अफगान शरणार्थियों के प्रत्यावर्तन, निर्वासन की प्रक्रिया , 1 सितंबर से होगा शुरू

Pakistan News: पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि वह 1 सितंबर 2025 से पंजीकरण प्रमाण (पीओआर) कार्ड धारक 13 लाख से अधिक अफगान शरणार्थियों के औपचारिक प्रत्यावर्तन और निर्वासन की प्रक्रिया शुरू करेगी। समाचार एजेंसी एएनआई ने पाकिस्तानी अखबार डॉन के हवाले से बताया कि यह निर्णय पाकिस्तान में अवैध रूप से रह रहे अफगान नागरिकों को वापस उनके देश भेजने की व्यापक नीति का हिस्सा है। इस कदम ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) में चिंता पैदा की है, जिसने पाकिस्तान से इस प्रक्रिया को रोकने की अपील की है।

पृष्ठभूमि और नीति की शुरुआत
पाकिस्तान में दशकों से लाखों अफगान शरणार्थी रह रहे हैं, जिनमें से कई 1980 के दशक में सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान देश में आए थे। इनमें से कई शरणार्थियों के पास यूएनएचसीआर द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाण (पीओआर) कार्ड हैं, जो उन्हें कानूनी रूप से पाकिस्तान में रहने का अधिकार प्रदान करता है। इसके अलावा, कुछ के पास अफगान नागरिक कार्ड (एसीसी) हैं, जो कम सुरक्षा प्रदान करते हैं। डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान सरकार ने 2023 में अवैध विदेशियों को देश छोड़ने के लिए 1 नवंबर की समय सीमा दी थी, जिसके बाद निर्वासन की प्रक्रिया शुरू हुई। इस नीति के तहत अब तक 13 लाख से अधिक अफगान नागरिकों को जबरन या स्वेच्छा से अफगानिस्तान वापस भेजा जा चुका है।

1 सितंबर से नई नीति
पाकिस्तान सरकार ने अब पीओआर कार्ड धारकों को भी निर्वासन के दायरे में लाने का फैसला किया है। एएनआई के अनुसार, यह कदम उन शरणार्थियों को प्रभावित करेगा जो लंबे समय से पाकिस्तान में रह रहे हैं और जिन्होंने यहां परिवार, व्यवसाय और सामुदायिक जीवन स्थापित किया है। इस नीति के तहत, सरकार ने स्पष्ट किया है कि केवल वैध दस्तावेजों के बिना रह रहे लोगों को निशाना बनाया जाएगा, लेकिन यूएनएचसीआर ने चेतावनी दी है कि पीओआर कार्ड धारकों की गिरफ्तारी और हिरासत की खबरें भी सामने आई हैं।

यूएनएचसीआर के प्रवक्ता बाबर बलोच ने 5 अगस्त 2025 को जिनेवा में कहा कि पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों के साथ दुर्व्यवहार और उनकी जबरन वापसी की खबरें चिंताजनक हैं। विशेष रूप से, महिलाओं और लड़कियों, पूर्व सरकारी अधिकारियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यक समुदायों को अफगानिस्तान में उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है। यूएनएचसीआर ने पाकिस्तान सरकार से अपील की है कि वह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का पालन करे और इन शरणार्थियों को जबरन वापस न भेजे।

निर्वासन की प्रक्रिया और चुनौतियां
पाकिस्तान सरकार ने पहले चरण में बिना दस्तावेज वाले अफगान शरणार्थियों को निशाना बनाया था। डॉन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2025 में 55,426 अफगान नागरिकों को स्वेच्छा से या जबरन वापस भेजा गया था, जिसमें से 98% एसीसी कार्ड धारक थे। अब पीओआर कार्ड धारकों को शामिल करने से यह प्रक्रिया और जटिल हो सकती है, क्योंकि इन शरणार्थियों को यूएनएचसीआर द्वारा मान्यता प्राप्त कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।

पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि यह नीति देश में बढ़ते आतंकवाद और अवैध गतिविधियों से निपटने के लिए जरूरी है। सरकार का कहना है कि कई शरणार्थी अवैध गतिविधियों में शामिल हैं, हालांकि इस दावे का कोई ठोस सबूत सार्वजनिक नहीं किया गया। दूसरी ओर, कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने इसे “राजनीतिक हथकंडा” करार दिया है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। एक्टिविस्ट गिलानी ने डीडब्ल्यू को बताया कि अफगान शरणार्थियों को दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने पर “बंधक” के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने भी इस नीति की निंदा की है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के तहत कई शरणार्थियों, खासकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों, को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ सकता है। टर्क ने पाकिस्तान से निर्वासन प्रक्रिया को स्थगित करने और शरणार्थियों के साथ दुर्व्यवहार की जांच करने का आग्रह किया है।

अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) ने भी अपील की है कि जब तक अफगानिस्तान में सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी की परिस्थितियां नहीं बनतीं, तब तक निर्वासन को रोका जाए। विशेष रूप से, चिकित्सा आवश्यकताओं वाले, उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे या मिश्रित विवाह में शामिल अफगान नागरिकों को कानूनी रूप से रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।

पाकिस्तान में शरणार्थियों की स्थिति
पाकिस्तान में लगभग 40 लाख अफगान शरणार्थी रहते हैं, जिनमें से 17 लाख के पास कोई कानूनी दस्तावेज नहीं हैं। इनमें से कई लोग दशकों से पाकिस्तान में रह रहे हैं, और उनके पास घर, व्यवसाय और सामुदायिक नेटवर्क हैं। आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार, निर्वासन के कारण सीमा पर लंबी कतारें लग रही हैं, और कई शरणार्थियों को अपनी संपत्ति छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उन्हें 50,000 पाकिस्तानी रुपये (लगभग 175 डॉलर) से अधिक ले जाने की अनुमति नहीं है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो रही है।

पाकिस्तान में रहने वाले अफगान शरणार्थियों का कहना है कि उनके पास अफगानिस्तान में कोई संसाधन या सुरक्षित ठिकाना नहीं है। तालिबान शासन के तहत, विशेष रूप से महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए जीवन और कठिन हो गया है। कई शरणार्थी परिवार अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि उनके पास न तो घर है और न ही आजीविका का कोई साधन।

निष्कर्ष
पाकिस्तान सरकार का 1 सितंबर से पीओआर कार्ड धारक अफगान शरणार्थियों के निर्वासन का फैसला एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। जहां सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध प्रवास को नियंत्रित करने की दिशा में एक कदम मान रही है, वहीं मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसकी कड़ी आलोचना की है। यह नीति न केवल लाखों शरणार्थियों के जीवन को प्रभावित करेगी, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और पाकिस्तान-अफगानिस्तान संबंधों पर भी इसका गहरा प्रभाव डाल सकती है।

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