रूस के तेल व्यापार पर नया हमला, टैरिफ लगाने वाले बिल को मिला समर्थन

Business News with Russia: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के साथ व्यापार जारी रखने वाले देशों को कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के लिए नई सख्त प्रतिबंधों का समर्थन किया है, जिसमें रूसी तेल के पुनर्विक्रय पर 500 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने वाला विधेयक शामिल है। ट्रंप ने चेतावनी दी कि ऐसे देशों को “बहुत कठोर रूप से प्रतिबंधित” किया जाएगा, और ईरान को भी इस सूची में जोड़ा जा सकता है। यह कदम यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के अमेरिकी प्रयासों का हिस्सा है, लेकिन भारत, चीन और ब्राजील जैसे प्रमुख रूसी तेल खरीदारों के लिए चिंता का विषय बन गया है।

ट्रंप ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा, “मैंने सुना है कि वे ऐसा कर रहे हैं, और यह मेरे लिए ठीक है। रिपब्लिकन बहुत कड़े प्रतिबंधों वाला विधेयक पारित कर रहे हैं… किसी भी देश पर जो रूस के साथ व्यवसाय कर रहा है।” उन्होंने ईरान का नाम लेते हुए कहा, “हम ईरान को भी सूत्र में जोड़ सकते हैं, मैंने यह सुझाव दिया था।” यह बयान ट्रंप के रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ शांति वार्ता के प्रयासों के विफल रहने के बाद आया है, जहां हाल ही में अलास्का में हुई बैठक से कोई प्रगति नहीं हुई।

कांग्रेस में सीनेटर लिंडसे ग्राहम और रिचर्ड ब्लुमेंथल द्वारा पेश ‘सैन्क्शनिंग रूस एक्ट ऑफ 2025’ विधेयक ने 85 सीनेटरों का समर्थन हासिल कर लिया है। यह विधेयक रूस के तेल, गैस, यूरेनियम और पेट्रोकेमिकल उत्पादों के द्वितीयक खरीद-फरोख्त पर 500 प्रतिशत टैरिफ लगाने की अनुमति देता है। सीनेट फॉरेन रिलेशंस कमिटी में इसे व्यापक समर्थन मिला है। ग्राहम ने जुलाई में जारी संयुक्त बयान में कहा, “ट्रंप प्रशासन ने रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए नई रणनीति अपनाई है… लेकिन इस युद्ध को खत्म करने का अंतिम हथियार चीन, भारत और ब्राजील जैसे देशों पर टैरिफ होंगे, जो सस्ते रूसी तेल खरीदकर पुतिन की युद्ध मशीन को मजबूत कर रहे हैं।”

ट्रंप प्रशासन ने पहले ही भारत पर रूसी तेल खरीद के कारण 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। अगस्त 2025 में जारी एग्जीक्यूटिव ऑर्डर में 25 प्रतिशत ‘रूसी तेल’ सरचार्ज जोड़ा गया, जो मौजूदा 25 प्रतिशत टैरिफ के ऊपर था। इससे भारत के निर्यात पर असर पड़ा है। अक्टूबर में ट्रंप ने दावा किया कि भारत ने रूसी तेल की खरीद “काफी कम” कर दी है, और कहा, “हम टैरिफ कम करेंगे।” लेकिन नई विधेयक के समर्थन से साफ है कि दबाव जारी रहेगा। यूरोपीय थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के अनुसार, अक्टूबर में भारत ने रूस से 2.5 अरब यूरो का कच्चा तेल खरीदा, जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बनाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ये प्रतिबंध रूस की युद्ध अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएंगे, क्योंकि तेल राजस्व मॉस्को के सैन्य बजट का 40 प्रतिशत फंड करता है। हालांकि, कुछ विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि 500 प्रतिशत टैरिफ जैसे कदम उल्टे असर डाल सकते हैं, क्योंकि वे यूरोपीय संघ जैसे सहयोगियों को भी प्रभावित करेंगे। 2024 में यूरोपीय संघ के रूसी एलएनजी आयात 19.3 प्रतिशत बढ़े थे। ट्रंप ने सितंबर में कहा था कि नाटो सदस्यों द्वारा रूसी तेल खरीद बंद होने पर ही “मेजर सैन्क्शंस” लगाए जाएंगे।

भारत सरकार ने अभी तक इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) जैसी कंपनियां अब अन्य स्रोतों से तेल खरीदने की ओर रुख कर सकती हैं। रूस ने क्रिप्टोकरेंसी का सहारा लेकर प्रतिबंधों से बचने की कोशिश की है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने रोसनेफ्ट और लुकोइल जैसे प्रमुख तेल दिग्गजों पर पहले ही “मासिव सैन्क्शंस” लगा दिए हैं।

यह विकास वैश्विक ऊर्जा बाजार को हिला सकता है, जहां तेल कीमतें पहले ही अस्थिर हैं। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है, जहां कुछ यूजर्स इसे “ट्रंप का चेकमेट मूव” बता रहे हैं, तो कुछ भारत पर दबाव को अनुचित मान रहे हैं। जैसे कि एक एक्स पोस्ट में कहा गया, “यह रूस के ऊर्जा खरीदारों जैसे चीन, भारत और तुर्की के लिए धमकी है। भारत ने पहले ही आयात कम कर दिए हैं।”

ट्रंप की यह रणनीति यूक्रेन को सहायता बढ़ाने और रूस को शांति वार्ता के लिए मजबूर करने का प्रयास है, लेकिन वैश्विक व्यापार पर इसके प्रभाव लंबे समय तक महसूस होंगे।

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