सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भक्ति से जुड़े कंटेंट का बोलबाला है। इंस्टाग्राम और टिकटॉक पर #krishna, #bhakti और #radhakrishna जैसे हैशटैग्स के साथ लाखों वीडियो वायरल हो रहे हैं। लेकिन इनमें से कई वीडियो सच्ची भक्ति से कोसों दूर हैं। उदाहरण के तौर पर, ‘कृष्ण बेबी चैलेंज’ में बच्चे भगवान कृष्ण की तरह सजकर डांस करते नजर आते हैं, जो देखने में प्यारा लगता है लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह धार्मिक प्रतीकों का मजाक उड़ा रहा है। इसी तरह, लड्डू गोपाल (छोटे कृष्ण की मूर्ति) के रील्स में लोग मूर्ति को खिलौना की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं—कभी डांस कराते हुए, कभी फनी पोज में। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे वीडियो पर करोड़ों व्यूज आते हैं, लेकिन ये भक्ति को कमर्शलाइज कर रहे हैं।
नवरात्रि जैसे पवित्र पर्व पर भी यह ट्रेंड हावी हो गया है। पारंपरिक गरबा और पूजा की जगह अब ‘वल्गर नवरात्रि फैशन शो’ ट्रेंडिंग हैं, जहां महिलाएं अश्लील ड्रेस में डांस करती दिखाई देती हैं। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें नवरात्रि के नाम पर एक मंच पर अश्लील परफॉर्मेंस हो रही थी। यूजर @Deepakkhatri812 ने इसे ‘भजन की जगह अश्लीलता’ बताते हुए ट्वीट किया, “यह कैसी भक्ति है? जहां भजन की जगह अब अश्लीलता ने ले ली है। संस्कृति की बात करते हैं, पर मंचों से शर्म बेचते हैं।” इसी तरह, कावड़ यात्रा जो शिव भक्ति का प्रतीक है, अब डीजे कावड़ यात्रा में बदल गई है। भक्तों के कंधों पर डीजे सिस्टम लादकर तेज संगीत बजाया जाता है, जो शांतिपूर्ण यात्रा को पार्टी में बदल देता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में ऐसी ‘फर्जी कावड़ियों’ पर सख्ती का ऐलान किया, जो यात्रा को बदनाम कर रही हैं।
यह ट्रेंड केवल वीडियो तक सीमित नहीं। ‘बाल संत’ जैसे 10-11 साल के बच्चे सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोअर्स जुटा रहे हैं। एक 10 साल के ‘कृष्ण भक्त’ बालक के रील्स ने 13 लाख फॉलोअर्स कमाए, जो राम मंदिर उद्घाटन में भी आमंत्रित हुए।
लेकिन आलोचना हो रही है कि यह परिवारों का ‘एक्सपेरिमेंट’ है—बच्चों को बाबा बनाकर फेम कमाना। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे ‘बाल संत’ की आध्यात्मिक दावों पर सवाल उठ रहे हैं, और परिवार की भूमिका संदिग्ध है। एक्स पर यूजर @theskindoctor13 ने लिखा, “अब बाबाओं को मार्केटिंग एजेंसी से वीडियो बनवाने पड़ते हैं।
हिंदू हमेशा ‘मनोकामना’ पूरी करने वाले की तलाश में रहते हैं, लेकिन भगवान ने कहा—कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”
सोशल मीडिया पर यह ‘फेक भक्ति’ क्यों फल-फूल रही है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह एल्गोरिदम की देन है। वायरल कंटेंट बनाने के लिए लोग धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, क्योंकि ये इमोशनल कनेक्ट बनाते हैं। लेकिन इससे सच्ची भक्ति का मजाक बन रहा है। एक्स पर #FakeBhakti ट्रेंड चल रहा है, जहां यूजर्स जैसे @neha_laldas भगवान राम-कृष्ण पर वल्गर रील्स की शिकायत कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “ऐसे पेज इंस्टाग्राम पर भरे पड़े हैं, लेकिन पुलिस तभी सक्रिय होती है जब रोल रिवर्स हो।”
धार्मिक विद्वान कहते हैं कि भक्ति का मूल भाव आंतरिक शांति और कर्म है, न कि बाहरी शोभा । तुलसी गाबर्ड का पुराना ‘हरे कृष्णा’ भजन वीडियो वायरल होने पर हिंदुस्तान टाइम्स ने इसे फेक क्लेम बताया, लेकिन यह दिखाता है कि कैसे पुरानी भक्ति को भी सोशल मीडिया पर तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। आईएसकॉन जैसे संगठन सच्ची भक्ति पर जोर देते हैं, लेकिन वायरल कल्चर उन्हें पीछे छोड़ रहा है।
अंत में, सवाल यह है कि क्या हम भक्ति को बचा पाएंगे? सोशल मीडिया कंपनियों को सख्त गाइडलाइंस बनाने की जरूरत है, और हमें सतर्क रहना होगा। सच्ची भक्ति लाइक्स से नहीं, हृदय से आती है। अन्यथा, यह ट्रेंड हमारी सांस्कृतिक विरासत को खोखला कर देगा।

