ब्लूस्मार्ट बंद, महीनो बाद भी नहीं थमी महिला ड्राइवर महिलाओं की मुश्किलें

Electric Mobility Startup News: ‘पहली बार लगा था कि घर से बाहर नौकरी करना ठीक है… अब फिर वही पुरानी जिंदगी’
भारत की सबसे तेज़ी से बढ़ते इलेक्ट्रिक मोबिलिटी स्टार्टअप में शुमार ब्लूस्मार्ट अप्रैल 2025 में एक झटके में ग़ायब हो गया। सेबी ने कंपनी के संस्थापक भाइयों अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी पर 1,700 इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने के लिए जुटाए गए निवेशकों के पैसे को निजी लग्ज़री (43 करोड़ का DLF कैमेलियाज़ अपार्टमेंट, 26 लाख का गोल्फ सेट आदि) में लगाने का आरोप लगाया। कंपनी रातोंरात बंद हो गई। 8,000 गाड़ियों का बेड़ा सड़कों से ग़ायब।

लेकिन सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ उन सैकड़ों महिलाओं का हुआ जिन्हें ब्लूस्मार्ट ने पहली बार घर से बाहर सुरक्षित और सम्मानजनक रोज़गार दिया था।

‘सखी प्रोग्राम’ के तहत कंपनी ने करीब 200 महिलाओं को मुफ़्त ड्राइविंग ट्रेनिंग दी थी, ज्यादातर विधवाएं, एकल मांएं या बहुत कम पढ़ी-लिखी महिलाएं। इनमें से कई ने पहली बार स्टीयरिंग थामा था। ब्लूस्मार्ट ने इन्हें 8-12 घंटे की फ्लेक्सिबल शिफ्ट, घर के पास हब, तय सैलरी (20-55 हज़ार तक) और सबसे बड़ी बात – सम्मान दिया।

आज, 7 महीने बाद भी ज़्यादातर महिलाएं फिर बेरोज़गार हैं या बहुत कम कमाई वाली नौकरी कर रही हैं।

कुछ महिलाओं की आवाज़ में सुनिए:
आशा (37), पूर्वी दिल्ली, विधवा, दो बच्चों की मां
“ब्लूस्मार्ट से पहले मुझे लगा था औरत का घर से बाहर निकलना ही ग़लत है। सुबह 7:30 से दोपहर 3:30 तक ड्राइविंग करती थी, बच्चे स्कूल चले जाते थे, मैं घर का सारा काम निपटा कर आ जाती। 7:11 बजे हब पहुँच जाती थी। 20-30 हज़ार मिलते थे।

पहली बार आज़ादी का अहसास हुआ। अब फिर घर में बंद हूँ।”
सोनिका (30), घिटोरनी, तीन बेटियों की माँ
“पति उबर चलाते थे, मैं मास्क फैक्ट्री में 9 हज़ार कमाती थी। ब्लूस्मार्ट में 40-55 हज़ार तक कमाने लगी। घर लिया, फ्रिज, वॉशिंग मशीन लीं, बेटियों के लिए चाँदी की पायजेब। फिर अचानक सब खत्म। घर का लोन नहीं चुका पा रहे। मजबूरी में 10 लाख का लोन लेकर स्विफ्ट डिज़ायर ली और रिफेक्स मोबिलिटी से अटैच की, पर अभी भी अनिश्चितता है।”

तृषा (21), जहांगीरपुरी
“12वीं के बाद कॉलेज नहीं गई क्योंकि डिग्री वालों को भी कैब चलाते देखा था। ब्लूस्मार्ट में 30 हज़ार मिलते थे। पहली बार अकेले ट्रेन से बिहार गई, राजस्थान-हरिद्वार घूमी। घरवाले ताने मारना बंद कर दिए थे। अब 26 दिन काम करके 23 हज़ार मिलते हैं, गुरुग्राम तक आने-जाने में ही 8-10 हज़ार कट जाते हैं। 12-12 घंटे ड्यूटी, छुट्टी ली तो पूरा दिन का पैसा + 1000 जुर्माना।”

मौजूदा हालात
• करीब 200 में से सिर्फ़ आधी महिलाएं ही अब भी किसी न किसी प्लेटफॉर्म पर गाड़ी चला रही हैं।
• बाक़ी या तो घर बैठी हैं या बहुत कम तनख्वाह वाली नौकरियाँ कर रही हैं।
• कईयों ने क़र्ज़ लेकर खुद की गाड़ी ली है, EMI का बोझ अलग।
• एवरा, रिफेक्स, स्नैप-ई जैसी छोटी कंपनियाँ कुछ महिलाओं को ले रही हैं, लेकिन न तो इतनी बुकिंग है, न फ्लेक्सिबिलिटी और न ही पहले जैसी सैलरी।

महिलाएं कहती हैं, “ब्लूस्मार्ट सिर्फ़ नौकरी नहीं था, पहली बार हमें लगा कि हम भी घर से बाहर निकल सकती हैं, सम्मान कमा सकती हैं। वो सपना टूट गया, लेकिन ड्राइविंग सीखने की हिम्मत बाक़ी है। बस कोई स्थायी और सुरक्षित मौका चाहिए।”
फिलहाल सखी प्रोग्राम की ये पूर्व ड्राइवर महिलाएं फिर से इंतज़ार कर रही हैं; किसी नए, भरोसेमंद और महिलाओं के लिए संवेदनशील प्लेटफॉर्म का।

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