उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के बाद कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाले ढाबे, खोके, पटरी ओर दुकानों पर फ्लेक्स बोर्ड लगाकर नाम लिख दिए गए हैं, लेकिन ग्राउंड जीरो रिपोर्ट टीम सामने आ रहा है कि नाम के चक्कर में लोगों का काम जा रहा है। कही मुस्लिम कर्मचारी खुद ही छुट्टी पर जा रहे हैं तो कहीं मालिक उन्हें छुट्टी पर भेज रहे। बता दें कि कांवड़ मार्गों की खाने-पीने की दुकान पर संचालकों का नाम और पहचान अनिवार्य करने के बाद से दुकानदारों में बेचैनी बढ़ गई है। सरकार के फैसले के साथ ही मुजफ्फरनगर में कांवड़ मार्ग की दुकानों पर दुकानदारों ने अपने नाम वाले फ्लैक्स लगा लिये है। ढाबों से मुस्लिम कर्मचारी भी कांवड़ यात्रा तक के लिए हटाए जा रहे हैं। कई जगह स्वेच्छा से ही कर्मचारियों ने आने से इन्कार कर दिया है।
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ऐसी कहानियां आ रही सामने
बता दें कि पिछले 7 वर्षों से एक दिहाड़ी मजदूर ब्रिजेश सावन के दो महीनों के दौरान मुजफ्फरनगर के खतौली इलाके में एक सड़क किनारे ढाबे पर काम करता था ताकि अपने मुस्लिम मालिक को ग्राहकों, मुख्य रूप से कांवरियों की भारी भीड़ का प्रबंध करने में मदद मिल सके। इस काम के लिए उन्हें 400-600 रुपये और हर दिन कम से कम दो वक्त का खाना मिलता था। हालांकि, इस साल उनके मालिक मोहम्मद अरसलान ने उन्हें अन्य नौकरियों की तलाश करने को बोला है। क्योंकि वह अतिरिक्त कर्मचारियों को काम पर रखने में सक्षम नहीं थे। उन्हें लग रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा होटल रेस्तरां, भोजनालय के मालिकों को दिए गए आदेशों के कारण उनकी सेल पर असर पड़ेगा। कांवड़ यात्रा मार्ग पर चलने वाली गाड़ियों और भोजनालयों को अपने आउटलेट पर अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने होंगे।
यहां कई कर्मचार बता रहे है कि यह आय का एक अच्छा स्रोत था क्योंकि इस मौसम में अन्य नौकरियां ढूंढना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि मानसून के मौसम में निर्माण और कृषि कार्य ज्यादा नहीं होते हैं, जहां मुझे एक मजदूर के रूप में नौकरी मिल सके। कुछ लोगों ने एक सप्ताह पहले ही ढाबे पर काम करना शुरू किया था, लेकिन अब मालिक ने मुझे कहीं और काम तलाशने के लिए कहा है।श्
छोटे फल विक्रेताओं और ढाबों को डर है कि इस कदम से उनकी कमाई सीधे असर पड़ेगा। ढाबे के मालिक अरसलान ने कहा कि उन्हें डर है कि उनके मुस्लिम नाम के कारण कांवड़िए उनके यहां खाना नहीं खाएंगे। इस मार्ग पर हर तीसरे ढाबे की तरह, मेरे ढाबे का नाम बाबा का ढाबा है। मेरे आधे से अधिक कर्मचारी हिंदू हैं। हम यहां केवल शाकाहारी भोजन परोसते हैं और श्रावण (मानसून) के दौरान लहसुन और प्याज का उपयोग भी नही करते।
ऐसे में कहा जा सकता है कि सरकार के आदेश ने न केवल मुस्लिम मालिकों और उनके कर्मचारियों की कमाई पर असर डाला है, बल्कि हिंदू मालिकों के भोजनालयों में काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारियों पर भी असर डाला है।
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खतौली में मुख्य बाजार के ठीक बाहर सड़क किनारे भोजनालय के मालिक अनिमेष त्यागी कहते है कि एक मुस्लिम व्यक्ति मेरे रेस्तरां में तंदूर पर काम करता था। लेकिन इस मुद्दे के कारण, मैंने उसे जाने के लिए कहा। क्योंकि लोग इसे मुद्दा बना सकते हैं। हम यहां ऐसी परेशानी नहीं चाहते हैं। उन्होंने इस बार तंदूर पर काम करने के लिए एक हिंदू व्यक्ति को बुलाया है। खैर इस तरह की काफी कहानियां है। बस इससे गरीब पर सीधे मार है। गरीब और गरीब होता जाएगा।