Article 370: सरकार के फैसले को एससी ने ठहराया सही, विभिन्न दलों ने जताया असंतोष

Article 370:  नयी दिल्ली| उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक एवं दूरगामी फैसले में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के केन्द्र सरकार के निर्णय को सोमवार को उचित ठहराते हुए आजादी के बाद से लगातार विवाद का विषय बने इस मुद्दे पर पटाक्षेप किया।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि यह फैसला एक मजबूत और अधिक एकजुट भारत के निर्माण की आशा की किरण है। वहीं, विभिन्न राजनीतिक दलों ने न्यायालय के फैसले पर असंतोष व्यक्त किया है। शीर्ष न्यायालय ने सीमावर्ती राज्य को दो केन्द्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं का आज निस्तारण करते हुए केन्द्र सरकार के पांच अगस्त, 2019 के निर्णय काे संविधान सम्मत ठहराया। न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक एकीकरण की प्रक्रिया क्रमवार चल रही थी और अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधान था।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने अपने सर्वसम्मत फैसले में विशेष दर्जा समाप्त करने के मामले में राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गया आदेश को वैध करार दिया।
शीर्ष अदालत ने आज के फैसले में राज्य विधानमंडलों की शक्तियों का प्रयोग करने के संसद के विशेषाधिकार को भी बरकरार रखा है। मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा बहाल करने के लिए 30 सितंबर 2024 तक वहां विधानसभा चुनाव कराने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि अगस्त, 2019 के केन्द्र के निर्णय में जम्मू-कश्मीर को पुनर्गठन कर लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को केन्द्रशासित प्रदेश बनाते समय जम्मू-कश्मीर में समय पर विधानसभा बहाल करने की घोषणा की थी।
मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 विशेष परिस्थितियों के लिए एक अस्थायी प्रावधान था। संविधान के अनुच्छेद एक और 370 में स्पष्ट तौर पर यह कहा गया है कि जम्मू- कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसके पास भारत के अन्य राज्यों से अलग कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।

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शीर्ष अदालत ने अपने मुख्य फैसले में राज्य विधानमंडलों की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अनुच्छेद 356 (1) (बी) के तहत संसद को प्राप्त शक्ति को बरकरार रखा है। संविधान पीठ ने कहा कि भारत के संविधान के सभी प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू करने के लिए अनुच्छेद 370(1)(डी) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया आदेश वैध है। पीठ ने आगे कहा, “शक्ति का ऐसा प्रयोग केवल इसलिए दुर्भावनापूर्ण नहीं माना जा सकता है कि इसमें विभिन्न प्रावधानों को टुकड़ों में बांटे बिना एक साथ लागू किया गया।”
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि राष्ट्रपति के पास संविधान सभा की सिफारिश के बगैर भी अनुच्छेद 370(3) के प्रावधानों पर रोक लगाने की शक्ति है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संबंध में ‘राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370(1) के तहत शक्ति का निरंतर प्रयोग इंगित करता है कि वहां संवैधानिक एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया जारी थी। अनुच्छेद 370(3) के तहत राष्ट्रपति द्वारा जारी घोषणा एकीकरण की प्रक्रिया की परिणति है और इस प्रकार यह शक्ति का एक वैध प्रयोग है।

शीर्ष अदालत ने कहा, “इस प्रकार से संवैधानिक आदेश 273 (अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का आदेश) वैध है।” संविधान पीठ ने अपने फैसले में घोषणा की कि जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ विलय-पत्र के निष्पादन और 25 नवंबर 1949 की उद्घोषणा (जिसके द्वारा भारत का संविधान अपनाया गया) जारी होने के बाद जम्मू-कश्मीर राज्य की संप्रभुता का कोई तत्व नहीं बचता है।
शीर्ष अदालत ने इस तरह माना कि भारत का संविधान संवैधानिक शासन के लिए एक पूर्ण संहिता है। पीठ ने कहा, “संवैधानिक आदेश संख्या 273 द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य में भारत के संविधान को संपूर्ण रूप से लागू करने के बाद जम्मू-कश्मीर राज्य का संविधान निष्क्रिय हो गया है और इसे निरर्थक घोषित किया गया है।”
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के साथ मिलकर न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति कांत द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि जम्मू-कश्मीर राज्य के पास ‘कोई ऐसी आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है जो देश के अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त शक्तियों और विशेषाधिकारों से अलग हो।
पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 संप्रभुता नहीं बल्कि असममित संघवाद की एक विशेषता थी। पीठ ने राज्य के पुनर्गठन के संबंध में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उस वक्तव्य का अमल करने का निर्देश दिया जिसमें उन्होंने अदालत में कहा था कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को छोड़कर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।
संविधान पीठ ने कहा है कि सॉलिस्टर जनरल मेहता के उस बयान के मद्देनजर हमें यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं लगती कि जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत स्वीकार्य है या नहीं। हम पुनर्गठन की वैधता को बरकरार रखते हैं।
शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत गठित जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए 30 सितंबर 2024 तक कदम उठाने का निर्देश दिया है।
शीर्ष अदालत की ओर से इस प्रकरण में तीन फैसले सुनाए गए। इनमें एक फैसला मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने लिखा। दूसरा फैसला न्यायमूर्ति कौल ने और तीसरा न्यायमूर्ति खन्ना ने सुनाया।
न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने निर्णय में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल के फैसले से सहमति जतायी।
संविधान पीठ ने अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने दो अगस्त 2023 को याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुननी शुरू की थीं। संबंधित पक्षों की दलीलें 16 दिनों तक सुनने के बाद पांच सितंबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
संविधान पीठ ने इस प्रकरण में दायर विभिन्न याचिकाओं पर याचिकादायर करने वालों पर, जवाब देने वालों केंद्र और अन्य संबद्ध पक्षों को सुनने के बाद सितंबर में फैसला सुरक्षित कर लिया था।
केंद्र सरकार ने 5-6 अगस्त 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 में बदलाव कर जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य के दर्जे को खत्म कर दिया था। शीर्ष अदालत के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ताओं – कपिल सिब्बल, राजीव धवन, गोपाल सुब्रमण्यम, दुष्यंत दवे, जफर शाह, गोपाल शंकरनारायणन – ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश कीं थी। याचिकाकर्ताओं में शामिल सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का प्रतिनिधित्व श्री धवन किया था।

श्री सिब्बल ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद मोहम्मद अकबर लोन की ओर से दलीलें दी थीं। केंद्र सरकार का पक्ष अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा था। इनके अलावा कई अन्य व्यक्तियों ने अधिवक्ताओं के माध्यम से न्यायालय के समक्ष सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप करते हुए दलीलें पेश की थीं।
श्री मोदी ने एक्स पर इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “आज का फैसला सिर्फ एक कानूनी फैसला नहीं है बल्कि यह आशा की किरण होने के साथ ही उज्जवल भविष्य का वादा है तथा एक मजबूत और अधिक एकजुट भारत के निर्माण के हमारे सामूहिक संकल्प का प्रमाण है।”
उच्चतम न्यायालय के फैसले को ‘ऐतिहासिक’ बताते हुए उन्होंने कहा , “यह संवैधानिक रूप से 05 अगस्त, 2019 को संसद द्वारा लिए गये फैसले को बरकरार रखता है। यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है। न्यायालय ने अपने गहन ज्ञान से एकता के मूल तत्व को मजबूत किया है, जिसे हम भारतीय होने के नाते सबसे अधिक महत्व देते हैं।

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प्रधानमंत्री ने जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को आश्वास्त करते हुए कहा , “आपके सपनों को पूरा करने के लिए हमारी प्रतिबद्धता अटूट है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि प्रगति का लाभ न केवल आप तक पहुंचे, बल्कि इसका लाभ हमारे समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाले वर्गों तक भी पहुंचे, जो अनुच्छेद 370 के कारण पीड़ित थे।”
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए आज कहा कि इस बारे में भ्रम का कुहासा साफ हो गया है और अब गुलाम कश्मीर को पाकिस्तान के पंजे से मुक्त कराना चाहिए।
विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने धारा 370 पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय अमर बलिदानी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक कृतज्ञ राष्ट्र की श्रद्धांजलि जैसा है। आज के निर्णय से यह प्रमाणित होता है कि 1947 – 48 में महाराजा हरी सिंह द्वारा हस्ताक्षर किया गया विलय पत्र अंतिम और वैध था। जम्मू कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा।
विहिप के नेता ने कहा “तब की सरकार ने अपनी कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण अनुच्छेद 370 से जम्मू कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया हुआ था। भारत की संसद ने इस अनुच्छेद को हटा दिया था। किंतु फिर भी इस वाद के कारण कुछ कुहासा छाया हुआ था जो आज के निर्णय के बाद से साफ़ हो गया। हमें विश्वास है कि जम्मू कश्मीर में विकास की धारा इसी तेजी से बढ़ती रहेगी।”

