Demonetisation: सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को सही ठहराया, सभी याचिकाएं खारिज
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार के 8 नवबंर 2016 में 500 और 1000 के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराते हुए अपने फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस कदम को सही ठहराते हुए नोटबंदी के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा है कि यह निर्णय कार्यकारी की आर्थिक नीति होने के कारण पलटा नहीं जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए दोनों के बीच एक समन्वय था। एससी ने कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। आरबीआई (RBI) के पास विमुद्रीकरण लाने की कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है और केंद्र और आरबीआई के बीच परामर्श के बाद यह कदम उठाया गया।
फैसला रखा था सुरक्षित
स्ुप्रीम कोर्ट ने सात दिसंबर को केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को निर्देश दिया था कि वे 2016 के फैसले से संबंधित सारे रिकॉर्ड उनको सौंपे। इसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यन और बी वी नागरत्ना भी शामिल हैं। उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान सहित आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलें सुनी थीं।
58 याचिकाओं पर हुई सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर, 2016 को केंद्र द्वारा घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई की है। इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों को बंद करने को गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण बताते हुए वरिष्ठ वकील चिदंबरम ने तर्क दिया था कि सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है। यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है।
उधर, 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के शीर्ष अदालत के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है जब श्घड़ी को पीछे करनेश् से कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ (Constitutional bench of Judges) ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है। जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 4,1 के बहुमत से नोटबंदी के पक्ष में फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत हुई थी इसलिए हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी। 5 जजों में एक जज न्यायमूर्ति नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले को गैरकानूनी ठहराया। उन्होंने आरबीआई को सीमा लांघने तक की बात कह डाली।
नोटबंदी के फैसले को लेकर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत अपना अलग पक्ष रखा। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि मैं साथी जजों से सहमत हूं लेकिन मेरे तर्क अलग हैं। मैंने सभी छह सवालों के अलग जवाब दिए हैं। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव केंद्र सरकार की तरफ से आया था और आरबीआई की राय मांगी गई थी। आरबीआई द्वारा दी गई ऐसी राय को आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत ष्सिफारिशष् के रूप में नहीं माना जा सकता है। यह मान भी लिया जाए कि आरबीआई के पास ऐसी शक्ति थी लेकिन ऐसी सिफारिश आप नहीं कर सकते, धारा 26 (2) के तहत शक्ति केवल करेंसी नोटों की एक विशेष श्रृंखला के लिए हो सकती है और किसी मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों की पूरी श्रृंखला के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) के अंतर्गत कोई भी श्रृंखला का अर्थ ष्सभी श्रृंखला नहीं हो सकता है।
नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनीरू न्यायमूर्ति नागरत्ना
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनी है। लेकिन इस समय यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती है। अब क्या राहत दी जा सकती है? राहत को ढालने की जरूरत है।
नोटबंदी प्रभावी नहीं हो सकीरू न्यायमूर्ति नागरत्ना
नोटबंदी से जुड़ी समस्याओं से एक आश्चर्य होता है कि क्या सेंट्रल बैंक ने इनकी कल्पना की थी? यह रिकॉर्ड पर लाया गया है कि 98ः बैंक नोटों की अदला-बदली की गई। इससे पता चलता है कि उपाय स्वयं प्रभावी नहीं था जैसा कि होने की मांग की गई थी। लेकिन अदालत इस तरह के विचार के आधार पर अपने फैसले को आधार नहीं बना सकती है। उन्होंने कहा कि 500 रुपये और 1000 रुपये के सभी नोटों का विमुद्रीकरण गैरकानूनी और गलत है। हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अधिसूचना पर कार्रवाई की गई है, कानून की यह घोषणा केवल भावी प्रभाव से कार्य करेगी और पहले से की गई कार्रवाइयों को प्रभावित नहीं करेगी।