दिल्ली की अदालतों में वकीलों की हड़ताल, वकीलों ने की नेचुरल जस्टिस की मांग, पढ़िये पूरी खबर

Lawyers strike/LG News: दिल्ली की सभी सात जिला अदालतों में वकीलों की हड़ताल पांचवें दिन भी जारी रही। यह हड़ताल दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) विनय कुमार सक्सेना द्वारा 13 अगस्त 2025 को जारी एक अधिसूचना के विरोध में शुरू की गई है, जिसमें पुलिस थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पुलिस अधिकारियों को अदालत में गवाही देने की अनुमति दी गई है। इस अधिसूचना को वकील समुदाय न्यायिक प्रक्रिया और वकालत पेशे की गरिमा के खिलाफ मान रहा है। इस बीच, दिल्ली उच्च न्यायालय में वकीलों ने काला रिबन बांधकर विरोध प्रदर्शन किया, जिसे लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. ए पी सिंह ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई है।
उन्होंने कहा की विगत कई दिनों से जिला न्यायालयों में हमारे अधिवक्ता कार्य से विरत है। माँग बड़ी जायज है दिल्ली माननीय एलजी साहब ने अधिसूचना अध्यादेश के माध्यम से जारी की है।

एफआईआर ही झूटी होती है, चार्जशीट ही झूठी होती है, जुड़े हुए बयान भी झूठे होते है यह सिद्ध होता है तभी हॉनरेबल कोर्ट तक पहुंचते है ये जो प्रक्रिया है इससे भीड़ कम नहीं होगी और ना ही कार्य प्रक्रिया में बदलाव आयेगा। इस पर माननीय एलजी साहब को ध्यान देना होगा।

हड़ताल से वकीलों की आम जन मानस, ग़रीब, दलित, पीड़ित, शोषित, मज़दूर, मालूम, सभी लोग शामिल है। जिसमे सभी जात, भाषा, सम्प्रदाय के लोग शामिल है उनको कम में बाधा हो रही है और जिस तरह से अड़चन पड़ रही है। इसलिए इस माँग को मानना चाहिए। रिफार्म होना चाहिए, सुधार होना चाहिए लेकिन इस नेचुरल जस्टिस के ख़िलाफ़ नहीं होना चाहिए।

जो आम जान मानस जिसको प्राप्त कर पता हो, तभी सबका साथ सबका विकाश और सबके साथ न्याय हो पायेगा। हमारी डबल इंजन की सरकार की सबसे बड़ी खूबी है की सबको न्याय मिले सबका साथ भी हो, सबका साथ भी, सबका सहयोग भी, हो सके ये तभी हो पाएगा। जब वकील, वादी, प्रतिवादी को न्यायहित में मिले। आज इसलिए आवश्यक है कि इस हड़ताल का सहयोग करे जो इतने दिनों तक चल रही है।

सहयोग करे शांति पूर्वक क़ानून व्यवस्था के आधार पर हमलोग मेकर ऑफ़ लॉ है क़ानून में विश्वास रखते है कोई असंविधानिक न हो, लोकतांत्रिक तरीक़े से हड़ताल के माध्यम से बात भी पूरी हो जिससे आम जन मानस की भावनाये भी आहत न हो, हम सब एक है एक आवाज में इस हड़ताल का समर्थन करते है।

हड़ताल का कारण और वकीलों की मांग
वकीलों का कहना है कि पुलिस थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही की अनुमति देने वाला यह आदेश न केवल न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित करता है, बल्कि गवाहों और पीड़ितों पर दबाव की आशंका को भी बढ़ाता है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे ने कहा, “पुलिस थाने स्वाभाविक रूप से दबाव वाले माहौल में होते हैं। वहां गवाही की विश्वसनीयता संदिग्ध हो सकती है। अदालतें ही वह स्थान हैं जहां गवाहों की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित होती है।” उन्होंने आगे कहा कि इस आदेश से पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही कम हो सकती है, क्योंकि कोर्ट में प्रत्यक्ष जिरह के दौरान उनकी भूमिका की गहराई से जांच संभव होती है।

