Delhi LG के पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं: सौरभ भारद्वाज
Delhi LG: आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने पार्टी मुख्यालय प्रेस वार्ता कर कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल विनय सक्सेना की शुक्रवार को मुलाकात हुई। उस मुलाकात में मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल को बताया कि आप फाइलों को सीधे मंगवा रहे हैं, विकास कार्यों में अड़ंगा लगा रहे हैं।
जबकि दिल्ली के अंदर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ तीन चीजें पब्लिक आॅर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है। इसके अलावा सभी मामले शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली, पर्यटन सहित अन्य मामलों में उपराज्यपाल की शक्तियां बहुत सीमित हैं।
वह इतनी सीमित है कि उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें और निरस्त कर सकें। वह सिर्फ वही करेंगे जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी। अगर उससे एतराज है तो वह निरस्त नहीं कर सकते हैं। वह सिर्फ राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। उनके पास इतनी शक्ति भी नहीं है कि वह कहें कि यह मुझे पसंद नहीं है। उनके पास पसंद और नापसंद करने की शक्ति नहीं है। वह फाइल को राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। वह तय करेंगे कि उन्हें पसंद है या नहीं है।
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भारद्वाज ने कहा कि इसके बावजूद उपराज्यपाल लगातार यह काम करते आ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने उन्हें सभी कानूनों की प्रतियां दिखाई, संवैधानिक पीठ का फैसला दिखाया है कि आप खुल्लम-खुल्ला कोर्ट के फैसले का उल्लंघन कर रहे हैं। हालांकि अगर कोई व्यक्ति उल्लंघन कर रहा है तो उसको कानून दिखाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि अगर आपको कानून नहीं पता तो यह कोई डिफेंस नहीं है। लेकिन उपराज्यपाल को मुख्यमंत्री ने स्वयं वह कानून दिखा दिए कि इन कानूनों का आप उल्लंघन लगातार कर रहे हैं। आप सुप्रीम कोर्ट और संविधान की भी नहीं मान रहें।
Delhi LG: उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट कब से सलाह देने लगा है। सुप्रीम कोर्ट का लिखा एक-एक शब्द का फैसला ही निर्देश होता है। अगर उपराज्यपाल को कोई सलाह दे सकता है तो चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही दे सकती है। उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें। उनके लिए सलाह बाध्यता होती है। उपराज्यपाल कह रहे हैं कि अब वह संविधान और संविधान पीठ के फैसले को भी नहीं मानूंगा। तो क्या दिल्ली के अंदर एक ऐसे व्यक्ति संवैधानिक पद पर हो सकते हैं जोकि खुद संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं।