एक महीने से चले आ रहे इस हाई-वोल्टेज अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीएम नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे दिग्गजों ने जमकर जुबानी जंग लड़ी। सवाल अब यही है कि राज्य का माहौल किस तरफ झुका है? क्या बीजेपी वाकई कमजोर पड़ रही है, नीतीश कुमार की ‘तेजी’ कामयाब हुई, और तेजस्वी के वादों ने युवाओं का दिल जीत लिया?
बीजेपी पर सवालों का दौर: कमजोरी की आहट या मजबूत रणनीति?
एनडीए के प्रमुख घटक बीजेपी पर विपक्ष ने लगातार हमला बोला। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने किशनगंज और पूर्णिया की रैलियों में बीजेपी-आरएसएस पर देश को बांटने का आरोप लगाया, जबकि इंडिया गठबंधन को एकजुट करने का दावा किया। प्रियंका गांधी ने कहा कि नीतीश के 20 साल के शासन में महिलाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। विपक्ष का दावा है कि बीजेपी बिहार को ‘गुजरात के हवाले’ कर रही है, जैसा कि प्रशांत किशोर ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए।
ग्राउंड पर भी बीजेपी की कुछ कमजोरियां नजर आ रही हैं। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक यूजर ने लिखा, “ओवरऑल फील इन बिहार: नीतीश सीनियर पार्टनर के रूप में लौटेंगे, बीजेपी 14 नवंबर के बाद कमजोर हो जाएगी।” एक अन्य पोस्ट में कहा गया कि दलित वोटों का 60% हिस्सा इंडिया गठबंधन की ओर खिसक रहा है, खासकर सीजेआई पर जूते फेंकने की घटना से दलित समुदाय नाराज है। जनादेश 2025 सर्वे के मुताबिक, महागठबंधन को 48% वोट शेयर मिल सकता है, जबकि एनडीए को 39%।
फिर भी, बीजेपी आश्वस्त है। यूनियन मिनिस्टर धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि जनता मोदी-नीतीश पर भरोसा करती है, और विपक्ष के ‘मुनgeri लाल के हसीन सपने’ कामयाब नहीं होंगे। अमित शाह ने अरवल में कहा कि विपक्ष घुसपैठियों के लिए ‘कोरिडोर’ बना रहा है। बीजेपी सांसद रवि किशन का दावा है कि महागठबंधन हार की कगार पर है, और कई आरजेडी सीटें एनडीए जीतेगी।
सहानुभूति और विकास का दांव
‘नीतीश तेज’ का मतलब शायद उनकी तेज रफ्तार से है, जो 75 साल की उम्र में भी थकी नहीं। स्वास्थ्य संबंधी अफवाहों को खारिज करते हुए नीतीश ने रोहतास, औरंगाबाद और कैमूर में रैलियां कीं। उन्होंने कहा, “आरजेडी के राज में रात को बाहर निकलना मुश्किल था, लेकिन हमने 20 सालों में शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में क्रांति लाई।” उनकी अनुपस्थिति पीएम मोदी की रैलियों में विपक्ष के लिए हथियार बनी—कांग्रेस का दावा है कि बीजेपी नीतीश को दोबारा सीएम नहीं बनाएगी।
ग्राउंड रिपोर्ट्स में नीतीश को सहानुभूति का फायदा मिल रहा है। एक एक्स पोस्ट में लिखा, “नीतीश अपेक्षा से बेहतर कर रहे हैं, कोई गुस्सा नहीं। लोग इसे उनका आखिरी चुनाव मानकर वोट देंगे।” एनडीए का दावा है कि महिलाओं ने सुरक्षित माहौल के लिए नीतीश को समर्थन दिया। जेडीयू के 2020 में 43 सीटें जीतने के बाद इस बार बढ़ोतरी की उम्मीद है। बीजेपी के प्रदीप ने कहा कि शाह ने साफ किया—बिहार मोदी-नीतीश के नेतृत्व में वोट देगा।
युवाओं का सपना या अवास्तविक ‘रिटर्न गिफ्ट’?
तेजस्वी यादव ने प्रचार के आखिरी दिन अपना 36वां जन्मदिन मनाया और समर्थकों को ‘रिटर्न गिफ्ट’ देने का वादा किया।
महागठबंधन का घोषणापत्र ‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ पॉपुलिस्ट वादों से भरा: हर परिवार में एक सरकारी नौकरी 20 दिनों में, महिलाओं को 5 साल तक 2,500 रुपये मासिक, पुरानी पेंशन बहाली, 200 यूनिट मुफ्त बिजली, 25 लाख स्वास्थ्य बीमा, सभी फसलों पर एमएसपी, और आरक्षण सीमा 50% से ऊपर। तेजस्वी ने कहा, “राज्य में सकारात्मक माहौल है, लोग बदलाव चाहते हैं।”
सर्वे में तेजस्वी सबसे लोकप्रिय सीएम फेस हैं—56% समर्थन। एक पोस्ट में कहा गया, “तेजस्वी अब सबसे पॉपुलर सीएम फेस हैं, बिहार एनडीए के हाथ से फिसल रहा।” ग्राउंड पर महागठबंधन का मोमेंटम बढ़ रहा है, खासकर युवाओं और बेरोजगारों में। लेकिन आलोचना भी है: एक यूजर ने लिखा, “तेजस्वी के अवास्तविक वादे कनेक्शन तोड़ रहे, लोग झूठ नहीं खरीद रहे।” एनडीए उन्हें ‘जंगल राज का युवराज’ कह रहा है।
टाइट मुकाबला, बदलाव की हवा
प्रचार खत्म होने के बाद बिहार में सन्नाटा है, लेकिन उत्साह बरकरार। पहले चरण के मतदान पर तेजस्वी ने ईसी से पुरुष-महिला वोटर टर्नआउट की मांग की। एनडीए का दावा—225 सीटें, जबकि महागठबंधन 140-160 का लक्ष्य। प्रशांत किशोर की जन सुराज को 0-5 सीटें मिलने की संभावना, जो एनडीए को फायदा पहुंचा रही।
एक एक्स थ्रेड में लिखा, “एनडीए का एज है, लेकिन क्लोज फाइट। नीतीश की सड़कें-बिजली का क्रेडिट है, लेकिन नौकरियां नहीं। वोट प्राशांत को जाएंगे, लेकिन चिराग पासवान कवर करेंगे।” दूसरी ओर, “महागठबंधन यूनाइटेड, मोमेंटम गेनिंग—तेजस्वी सीएम बनेगा।”
कुल मिलाकर, बिहार में बदलाव की हवा है, लेकिन स्थिरता का भरोसा भी। 14 नवंबर को साफ होगा कि वादे जीतेंगे या उपलब्धियां। बिहारी मतदाता फैसला ले चुके हैं—अब गेंद ईवीएम के पाले में।

