दिल्ली-NCR में स्ट्रीट डॉग्स पर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बवाल, डॉग लवर्स का प्रदर्शन, पुलिस से तनातनी

Dog Lover News: दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर शेल्टर होम में भेजने के सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले ने विवाद को जन्म दे दिया है। कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सोमवार रात इंडिया गेट पर सैकड़ों डॉग लवर्स ने कैंडल मार्च निकालकर विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी नोकझोंक और खींचतानी देखने को मिली, जिसके बाद पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों को 8 सप्ताह के भीतर सड़कों से हटाकर शेल्टर होम में शिफ्ट करने का सख्त आदेश दिया। कोर्ट ने बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की सुरक्षा का हवाला देते हुए कहा कि कुत्तों के काटने और रेबीज से होने वाली मौतों को रोकना जरूरी है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार, MCD और NDMC को 5000 कुत्तों के लिए शेल्टर होम और बुनियादी ढांचा तैयार करने का निर्देश दिया। साथ ही, किसी भी व्यक्ति या संगठन द्वारा कुत्तों को पकड़ने में बाधा डालने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी।

क्यों उठा विरोध?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने डॉग लवर्स और पशु कल्याण संगठनों में रोष पैदा कर दिया है। इंडिया गेट पर प्रदर्शन के दौरान डॉग लवर्स ने इसे “अमानवीय” और “अवैज्ञानिक” करार दिया। पेट लवर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी अजय प्रताप सिंह ने कहा, “दिल्ली में 10 लाख सामुदायिक कुत्ते हैं, जिनमें से केवल 47% की नसबंदी हुई है। शेल्टर होम्स में जगह और संसाधनों की भारी कमी है। इतने कुत्तों को कहां रखा जाएगा? यह फैसला कुत्तों के साथ क्रूरता को बढ़ावा देगा।”

PETA इंडिया की डायरेक्टर ऑफ एडवोकेसी प्रोजेक्ट्स खुशबू गुप्ता ने भी कोर्ट के फैसले को 2001 के एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियमों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा, “नसबंदी और वैक्सीनेशन ही इस समस्या का स्थायी समाधान है। कुत्तों को जबरन शेल्टर में डालने से भूखमरी, तनाव और आपसी झगड़े बढ़ेंगे।”

पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इस फैसले को “गुस्से में लिया गया अव्यवहारिक निर्णय” करार देते हुए कहा कि दिल्ली में 3 लाख कुत्तों के लिए शेल्टर होम बनाना असंभव है। उनके अनुसार, इसके लिए 15 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी, जो व्यवहारिक नहीं है।

इंडिया गेट पर प्रदर्शन और पुलिस कार्रवाई
सोमवार रात इंडिया गेट पर डॉग लवर्स, पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और केयरगिवर्स ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कैंडल मार्च निकाला। प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए और तख्तियां लहराईं, जिन पर लिखा था, “कुत्तों को प्यार चाहिए, कारावास नहीं” और “नसबंदी ही समाधान है।”

हालांकि, प्रदर्शन के दौरान माहौल तनावपूर्ण हो गया। दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने की कोशिश की, जिसके बाद खींचतानी शुरू हो गई। कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने हिरासत में लिया और अलग-अलग थानों में ले गई। एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “हमें बोलने का हक नहीं दिया जा रहा। हम सिर्फ बेजुबान जानवरों की रक्षा करना चाहते हैं।” कुछ देर बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को छोड़ दिया।

सोशल मीडिया पर दो धड़ों में बंटी राय
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सोशल मीडिया पर भी तीखी बहस छेड़ दी है। एक पक्ष, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी शामिल हैं, ने इस फैसले को “क्रूर” और “अदूरदर्शी” बताया। राहुल गांधी ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा, “ये बेजुबान आत्माएं कोई समस्या नहीं हैं। नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल से जन सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों सुनिश्चित हो सकते हैं।”

वहीं, दूसरा पक्ष इस फैसले का स्वागत कर रहा है। कई लोग, जिनके बच्चे या बुजुर्ग रिश्तेदार कुत्तों के हमलों का शिकार हुए हैं, का कहना है कि यह कदम जन सुरक्षा के लिए जरूरी था। एक एक्स यूजर ने लिखा, “हर गली में कुत्तों का आतंक है। बच्चों को खेलने में डर लगता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है।”

विशेषज्ञों की राय
डॉग शेल्टर होम संचालक दिव्यम खेड़ा ने कहा, “शेल्टर होम केवल बीमार और घायल कुत्तों के लिए होते हैं। स्वस्थ कुत्तों को वहां रखने से बीमारियां फैलने का खतरा है। MCD ने नसबंदी और वैक्सीनेशन का काम ठीक से नहीं किया, जिसकी सजा बेजुबानों को मिल रही है।”

विशेषज्ञों का मानना है कि ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड जैसे देशों ने नसबंदी और वैक्सीनेशन के जरिए आवारा कुत्तों की समस्या को हल किया है। भारत में भी ABC नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है।

आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब दिल्ली सरकार और नगर निगम पर दबाव है कि वे 8 सप्ताह में शेल्टर होम्स तैयार करें। लेकिन विशेषज्ञों और डॉग लवर्स का कहना है कि बिना पर्याप्त संसाधनों के यह असंभव है। मेनका गांधी और अन्य कार्यकर्ताओं ने इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग की है।

इस बीच, यह मुद्दा जन सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच टकराव का प्रतीक बन गया है। क्या दिल्ली में कुत्तों और इंसानों का सह-अस्तित्व संभव है? यह सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन इस बहस ने समाज को दो धड़ों में जरूर बांट दिया है।

आपकी राय क्या है? क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला जनहित में है या यह बेजुबान जानवरों के साथ अन्याय है? अपनी राय हमें जरूर बताएं।

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