श्रम संहिताओं के खिलाफ हंगामा: मजदूर संगठनों ने मनाया ‘काला दिवस’

Labor Codes News: केंद्र सरकार द्वारा 21 नवंबर को अधिसूचित चार नए श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) ने देश भर में मजदूर आंदोलन को भड़का दिया है। 29 पुराने श्रम कानूनों को समेटकर लाए गए इन कोड्स—वेज कोड, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड—को ट्रेड यूनियनों ने ‘मजदूर-विरोधी’ और ‘कॉर्पोरेट गुलामी’ का दस्तावेज करार दिया है। संविधान दिवस पर 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने देश के सैकड़ों जिलों में प्रदर्शन, पुतला दहन और काला दिवस मनाया, जिसमें हड़ताल का अधिकार छिनना, छंटनी आसान होना और सामूहिक सौदेबाजी पर रोक जैसे मुद्दे प्रमुख रहे।

मजदूरों की एकजुट आवाज
दिल्ली के जंतर-मंतर पर हजारों मजदूरों ने ‘लेबर कोड हटाओ, मजदूर बचाओ’ के नारों के साथ धरना दिया। बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने कहा कि ये कोड्स मजदूरों के हड़ताल के अधिकार को छीन लेते हैं और ‘हायर एंड फायर’ नीति को बढ़ावा देते हैं, जिससे नौकरी की सुरक्षा खत्म हो जाएगी। 28 कामगार कर्मचारी कांग्रेस (केएकेएस) के चेयरमैन डॉ. उदित राज ने कहा, “ये चारों कोड्स—इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड-2020, ऑक्यूपेशनल सेफ्टी कोड-2020, सोशल सिक्योरिटी कोड-2020 और वेज कोड-2019—मजदूरों के लिए घातक हैं। ये कॉरपोरेट्स के हित में हैं, जहां गिग वर्कर्स को ईएसआईसी और ईपीएफओ से वंचित रखा गया है। हम पूरे देश में आंदोलन जारी रखेंगे।”

झारखंड के धनबाद में भारतीय ट्रेड यूनियन सेंटर (सीटू) ने रणधीर वर्मा चौक पर मोदी सरकार का पुतला फूंका। सीटू के नेताओं ने चेतावनी दी कि अगर कोड्स वापस नहीं लिए गए तो देश का चक्का जाम कर दिया जाएगा। वहीं, हरदोई (उत्तर प्रदेश) में यूपी मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन (यूपीएमएसआरए) ने चार संहिताओं को ‘गुलामी का करार’ बताते हुए 50 से अधिक प्रतिनिधियों के साथ विरोध रैली निकाली और राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन का ऐलान किया।

छत्तीसगढ़ के रायपुर में ट्रेड यूनियनों ने इन्हें ‘लोकतांत्रिक उल्लंघन’ करार दिया, जबकि भिलाई स्टील प्लांट के कर्मचारियों ने ट्रेनी के नाम पर ‘फ्री मजदूरों’ से काम करवाने का आरोप लगाया। पटना में एआईसीसीटीयू सहित किसान संगठनों ने संयुक्त प्रदर्शन कर डीएम को ज्ञापन सौंपा, जिसमें 1930-50 के 29 कानूनों को रद्द करने की निंदा की गई। राजस्थान के कोटा में सीपीआई(एम) ने कलेक्ट्रेट पर रैली निकाली, तो बिहार के गया में श्रम कानूनों की प्रतियां जलाई गईं।

संयुक्त किसान मोर्चा ने भी इसमें शामिल होकर 500 जिलों में किसान-मजदूर एकता का प्रदर्शन किया, जहां एमएसपी और नरेगा की 300 दिन की गारंटी की मांग जोड़ी गई।

