CAG Report on Yamuna Authority: नियंत्रण महालेखापरीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की गई और इस रिपोर्ट में यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण की कई बड़ी खामियां सामने आई। सबसे बड़ी बात ये है कि 2428 औद्योगिक भूखंडों के लिए आवंटित की गई। जमीन केवल कागजों में ही सीमित रह गई है। यानी जितने भी भूखंड आवंटित हुए अब तक कहीं भी औद्योगिक इकाई शुरू नहीं हो पाई है। रिपोर्ट में कहा गया है की 2009 से 2021 तक जितने भी औद्योगिक भूखंड आवंटित किए गए, उनमें से कोई उद्योग शुरू नहीं हो पाया है। प्राधिकरण की गलत नीति के चलते 82ः संस्थागत कमर्शियल और औद्योगिक भूखंडों की लीज डीड निष्पादित नहीं हो पाई है। इससे प्राधिकरण को करोड़ों रुपये का नुकसान झेलना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 13 वर्षों में औद्योगिक भूखंडों पर निर्माण शुरू नहीं किया गया है, देरी करने वालों से जुर्माना जरूर वसूला गया है। इस सबको लेकर प्राधिकरण की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे।
कैसे हो रहा प्राधिकरण को नुकसान
बता दें कि 2008-09 से 2020-21 के बीच यमुना प्राधिकरण ने आवासीय, संस्थागत, मिक्स लैंडयूज, औद्योगिक और कमर्शियल कैटेगरी के 30675 भूखंड आवंटित किए। इसमें 1666 भूखण्ड निरस्त किए गए या फिर सरेंडर कर दिए गए। बचे हुए 29009 भूखंडों में से 23832 यानी 82ः लीड तक नहीं हो पाई है। इन भूखंडों में 2428 भूखंडों पर औद्योगिक इकाइयों विकसित की जाने थी लेकिन अब तक किसी प्रकार की गतिविधि शुरू नहीं हो पाई है।
क्या कहते हैं प्राधिकरण के सीईओ
यमुना प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ अरुणवीर सिंह का कहना है कि जो भी कमियां थी उनमें सुधार किया गया है। कैग की आपत्ति पर यमुना प्राधिकरण की ओर से जवाब बनाकर भेज दिया गया है। प्राधिकरण ने नीति और नियमों के तहत ही सभी भूखंडों के आवंटन किए गए।
कैग ने उठाया बुनियादी सवाल
कैग की ओर से कहा गया है कि भूखंड सिर्फ कागजों पर ही आवंटित हुए हैं। उनका भौतिक कब्जा नहीं दिया गया है। लीज डीड होने के बावजूद निर्धारित समय सीमा में विलंब करने वाले आवंटियों पर प्राधिकरण ने सख्ती नहीं की। संस्थागत श्रेणी में ऐसे कई आवंटी हैं जिनमें जीएल बाजाज, शांति एजुकेशन, शतिलीला एजुकेशन जैसे शामिल हैं। कई ऐसे मामले है जिनमें लीड होने के 77 दिनों की देरी और चेक लिस्ट जारी करने के बावजूद कई लोगों ने नक्शा पास तक नहीं कराया है।