श्री कुमार ने कहा ,“अब जम्मू और कश्मीर में एक ही बड़ा काम बचा हुआ रह गया है। वह है, गुलाम कश्मीर की पाकिस्तान के पंजे से मुक्ति। हमें विश्वास है कि सशक्त भारत और संकल्पित सरकार पाक अधिकृत कश्मीर को भी जल्द मुक्त करा सकेगी।”
कांग्रेस ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के मोदी सरकार के फैसले को उच्चतम न्यायालय ने जिस तरह से सही ठहराया है, पार्टी सम्मानपूर्वक उससे असहमति व्यक्त करती है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम तथा अभिषेक मनु सिंघवी ने सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर आए उच्चतम न्यायालय के फैसले पर असहमति जताई और कहा कि पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था कांग्रेस कार्य समिति का संकल्प है कि अनुच्छेद 370 तब तक सम्मान के योग्य है जब तक कि इसे भारत के संविधान के अनुसार संशोधित नहीं किया जाता।
श्री चिदम्बरम ने कहा, “हम इस फैसले की इस बात से भी निराश हैं कि शीर्ष न्यायालय ने राज्य को विभाजित कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने के प्रश्न पर निर्णय नहीं लिया। कांग्रेस ने हमेशा जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के केंद्र के फैसले का विरोध कर जम्मू कश्मीर में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की है। हम इस संबंध में आए शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा तुरंत बहाल किया जाना चाहिए और लद्दाख के लोगों की आकांक्षाएं भी पूरी होनी चाहिए।”

उन्होंने विधानसभा चुनाव कराने के उच्चतम न्यायालय के निर्देश का स्वागत किया और कहा कि राज्य में तत्काल विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिए। उनका कहना था कि आजादी के बाद भारत में विलय की प्रक्रिया पूरी होने के बाद से जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जम्मू-कश्मीर के लोग भारतीय नागरिक हैं और कांग्रेस राज्य की सुरक्षा, शांति, विकास और प्रगति के लिए काम करने के अपने संकल्प को दोहराती हैं।
श्री सिंघवी ने कहा, “हम उच्चतम न्यायालय के निर्णय के सामने नतमस्तक हैं, लेकिन देश के एक आम नागरिक की हैसियत से कह सकता हूं कि इस निर्णय में एक विरोधाभास है। फैसले में यह नहीं कहा गया है कि आखिर एक प्रदेश का दर्जा घटाकर उसे केंद्र शासित प्रदेश क्यों बनाया गया है जबकि दूसरी तरफ न्यायालय लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले को वैद्य मानता है। एक ही प्रदेश के एक हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बनाने को लेकर कोई निर्णय नहीं देना और फिर उसी राज्य के दूसरे हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बनाने को सही बताना विरोधाभास है। यह संवैधानिक गलती दिख रही है। फैसले में एक तरफ सरकार के आश्वासन को माना गया है और दूसरी तरफ अगले सितम्बर तक चुनाव कराए जाने का निर्णय दिया है।”
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी 18 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी की दर आठ प्रतिशत है। शहरी क्षेत्र में बेरोजगोरी 31 प्रतिशत जबकि महिलाओं में 51 प्रतिशत है। जम्मू-कश्मीर में विनिवेश 2021-22 में पहले वित्त वर्ष की तुलना में काफी कम है।
जम्मू कश्मीर में मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने भी उच्चतम न्यायालय की ओर से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखने पर ‘गहरी निराशा’ व्यक्त की।
पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने शीर्ष अदालत के फैसले पर प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए कहा कि ‘संघर्ष’ जारी रहेगा और वह ‘लंबी लड़ाई’ के लिए तैयार हैं।

उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा,“निराश हूं लेकिन हतोत्साहित नहीं। संघर्ष जारी रहेगा. यहां तक ​​पहुंचने में भारतीय जनता पार्टी को दशकों लग गए. हम लंबी दौड़ के लिए भी तैयार हैं। हम अनुच्छेद 370 पर काबू पा लेंगे।”
एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के प्रमुख गुलाम नबी आजाद ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग फैसले से खुश नहीं हैं।
श्री आजाद ने संवाददाताओं से कहा,“जम्मू-कश्मीर के लोग आशान्वित थे। शीर्ष अदालत की पीठ अच्छी थी। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाना एक गलती थी। यह जल्दबाजी में किया गया था। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों से भी पूछा जाना चाहिए था। जम्मू-कश्मीर के लोग इस फैसले से निराश हैं।”
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने कहा कि अनुच्छेद 370 भले ही कानूनी रूप से खत्म हो गया हो, लेकिन यह हमेशा ‘हमारी राजनीतिक आकांक्षाओं का हिस्सा’ बना रहेगा।
उन्होंने कहा,“अनुच्छेद 370 पर शीर्ष अदालत का फैसला निराशाजनक है। न्याय एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के लोगों से दूर है। अनुच्छेद 370 भले ही कानूनी रूप से खत्म कर दिया गया हो, लेकिन यह हमेशा हमारी राजनीतिक आकांक्षाओं का हिस्सा बना रहेगा।
श्री लोन ने एक्स पर पोस्ट में कहा,“राज्य के दर्जे के मामले में, शीर्ष अदालत ने इस पर टिप्पणी करने से भी परहेज किया, इस प्रकार पूर्वता का हवाला देकर पूरे देश को भविष्य में किसी भी दुरुपयोग से बचाया। फिर भी उसी दुरुपयोग को जम्मू-कश्मीर में सूक्ष्मता से समर्थन दिया गया। हमें उम्मीद है कि भविष्य की तारीख में न्याय मिलेगा।”
उच्चतम न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखने के कुछ घंटों बाद, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने अगले एक सप्ताह के लिए अपनी सभी राजनीतिक गतिविधियों को निलंबित करने का फैसला किया।पीडीपी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए यह फैसला लिया गया है।
पीडीपी ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती अपने चल रहे सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रम के हिस्से के रूप में कई कार्यकर्ता सम्मेलनों को संबोधित करने वाली थीं और अगले कुछ दिनों में ऐसे कई सम्मेलन प्रस्तावित थे ।

पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सुहैल बुखारी ने एक बयान में कहा कि पार्टी द्वारा कई अन्य राजनीतिक गतिविधियां भी निर्धारित की गईं लेकिन अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर इस महत्वपूर्ण मोड़ पर अपने लोगों के साथ एकजुटता से खड़े होने के लिए, हमने अगले एक सप्ताह के लिए अपनी सभी राजनीतिक गतिविधियों को रद्द करने का फैसला किया है।
वहीं अपनी पार्टी ने कहा कि अनुच्छेद 370 पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से जम्मू-कश्मीर के लोगों को गहरा दुख हुआ है। पार्टी ने एक बयान में कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के पांच अगस्त, 2019 के कदम को बरकरार रखने वाले शीर्ष न्यायालय के फैसले ने प्रदेश के लोगों को बहुत दुखी किया है।
पार्टी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि वर्षों और दशकों से लोगों को यह विश्वास हो गया है कि संविधान का यह अनुच्छेद स्थायी है। बयान में कहा गया,“भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले ने अब स्पष्ट कर दिया है कि यह अनुच्छेद हमेशा के लिए चला गया है, जिससे लोगों को गहरी निराशा हुई है। आगे आएं और लोगों को आश्वस्त करें कि उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाएगा।”
अपनी पार्टी सरकार से आग्रह करती है कि अधिवास कानून को इस तरह से संवैधानिक ढांचे में लाया जाए, जिससे प्रदेश के निवासियों को भूमि और नौकरियों पर विशेष अधिकार की गारंटी मिले। बयान में कहा गया,“सरकार को प्रदेश का राज्य का दर्जा तत्काल बहाल करना और विधानसभा चुनाव शीघ्र कराना सुनिश्चित करना चाहिए।” बयान में कहा गया है, “इससे निवासियों को अपने स्वयं के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम बनाया जा सकेगा।”
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अनुच्छेद 370 पर उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘परेशान करने वाला’ करार देते हुए कहा कि इसके संविधान के संघीय ढांचे पर गंभीर परिणाम होंगे।
माकपा पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को भंग करने की चुनौती को खारिज करने का उच्चतम न्यायालय का फैसला परेशान करने वाला है।