नए कोड्स
सरकार का दावा है कि ये कोड्स श्रमिकों के लिए ‘सम्मान’ सुनिश्चित करेंगे, जिसमें ग्रेच्युटी की सीमा बढ़ाकर 30 लाख तक और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार शामिल है। श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने एक्स पर कहा, “मोदी सरकार की गारंटी: हर मजदूर के लिए सम्मान!” 10 हालांकि, यूनियनों का कहना है कि ये कॉर्पोरेट-हितैषी हैं। मुख्य आलोचनाएं:
मुद्दा पुराना प्रावधान नया कोड में बदलाव यूनियनों की चिंता
हड़ताल का अधिकार 14 दिनों की नोटिस 21 दिनों की अनिवार्य नोटिस, सार्वजनिक सेवाओं में विस्तार हड़ताल असंभव, मजदूरों का संघर्ष दबेगा
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छंटनी 100 से अधिक कर्मचारियों पर मंजूरी जरूरी 300 कर्मचारियों तक बिना मंजूरी ‘हायर एंड फायर’ आसान, नौकरी असुरक्षित
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यूनियन गठन आसान प्रक्रिया 51% सदस्यता अनिवार्य, अन्यथा 20% पर सीमित प्रतिनिधित्व यूनियनों की भूमिका कमजोर, सामूहिक सौदेबाजी प्रभावित
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गिग वर्कर्स सीमित सुरक्षा केवल रजिस्ट्रेशन, ईएसआईसी/ईपीएफओ नहीं असंगठित क्षेत्र असुरक्षित, शोषण बढ़ेगा
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निरीक्षण सख्त सिस्टम ढीला ढांचा, अधिकारी ‘फैसिलिटेटर’ सुरक्षा नियमों का उल्लंघन आसान
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ट्रेड यूनियनों ने इसे ‘एकतरफा’ बताया, क्योंकि भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी) की सिफारिशों को नजरअंदाज किया गया। हिंद मजदूर सभा जैसे संगठनों ने कहा कि ये कोड्स ट्रेड यूनियनों की भूमिका को कमजोर करते हैं।

राजनीतिक रंग
कांग्रेस ने इसे ‘राजनीति से प्रेरित’ न बताकर ‘मजदूर शोषण’ करार दिया। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “ये कोड्स कॉर्पोरेट्स को फायदा पहुंचाते हैं, जबकि न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये प्रतिमाह होना चाहिए।” 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों—इंटक, एटक, एचएमएस, सीआईटीयू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एईडब्लूए, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी—के संयुक्त मंच ने कोड्स को ‘गुलामी का दस्तावेज’ बताया। उनका आरोप है कि फिक्स्ड-टर्म एम्प्लॉयमेंट, छंटनी के नए नियम और हड़ताल के अधिकार पर अंकुश से नौकरी की स्थिरता खत्म हो जाएगी।

एटक महासचिव अमरजीत कौर ने कहा, “ये कोड मजदूरों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हैं। रात्रि शिफ्ट में महिलाओं की सुरक्षा कौन सुनिश्चित करेगा?” यूनियनों ने 2019 से चले आंदोलन का हवाला देते हुए बताया कि जुलाई 2025 में 25 करोड़ मजदूरों की हड़ताल के बावजूद सरकार ने संवाद की बजाय एकतरफा फैसला लिया।

सरकार ने विरोध को ‘राजनीतिक’ बताते हुए कहा कि ये सुधार निवेश बढ़ाएंगे और जटिलताएं कम करेंगे। लेकिन रक्षा असैन्य कर्मचारी महासंघ ने इसे ‘काला दिवस’ घोषित कर स्थायी रोजगार पर संकट बताया।

आगे की राह
यूनियनों ने चेतावनी दी कि अगर कोड्स वापस नहीं लिए गए तो बड़े स्तर पर हड़ताल होगी। संयुक्त मंच ने श्रम मंत्रालय से आईएलसी बुलाने और पुराने कानून बहाल करने की मांग की। विशेषज्ञों का मानना है कि ये सुधार व्यापार आसानी ला सकते हैं, लेकिन मजदूरों के बिना सहमति के लागू होने से आंदोलन तेज होगा।

मजदूरों का संघर्ष जारी है—क्या सरकार संवाद की राह अपनाएगी या टकराव बढ़ेगा? देश की सड़कों पर गूंज रहे नारे इसका संकेत दे रहे हैं।

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