क्या है मामला?
चुनाव आयोग द्वारा बिहार में चलाए जा रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का मकसद वोटर लिस्ट को शुद्ध और अपडेट करना है। इसके तहत मृत, स्थानांतरित, और डुप्लिकेट वोटरों के नाम हटाए जा रहे हैं, साथ ही नए पात्र मतदाताओं को जोड़ा जा रहा है। इस प्रक्रिया के दौरान भागलपुर में बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) ने घर-घर जाकर सत्यापन किया, जिसमें यह पाया गया कि दो महिलाएं, जो मूल रूप से पाकिस्तान की बताई जा रही हैं, भारतीय वोटर लिस्ट में शामिल हैं। इनके पास भारतीय वोटर आईडी कार्ड भी हैं, जो संभवतः अवैध तरीके से हासिल किए गए हैं।
वोटर लिस्ट में कैसे हुईं शामिल?
सूत्रों के अनुसार, इन महिलाओं ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य भारतीय दस्तावेज हासिल किए थे, जिनके आधार पर उनका नाम वोटर लिस्ट में शामिल हो गया। हालांकि, चुनाव आयोग ने साफ किया है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाता, और SIR प्रक्रिया में केवल 11 विशेष दस्तावेजों को ही सत्यापन के लिए स्वीकार किया जा रहा है। इस मामले ने यह सवाल खड़ा किया है कि आखिर कैसे गैर-भारतीय नागरिकों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल हो गए और क्या इस प्रक्रिया में कोई बड़ी चूक हुई है।
चुनाव आयोग का रुख
चुनाव आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और इन महिलाओं के दस्तावेजों की गहन जांच के आदेश दिए हैं। आयोग ने कहा है कि 1 अगस्त से 30 अगस्त तक ऐसे सभी संदिग्ध मामलों की जांच की जाएगी, और गैर-भारतीय नागरिकों के नाम अंतिम वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएंगे। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि SIR प्रक्रिया का उद्देश्य वोटर लिस्ट को पारदर्शी और सटीक बनाना है, ताकि बिहार विधानसभा चुनाव निष्पक्ष और स्वच्छ तरीके से संपन्न हो सकें।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस खुलासे ने बिहार के राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों, खासकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस, ने SIR प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे “नागरिकता रजिस्टर (NRC) का बैकडोर तरीका” करार दिया है। उनका आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है। वहीं, सत्तारूढ़ बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने इसका बचाव करते हुए कहा है कि यह कदम केवल फर्जी वोटरों को हटाने और वास्तविक मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
भागलपुर का यह मामला SIR प्रक्रिया की चुनौतियों को उजागर कर फ़र्ज़ीवाड़े का भी खुलासा कर दिया है। एक तरफ जहां आयोग वोटर लिस्ट को शुद्ध करने की कोशिश कर रहा है, वहीं गलत दस्तावेजों के आधार पर वोटर लिस्ट में शामिल होने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इस मामले की गहन जांच और पारदर्शी कार्रवाई से ही जनता का भरोसा बहाल हो सकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह के खुलासे न केवल चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं, बल्कि यह भी जरूरी बनाते हैं कि प्रशासन और चुनाव आयोग मिलकर ऐसी खामियों को दूर करें। जनता से अपील है कि वे अपनी वोटर लिस्ट में नाम की जांच electoralsearch.eci.gov.in या बिहार CEO की वेबसाइट पर जाकर करें और किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में तुरंत संबंधित अधिकारियों से संपर्क करें।

