विवाद का केंद्र बिंदु अरुलमिगु सुब्रमण्या स्वामी मंदिर के पास स्थित ‘दीपथून’ स्थल है, जहां सदियों पुरानी परंपरा के तहत कार्तिगाई दीपम (3 दिसंबर) पर दीप जलाने की अनुमति मद्रास हाईकोर्ट की मादुरै बेंच ने दी थी। जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने 1 दिसंबर को याचिकाकर्ता राम रविचंद्र को 10 अन्य लोगों के साथ पहाड़ी पर चढ़कर दीप जलाने की इजाजत दी और सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ तैनाती का आदेश दिया। लेकिन जिला प्रशासन ने निषेधाज्ञा लगा दी, जिसके बाद अवमानना की कार्यवाही शुरू हुई।
हाईकोर्ट ने गुरुवार को डिवीजन बेंच ने प्रशासन की अपील खारिज करते हुए कहा कि यह ‘अवमानना से बचने का छलपूर्ण प्रयास’ है। जस्टिस जी. जयचंद्रन और के.के. रामकृष्णन की बेंच ने सीआईएसएफ सुरक्षा को जायज ठहराया, क्योंकि राज्य पुलिस ने आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया था। शुक्रवार को जस्टिस स्वामीनाथन ने फिर से निषेधाज्ञा रद्द कर दी और दीप जलाने की अनुमति दोहराई। कोर्ट ने चेतावनी दी, “न्यायपालिका की धैर्य का परीक्षण न करें और इसे अपमानित न करें।”
संसद में हंगामा
इस विवाद ने शुक्रवार को लोकसभा में आग लगा दी। डीएमके नेता टी.आर. बालू ने सदन में उठे मुद्दे पर भाजपा पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह विवाद सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा का है, लेकिन भाजपा इसे राजनीतिक रंग दे रही है। इससे नाराज डीएमके सदस्यों ने नारेबाजी शुरू कर दी, जिसके कारण स्पीकर ने सदन स्थगित कर दिया।
भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री एल. मुरुगन ने तमिलनाडु सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा, “यह हिंदू पूजा-अर्चना के अधिकारों का उल्लंघन है। डीएमके सरकार वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रही है।” मादुरै से भाजपा सांसद नैनार नागेंद्रन ने भी कहा, “पहाड़ी पर दीप जलाना सदियों पुरानी रस्म है, इसमें कुछ गलत नहीं। सरकार का रवैया असंवैधानिक है।” विपक्षी दलों ने डीएमके पर ‘हिंदू-विरोधी पूर्वाग्रह’ का आरोप लगाया, जबकि डीएमके ने इसे ‘सांप्रदायिक उकसावा’ बताया।
हिंदू संगठनों की ओर से हिंदू मक्कल कचि और हिंदू मुन्नानी जैसे समूहों ने पुलिस के साथ झड़प की, जिसमें 50 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया। स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने कहा कि वे दीप जलाने के खिलाफ नहीं थे, लेकिन डीएमके सरकार ने बाहरी वोट बैंक के डर से इसे रोका।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने तमिलनाडु के वकीलों को फटकार लगाई। “कोई उल्लेख नहीं, धन्यवाद,” उन्होंने कहा। याचिका में मादुरै कलेक्टर के.जे. प्रवीणकुमार, पुलिस आयुक्त जे. लोकनाथन और मंदिर अधिकारी यज्ञ नारायण को पक्षकार बनाया गया था। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत पूजा का अधिकार सुनिश्चित करता है।
विपक्षी नेता अन्नामलाई (भाजपा) ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया दी: “डीएमके की यह ‘गणितीय अवज्ञा’ लोकतंत्र के लिए खतरा है।” वहीं, डीएमके समर्थक तिरु. वरुण ने कहा, “यह दर्गाह के पास उकसाने वाला कृत्य था, सरकार ने शांति बनाए रखी।”
मंदिर-दर्गाह विवाद
‘दीपथून’ स्थल को लेकर मंदिर और सिक्कंदर बादूशा दर्गाह के बीच दावा है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मंदिर क्षेत्र में आता है, न कि दर्गाह में। विवाद 2023 से चल रहा था, जब हिंदू समूहों ने दीप जलाने की मांग की। तिरुवन्नामलाई के कार्तिगाई दीपम उत्सव के दौरान यह मुद्दा और भड़का।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद 2026 विधानसभा चुनाव से पहले ध्रुवीकरण का हथियार बन सकता है। फिलहाल, मादुरै में तनाव बरकरार है, और हाईकोर्ट की अगली सुनवाई जल्द संभावित है। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है, लेकिन उल्लेख अस्वीकार होने से उसकी राह कठिन हो गई है।

