर्ण अंश हटा दिए थे, जिससे देश के विभाजन की बीज बोए गए। जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि स्वतंत्रता संग्राम में ‘वंदे मातरम’ का नारा देने वाली कांग्रेस ही थी, जबकि भाजपा और आरएसएस उस समय इस गीत से दूर रहे थे।
दूसरी तरफ विपक्ष (इंडिया गठबंधन) इस सत्र में बिहार में चली मतदाता सूची की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर जोरदार हमला बोलने की तैयारी में है। मानसून सत्र में भी इसी मुद्दे पर भारी हंगामा हुआ था और सदन बार-बार स्थगित करना पड़ा था।
सरकार का तर्क है कि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था है, इसलिए उसके कामकाज पर संसद में चर्चा नहीं हो सकती। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को कहा, “चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट जैसे स्वायत्त निकायों की कार्यप्रणाली पर चर्चा उचित नहीं है। अगर SIR पर बात करनी ही है तो विषय को व्यापक करना होगा, जैसे चुनाव सुधार। उस पर हम विचार कर सकते हैं।”
विपक्ष बिल्कुल तैयार नहीं है। लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक माणिकम टैगोर ने कहा, “हम SIR, चुनाव आयोग की निष्पक्षता, दिल्ली की बढ़ती प्रदूषण समस्या, बाढ़ प्रभावित राज्यों को राहत और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चर्चा चाहते हैं। उम्मीद है सरकार विपक्ष के मुद्दों को भी उतनी ही गंभीरता से लेगी।”
इस बीच सरकार के पास सुधारों का भारी एजेंडा है। इस सत्र में परमाणु ऊर्जा, उच्च शिक्षा, राष्ट्रीय राजमार्ग और बीमा क्षेत्र में बड़े विधेयक लाने की तैयारी है। हालांकि चंडीगढ़ को केंद्र के सीधे नियंत्रण में लाने वाला संविधान संशोधन विधेयक फिलहाल टाल दिया गया है।
साफ है कि 19 दिसंबर तक चलने वाला यह सत्र शांतिपूर्ण नहीं रहने वाला। एक तरफ राष्ट्रप्रेम का प्रतीक बना ‘वंदे मातरम’ होगा, तो दूसरी तरफ लोकतंत्र की निष्पक्षता का सवाल बने SIR का मुद्दा। दोनों ही पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे।

