उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए
High Court: प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय अदालत, एटा के समूह “डी“ कर्मचारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा कि जिला न्यायालय अदालत में पद पर नियुक्ति चाहने वाले किसी भी व्यक्ति का चरित्र बेदाग होना चाहिए और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए। बिना किसी साफ-सुथरे रिकॉर्ड के कोई भी व्यक्ति इस संस्था को नुकसान पहुंचा सकता है।
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जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ रामसेवक की विशेष अपील को खारिज करते हुए कहा, “जिला न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति चाहने वाले उम्मीदवार का चरित्र बेदाग और ईमानदार होना चाहिए और उसका अतीत साफ-सुथरा होना चाहिए। अगर किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है जिसकी ईमानदारी संदिग्ध है या उसका अतीत साफ सुथरा नहीं है, तो इससे संस्था को नुकसान हो सकता है। क्योंकि अगर न्यायालय के रिकॉर्ड को गलत जगह रखा जाता है या उसके साथ छेड़छाड़ की जाती है, तो इससे वादियों के प्रति भारी पूर्वाग्रह पैदा होगा और न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास भी डगमगाएगा। जिससे संस्था की प्रतिष्ठा को गम्भीर नुकसान पहुंचेगा।”
हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता को जनवरी में ही धारा 41-ए सीआरपीसी के तहत नोटिस मिल गया था, इसलिए हलफनामा दाखिल करते समय उसे आपराधिक मामले के बारे में पता था। कोर्ट ने कहा, “कर्मचारी के चरित्र का सत्यापन नियोक्ता द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति, जिसकी ईमानदारी संदिग्ध है और उसका इतिहास सही नहीं है, तो वह नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता। क्योंकि इससे संस्थान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
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न्यायालय ने पाया कि आपराधिक इतिहास होने से किसी व्यक्ति की उम्मीदवारी स्वतः रद्द नहीं हो जाती। क्योंकि वर्तमान मामले में तथ्यों को जानबूझ कर छिपाया गया था, इसलिए न्यायालय ने माना कि नियोक्ता द्वारा नियुक्ति रद्द की जा सकती है। क्योंकि जानबूझकर छिपाने से संस्था पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य जिला न्यायालय सेवा नियम, 2013 नियम 15 का हवाला दिया गया। जिसके अनुसार, “किसी भी व्यक्ति को तब तक नियुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि नियुक्ति प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि वह अच्छे चरित्र का है और सेवा में नियुक्ति के लिए सभी मामलों में उपयुक्त है।“
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा करते हुए कहा कि किसी कर्मचारी से ईमानदारी और आचरण का उच्च मानक आवश्यक है। तदनुसार, कोर्ट ने विशेष अपील खारिज कर दी।
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