पीएम मोदी ने कहा कि दशकों पुरानी इन तस्वीरों में बारामूला में तीन बौद्ध स्तूप दिखाई दे रहे थे, जिसके आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने जनवरी 2024 से खुदाई शुरू की। जुलाई 2025 से बड़े पैमाने पर काम हुआ, जिसमें कुशाण युग की बस्ती के अवशेष सामने आए। विशेषज्ञों का मानना है कि जेहनपोरा कुशाण राजधानी हुविश्कपुर से जुड़ा महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र रहा होगा। यह खोज कश्मीर को महायान बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करती है, जहां कनिष्क के समय चौथा बौद्ध संन्यासी सम्मेलन हुआ था।
बौद्ध युग से इस्लामी शासन की ओर संक्रमण की कहानी
यह खोज कश्मीर के इतिहास की उस दिलचस्प कहानी को भी याद दिलाती है, जब घाटी बौद्ध और हिंदू शासन से इस्लामी शासन की ओर मुड़ी। 14वीं शताब्दी की शुरुआत में कमजोर हिंदू राजा सुहादेव के शासनकाल में मंगोल आक्रमणकारी दुलुचा ने कश्मीर को तबाह कर दिया। राजा भाग गए, जबकि घाटी जलती गांवों के धुएं से भर गई।
• स्वात से शाह मीर
• दरद क्षेत्र से लंकर चक
• लद्दाख से बौद्ध राजकुमार रिनचन
रिनचन ने अवसर देखा, प्रधानमंत्री रामचंद्र की हत्या की और खुद को राजा घोषित कर दिया। स्थानीय समर्थन के लिए वे शैव धर्म अपनाना चाहते थे, लेकिन मुख्य पुजारी देवस्वामी ने जाति नियमों का हवाला देकर मना कर दिया। निराश रिनचन की मुलाकात सूफी संत बुलबुल शाह से हुई। उन्होंने इस्लाम कबूल किया और सुल्तान सद्र-उद-दीन का नाम लिया। इस तरह रिनचन कश्मीर के पहले मुस्लिम शासक बने (1320-1323)।
रिनचन का यह कदम ब्राह्मणवादी एकाधिकार तोड़ने वाला साबित हुआ। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कोटा रानी ने कुछ वर्ष शासन किया, लेकिन अंततः शाह मीर वंश ने सत्ता हासिल की और कश्मीर में इस्लामी शासन स्थापित हुआ। इतिहासकारों के अनुसार, मंगोल आक्रमण के दौरान पुराने धर्मों की असफलता ने लोगों में नए विश्वास की राह खोली।
यह खोज और ऐतिहासिक घटनाएं कश्मीर की समन्वयवादी संस्कृति को उजागर कर रही हैं, जहां बौद्ध, हिंदू और इस्लामी प्रभाव सदियों से जुड़े रहे। पुरातत्वविदों का कहना है कि आगे की खुदाई से और रहस्य खुलेंगे।