बयान में कहा गया, “हमारे संविधान के संघीय ढांचे के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे, जो इसकी मौलिक विशेषताओं में से एक है। फैसले में कहा गया है कि विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद जम्मू-कश्मीर संप्रभुता के किसी भी तत्व को बरकरार नहीं रखता है और इसलिए जम्मू-कश्मीर का संविधान निरर्थक है, लेकिन, क्या विलय पत्र पर किया गया हस्ताक्षर अनुच्छेद 370 में निहित विशेष दर्जे को बनाए रखने की शर्त पर नहीं था?”
बयान में कहा गया कि फैसले में घोषणा की गई है कि जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ के किसी भी अन्य राज्य की तरह है, जिससे यह अनुच्छेद 371 के विभिन्न खंडों के अंतर्गत पूर्वोत्तर राज्यों और कुछ अन्य को दिए गए विशेष दर्जे से भी वंचित हो गया है।
इस फैसले में जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के गुण-दोष पर विचार करने से बचते हुए कहा गया है कि सॉलिसिटर जनरल ने राज्य का दर्जा वापस करने का वादा किया है। साथ ही अलग लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के निर्माण को वैध माना गया है। इसलिए, बहाली जम्मू-कश्मीर के मूल राज्य के लिए नहीं है, बल्कि इसका केवल एक हिस्सा है और यहां तक कि यह भी कागज पर एक आश्वासन दिया गया है।

बयान मे कहा गया कि अजीब बात है कि उच्चतम न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग को जम्मू-कश्मीर में जल्द से जल्द 30 सितंबर, 2024 तक चुनाव कराने का निर्देश दिया। इस प्रकार, यह फैसला केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए एक लंबा अवसर प्रदान करता है।
जब कोई राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन है और उसका राज्य का दर्जा भंग हो गया है, तो क्या निर्वाचित विधानसभा की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल की सहमति को विकल्प के रूप में लिया जा सकता है? अन्य सभी राज्यों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे जहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और इसकी सीमाओं को बदला जा सकता है या राज्य का दर्जा भंग किया जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत प्रावधान कहता है कि राष्ट्रपति किसी भी राज्य के पुनर्गठन के लिए विधेयक को संबंधित राज्य की विधायिका को उसकी राय जानने के लिए भेजेगा। यह फैसला केंद्र सरकार को एकतरफा नए राज्यों के गठन, क्षेत्रों के परिवर्तन की पहल करने, मौजूदा राज्यों की सीमाएं या नाम के संदर्भ में अनुमति देता है।

बयान में कहा गया है कि इससे संघवाद और निर्वाचित राज्य विधानसभाओं के अधिकारों का गंभीर हनन हो सकता है लेकिन मुख्य फैसले और दो सहमत निर्णयों के साथ इस पांच-पीठ के फैसले पर विस्तृत प्रतिक्रिया गहन अध्ययन के बाद ही दी जा सकती है।
बयान के अंत में कहा गया कि हालांकि, यह स्पष्ट है कि इस फैसले का हमारे संविधान के संघीय ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा और यह एकीकरण के नाम पर और राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए एकात्मक राज्य संरचना को मजबूत करने का विकल्प प्रदान करता है।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को लेकर उच्चतम न्यायालय के निर्णय की सराहना की। उन्होंने शीर्ष अदालत के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय अनुच्छेद 370 के कारण पीड़ित लोगों के आशाजनक भविष्य के लिए आशा की किरण के रूप में काम करेगा।उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 05 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के ऐतिहासिक निर्णय ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में शांति तथा विकास का मार्ग प्रशस्त किया है।उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र ने 2019 के बाद से आतंकवाद में भारी गिरावट और सकारात्मकता की एक नई लहर देखा है और अब क्षेत्र में विकास और अवसरों का एक नया युग है, जिसमें कमजोर लोगों के अधिकारों की रक्षा की जा रही है। उन्होंने अपील किया कि आइए हम मिलकर नया जम्मू-कश्मीर का निर्माण करते हैं।
अरुणाचल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री चोवना मेन ने भी जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए भारत के उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया।

उन्होंने कहा, “यह एक ऐतिहासिक फैसला है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सरकार के फैसले की पुष्टि की है, जो देश के कानूनी और राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह निर्णय जम्मू-कश्मीर को देश के शासन की मुख्यधारा में एकीकृत करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है और यह क्षेत्र के समग्र विकास में योगदान देगा।”
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उच्चतम न्यायालय का जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के संबंध में दिया गया फैसला केन्द्र सरकार के देशहित एवं जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के समग्र विकास हेतु लिए गए निर्णय पर मुहर है।श्री धामी ने कहा कि भारत की संप्रभुता, एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का जो ऐतिहासिक कार्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा किया गया उसे आज न्यायालय ने भी सही ठहराया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस ऐतिहासिक फैसले से जम्मू-कश्मीर के लोग देश की मुख्य धारा से जुड़ सकेंगे तथा राज्य में पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ ही निवेश बढ़ेगा तथा राज्य के हर क्षेत्र में विकास के नए द्वार खुलेंगे।

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