Awards: पद्म पुरस्कारो में मुलायम समेत समाज में बदवाल करने वालो के नाम

Awards:गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या यानी बुधवार को पद्म पुस्कार विजेताओं को नामों की घोषणा हुई है। इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम व समाजवादी पार्टी के संस्थापक दिवंगत मुलायम सिंह यादव समेत कई ऐसे लोगों के नाम है जिन्होंने समाज में बदवाल के लिए कार्य किये। नेताजी अपने कई ऐतिहासिक फैसलों के लिए यूपी और देश की राजनीति में सदा याद किए जाएंगे। उन्होंने भारतीय राजनीति को न सिर्फ नई दिशा दी बल्कि समाजिक परिवर्तन की इबारत भी लिखी। उन्होंने महिलाओं को सियासत में भागीदारी सुनिश्चित करने को आवाज बुलंद की। वहीं पद्मश्री पुरस्कार आनंद कुमार का नाम चयनित किया गया।

नेताजी का सफरनामा
Awards: इटावा के सैफई में किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह यादव अखाड़े में दांव लगाते-लगाते सियासी फलक पर छा गए। 24 फरवरी वर्ष 1954 में मात्र 15 वर्ष की आयु में समाजवाद के शिखर पुरुष डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर नहर रेट आंदोलन में पहली बार जेल गए। वह केके कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। आगरा विश्वविद्यलाय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद इंटर कॉलेज में प्रवक्ता बने। फिर त्यागपत्र दिया और अपने गुरु चैधरी नत्थूसिंह की परंपरागत विधानसभा सीट जसवंत नगर से 1967 में पहली बार विधायक बने।

इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे फैसले लिए, जिसकी वजह से उनके न रहने पर भी लोग याद करेंगे। अपने राजनीतिक सपर में पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के हित की अगुवाई कर अपनी पुख्ता राजनीतिक जमीन तैयार की। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐतिहासिक फैसले भी लिए, जिसके लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे।समाजवादी पार्टी का गठन
लोकदल से वाया जनता दल होते हुए मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की। पिछड़ी जातियों को गोलबंद करते हुए अल्पसंख्यकों को साथ लिया। अगलों को उनकी हिस्सेदारी के आधार पर भागीदारी देते हुए आगे बढ़े। तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वर्ष 2012 में अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया।
बाबरी मस्जिद ढांचा और अयोध्या में भी मुलायम
1989 में मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने। अयोध्या में मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया। इसके बाद उन्हें मुल्ला मुलायम तक कहा गया। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह कभी नहीं की। अपने 79वें जन्मदिन पर मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि मुख्यमंत्री रहते देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं। अगर वह अयोध्या में मस्जिद नहीं बचाते तो ठीक नहीं होता क्योंकि उस दौर में कई नौजवानों ने हथियार उठा लिए थे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री काल में देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवानी पड़ी।

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यूपीए को समर्थन देकर चैंकाया
वर्ष 2008 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अमरीका के साथ परमाणु करार को लेकर संकट में आ गई। उस वक्त यूपीए में शामिल वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया। ऐसे समय मुलायम सिंह यादव ने बाहर से समर्थन देकर मनमोहन सरकार को गिरने रोक लिया। उनके इस फैसले की जमकर आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने कोई परवाह नहीं की।
अखिलेश को सौंपी विरासत की चाबी
राजनीति के कुशल खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में पूण बहुमत मिलते ही अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। इससे राजनीति की विरासत की चाबी अखिलेश के पास पहुंच गई। वर्ष 2017 में पार्टी के अंदर खलमंडल मचा। वह कभी शिवपाल और कभी अखिलेश के पक्ष में खड़े होते रहे। आखिरकार उन्होंने सार्वजनिक मंच से स्वीकार किया कि वह अखिलेश यादव केसाथ साथ हैं। अखिलेश यादव ही समाजवादी विरासत को आगे बढ़ा सकते हैं।

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सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार की दिनचर्या
Awards: सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार की दिनचर्या दिन में भी रोज की तरह थी और रात में भी। जिस समय पद्मश्री पुरस्कार के लिए आनंद कुमार के नाम की खबर पहुंची, जक्कनपुर में वह अपने घर पर परिवार के साथ बैठकर खाना खा रहे थे। घर में खुशी का माहौल दोपहर में ही बन गया था, क्योंकि दोपहर में वह जब अपनी दिनचर्या के अनुसार आईआईटी की तैयारी कर रहे बच्चों को परीक्षा के गूढ़ रहस्य समझाकर कुछ देर के लिए आराम करने वाले थे कि गृह मंत्रालय से उनके नाम इस उपलब्धि की सूचना पहुंच गई।

 

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