Lok Sabha Election 2024: सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सामने नई चुनौतियां, भाजपा का सियासी सफरनामा
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Lok Sabha Election 2024: सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सामने नई चुनौतियां, भाजपा का सियासी सफरनामा

Lok Sabha Election 2024: नई दिल्ली। भाजपा की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ ने पहले लोकसभा चुनाव में तीन सीटें जीतीं थीं। दो बंगाल में और एक राजस्थान में। जनसंघ ने सबसे अधिक 35 सीटें 1967 के चुनाव में हासिल कीं। उस समय दीनदयाल उपाध्याय पार्टी के अध्यक्ष थे। 2014 से पहले भाजपा के नेतृत्व में राजग 1998 से 2004 तक छह वर्ष तक केंद्र में सत्ता में रहा। सरकार का नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी ने किया। मोदी की अगुआई में भाजपा ने 2014 और 2019 में अकेले दम पर बहुमत हासिल किया लेकिन इस बार पार्टी बहुमत से दूर रह गई। हालांकि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है।

Lok Sabha Election 2024:

पहले चुनाव में हिंदू महासभा ने जीती थीं चार सीटें
1977 और 1980 में जनसंघ की सीटें शून्य थीं, क्योंकि इस अवधि में पार्टी ने जनता पार्टी के साथ विलय कर लिया था। हिंदू महासभा ने 1951-52 में हुए लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीतीं थीं।

सबसे पुरानी पार्टी के सामने नई चुनौतियां
लगातार पांच चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस को 1977 में संयुक्त विपक्ष ने सत्ता से बाहर कर दिया। इसके बाद पार्टी को गिरावट के दो फेज का सामना करना पड़ा। गिरावट का एक लंबा दौर 2014 में शुरू हुआ। हालांकि पार्टी 2024 के नतीजों को सकारात्मक बदलाव के तौर पर देख सकती है।

1996 के बाद संयुक्त मोर्चा और राजग गठबंधन ने कांग्रेस को करीब एक दशक तक सत्ता से बाहर रखा। संप्रग का कार्यकाल 10 वर्ष रहा। 2014 में भाजपा ने सत्ता में वापसी की और कांग्रेस इतिहास में सबसे कम सीटों पर सिमट गई।

 

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नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से अब भी कांग्रेस को उम्मीद क्यों है?

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की कोई अहमियत नहीं थी. यह गठबंधन एक प्रतीक से ज़्यादा नहीं था. 2014 से 2020 के बीच एनडीए के कई अहम साथी अलग भी हुए. इनमें 2020 में शिरोमणि अकाली दल और 2019 में अविभाजित शिव सेना एनडीए से अलग हो गए थे. लेकिन मोदी के तीसरे कार्यकाल में एनडीए अचानक से प्रासंगिक हो गया है. यह प्रासंगिकता बीजेपी की ज़रूरत के कारण बढ़ी है. यानी एनडीए अब बीजेपी की ज़रूरत है न कि इसमें शामिल बाक़ी दलों की. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिल्कुल उलट स्थिति थी. जनता दल यूनाइटेड प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा तेलगू देशम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के बिना मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं लेकिन अतीत में ये भी कई बार एनडीए छोड़ चुके हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि नायडू और नीतीश क्या कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन इंडिया की तरफ़ भी रुख़ कर सकते हैं? सरकार बनाने के लिए 272 सीटें चाहिए लेकिन बीजेपी को 240 सीटें ही मिली हैं. बीजेपी के लिए नायडू और नीतीश अहम हैं. टीडीपी को 16 और जदयू को 12 सीटें मिली हैं और दोनों मिलकर नई सरकार में 28 सीटों का योगदान करेंगे.

नीतीश कुमार और नायडू की पार्टी ने खुलकर कहा है कि वो एनडीए के साथ हैं लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि दोनों एनडीए में बेहतर डील और अपनी शर्तों पर रहेंगे. अगर ऐसा नहीं होता है तो नीतीश और नायडू के लिए इंडिया गठबंधन भी कोई अछूत नहीं है.
कांग्रेस ने भी नीतीश और नायडू के लिए अपना दरवाज़ा खुला रखा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ जनादेश है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “मोदी अब कार्यवाहक प्रधानमंत्री बन चुके हैं. देश ने इनके ख़िलाफ़ प्रचंड जनादेश दिया है, लेकिन ये डेमोक्रेसी को डेमो-कुर्सी बनाना चाहते हैं.”

कांग्रेस का इशारा
चुनाव के नतीजे आने के बाद बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर इंडिया गठबंधन के नेताओं की एक अहम बैठक हुई. बैठक के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि दो घंटे लंबी चली बैठक में कई सुझाव आए हैं. उन्होंने एक तरह से ये इशारा भी किया कि सही समय आया तो इंडिया गठबंधन सरकार पलटने से नहीं हिचकेगी.उन्होंने कहा, “हम बीजेपी सरकार के विपरीत जनादेश को साकार करने के लिए उचित समय पर उचित क़दम उठाएंगे.”इस बैठक में गठबंधन की 21 पार्टियों के 33 नेता शामिल हुए थे. इन नेताओं का कहना था कि टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू और जदयू नेता नीतीश कुमार के लिए दरवाज़े खुले रखे जाएं और गठबंधन सही वक़्त और सही मौक़े का इंतज़ार करे. Lok Sabha Election 2024:

सूत्रों के हवाले से अख़बार ने ये भी लिखा है कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि इंडिया गठबंधन “ब्रैंड मोदी” को ख़त्म करने में सफल रहा है. वहीं इन सबमें तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी एकमात्र नेता थे, जिनका दावा था कि चुनाव जीत चुके बीजेपी के कई नेता पार्टी के साथ संपर्क में हैं.

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