दिल्ली जिला अदालत बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके शर्मा ने कहा, “यह आदेश अधिवक्ताओं के अधिकारों के खिलाफ है। हम मांग करते हैं कि इसे तुरंत वापस लिया जाए, नहीं तो हमारा आंदोलन और तेज होगा।” वकीलों की कोऑर्डिनेशन कमेटी ने स्पष्ट किया कि जब तक अधिसूचना वापस नहीं ली जाती, हड़ताल और विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे। कमेटी के अतिरिक्त महासचिव तरुण राणा ने बताया कि 26 अगस्त को सभी जिला न्यायालय परिसरों के बाहर प्रदर्शन किए गए, जिसमें आम जनता को इस आदेश के प्रभावों के बारे में जागरूक किया गया।

दिल्ली उच्च न्यायालय में काला रिबन विरोध
दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने वकीलों से काला रिबन पहनकर विरोध दर्ज करने का आह्वान किया। यह कदम एलजी की अधिसूचना के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए उठाया गया।

डॉ. ए पी सिंह ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “यह अधिसूचना न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को कमजोर करती है, बल्कि आम जनता के न्याय पाने के अधिकार पर भी कुठाराघात करती है। पुलिस थानों में गवाही का माहौल स्वतंत्र नहीं हो सकता। यह कदम न्याय व्यवस्था की नींव को हिलाने वाला है।” उन्होंने इस मुद्दे पर और अधिक जानकारी इकट्ठा करने की बात कही ताकि इसका कानूनी और सामाजिक प्रभाव स्पष्ट हो सके।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और दिल्ली बार काउंसिल ने इस अधिसूचना को अलोकतांत्रिक करार देते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता पियूष चौधरी ने कहा, “यह केवल वकीलों का मुद्दा नहीं है, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों का सवाल है। कोर्ट में गवाही के दौरान व्यक्ति निष्पक्ष होकर अपनी बात रख सकता है, लेकिन थाने में दबाव में आ सकता है।”
दिल्ली हाई कोर्ट में इस अधिसूचना के खिलाफ अधिवक्ता कपिल मदान द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में इस आदेश को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी सोमवार को उपराज्यपाल को पत्र लिखकर इस अधिसूचना को तुरंत वापस लेने का अनुरोध किया।

आम जनता पर प्रभाव
हड़ताल के कारण दिल्ली की सभी जिला अदालतों में न्यायिक कार्य ठप हैं, जिससे हजारों मामलों की सुनवाई टल रही है। इससे पक्षकारों को अगली तारीख का इंतजार करना पड़ रहा है। हड़ताल के चलते कोर्ट परिसरों के आसपास भारी ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी, जिससे आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। पुलिस ने कई रास्तों को बंद कर दिया और सोशल मीडिया के जरिए वैकल्पिक मार्ग अपनाने की अपील की।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
आम आदमी पार्टी (आप) ने इस अधिसूचना को “न्याय व्यवस्था का मखौल” करार दिया। आप के दिल्ली प्रदेश संयोजक सौरभ भारद्वाज ने कहा, “यह आदेश अवैध और गैरकानूनी है। पुलिस पर पहले से ही झूठे मुकदमे दर्ज करने के आरोप हैं। अब अगर थानों से गवाही होगी, तो उनकी मनमानी और बढ़ेगी।” दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने तीस हजारी कोर्ट में वकीलों के समर्थन में मार्च किया और इस आदेश को जनविरोधी बताया।

आगे की रणनीति
वकीलों की समन्वय समिति ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार और उपराज्यपाल उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देते, तो आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा, जिसमें उपराज्यपाल कार्यालय का घेराव भी शामिल है। समिति ने 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया था, लेकिन कोई ठोस प्रतिक्रिया न मिलने पर हड़ताल को और तेज करने का फैसला लिया गया।

निष्कर्ष
दिल्ली की जिला अदालतों में चल रही हड़ताल और उच्च न्यायालय में काला रिबन विरोध ने न्यायिक प्रक्रिया और प्रशासन के बीच तनाव को दर्शा रहा है। वकील समुदाय का मानना है कि यह आदेश न केवल उनके पेशे की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, बल्कि आम जनता के न्याय के अधिकार को भी कमजोर करता है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट और जिला अदालतों के अधिवक्ताओं ने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद की है। डॉ. ए पी सिंह ने इस मामले में गहन जांच और जनजागरूकता की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि न्याय व्यवस्था की गरिमा और निष्पक्षता बरकरार रहे।

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