खालिद और अन्य की जमानत का किया विरोध, बताया ‘रेजीम चेंज’ की साजिश

Clinical Conspiracy News: सुप्रीम कोर्ट में 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े साजिश मामले में दिल्ली पुलिस ने पूर्व जेएनयू छात्र नेता उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध किया है। पुलिस ने दंगों को ‘पूर्व नियोजित’ और ‘राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमला’ करार देते हुए कहा कि यह कोई सहज हिंसा नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित साजिश थी जो सरकार को अस्थिर करने का प्रयास था। सुनवाई मंगलवार (18 नवंबर) को हुई, जिसमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पुलिस की ओर से दलीलें पेश कीं। अगली सुनवाई 20 नवंबर को निर्धारित है।

दंगों को बताया ‘क्लिनिकल साजिश’
दिल्ली पुलिस के अनुसार, फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुए दंगे, जिसमें 53 लोगों की मौत और 700 से अधिक घायल हुए, कोई ‘प्रदर्शन का सहज परिणाम’ नहीं थे। बल्कि यह एक ‘ओर्केस्ट्रेटेड, पूर्व नियोजित और राष्ट्र की संप्रभुता पर हमला’ था। पुलिस ने दलील दी कि यह साजिश नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों को ‘कैमोफ्लाज’ के रूप में इस्तेमाल कर तैयार की गई थी, जिसका अंतिम लक्ष्य ‘रेजीम चेंज’ (सरकार बदलना) था।

तुषार मेहता ने कहा, “यह मिथक तोड़ना जरूरी है कि प्रदर्शन से दंगे भड़के। यह समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश थी।” उन्होंने आरोप लगाया कि दंगे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के समय भड़काए गए ताकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित किया जा सके और सीएए को मुसलमानों के खिलाफ ‘पोग्रोम’ के रूप में पेश किया जाए। पुलिस ने शरजील इमाम के एक बयान का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने दिल्ली सहित सभी शहरों में ‘चक्का जाम’ की अपील की थी, जो हिंसा को भड़काने का हिस्सा था।

आरोपी ही जिम्मेदार
उमर खालिद को सितंबर 2020 से और शरजील इमाम को जनवरी 2020 से हिरासत में रखा गया है। याचिकाकर्ताओं ने लंबी हिरासत (5 वर्ष से अधिक) को जमानत का आधार बताते हुए अनुच्छेद 436-ए CrPC का हवाला दिया। लेकिन पुलिस ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम) के तहत सख्त शर्तें लागू होती हैं, जहां ‘जेल ही नियम’ है, न कि जमानत।

पुलिस ने आरोप लगाया कि मुकदमे में देरी के लिए आरोपी ही जिम्मेदार हैं, जो फ्रेमिंग ऑफ चार्जेस को बार-बार टाल रहे हैं ताकि जमानत का आधार बन सके। एसवी राजू ने कहा, “अगर वे इतनी जल्दी में हैं, तो वे इंतजार क्यों कर रहे हैं?” पुलिस ने वादा किया कि बाधा न होने पर मुकदमा 6 महीने में पूरा हो सकता है।

अन्य आरोपियों पर भी सख्त रुख
जमानत का विरोध उमर खालिद और शरजील इमाम के अलावा गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर, शिफा-उर-रहमान, अतहर खान, अब्दुल खालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान और शादाब अहमद पर भी किया गया। पुलिस ने कहा कि इनका रोल ‘प्राइमा फेसी ग्रेव’ (प्रथम दृष्टया गंभीर) है और यूएपीए के तहत वे निर्दोष साबित करने का बोझ उठाएं।

बचाव पक्ष की दलीलें
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा कि उमर खालिद के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है—वह केवल एक एफआईआर में नामित हैं, कोई हथियार या फंड्स की बरामदगी नहीं हुई।

उन्होंने अन्य सह-आरोपियों जैसे नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ इकबाल तन्हा (जिन्हें 2021 में जमानत मिली) से समानता का हवाला दिया। लेकिन पुलिस ने इसे खारिज करते हुए कहा कि वह जमानत आदेश ‘गलत व्याख्या’ पर आधारित था।

कोर्ट की प्रतिक्रिया
जस्टिस अरविंद कुमार और एनवी अंजारिया की बेंच ने पुलिस से पूछा कि एक ही एफआईआर में कुछ को जमानत क्यों मिली। पुलिस ने स्पष्ट किया कि मामला तथ्यों पर नहीं, कानूनी व्याख्या पर आधारित है। बेंच ने कहा कि परिस्थितियों में कोई बदलाव न होने पर दोबारा जमानत पर विचार नहीं किया जा सकता।

यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट के 2 सितंबर 2025 के फैसले के खिलाफ है, जिसमें नौ आरोपियों की जमानत खारिज कर दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘प्रदर्शन के बहाने साजिशपूर्ण हिंसा’ की अनुमति नहीं दी जा सकती। विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला यूएपीए मामलों में जमानत के मानदंडों को प्रभावित कर सकता है।

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