Bihar Election News: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मैदान में इस बार सबसे जोरदार आवाज न नेताओं की है, न नारों की—बल्कि 3.72 करोड़ महिला वोटरों की। पिछले एक साल में ही 15 लाख नई महिलाओं के नाम मतदाता सूची में जुड़ चुके हैं, जो कुल वोटरों का लगभग 48 प्रतिशत हैं। आंकड़े साफ बयान कर रहे हैं कि महिलाएं अब ‘मौन मतदाता’ नहीं रहीं, बल्कि ‘क्वीनमेकर’ बनकर राजनीतिक समीकरण बदलने को तैयार हैं। हालिया सर्वे और ट्रेंड बताते हैं कि इनका झुकाव एनडीए की ओर है, खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला-केंद्रित योजनाओं के चलते। लेकिन विपक्ष की ओर से भी तेजस्वी यादव जैसे नेता महिला वोटरों को लुभाने के लिए नई रणनीतियां अपना रहे हैं। बिहार में चुनावी हलचल तेज हो चुकी है। 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होने वाले मतदान के बाद 14 नवंबर को नतीजे आएंगे। कुल 243 सीटों पर एनडीए (जदयू-बीजेपी गठबंधन) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि महिला वोटर ही इस बार ‘भाग्य विधाता’ साबित होंगी। 2020 के चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.7 रहा था, जो पुरुषों के 54.6 से कहीं ज्यादा था। इसी रुझान ने एनडीए को सत्ता की कुर्सी दिलाई थी। महिला वोटरों का रुझान: एनडीए को बढ़त, नीतीश का ‘महिला कार्ड’ काम कर रहा हालिया सर्वेक्षणों से साफ है कि महिला वोटरों का बड़ा हिस्सा एनडीए के साथ है। इंकासाइट सर्वे के मुताबिक, 45 प्रतिशत महिलाओं ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया, जबकि तेजस्वी यादव को केवल 31 प्रतिशत का समर्थन मिला। वहीं, एसेंडिया स्ट्रैटजीज के पोल में एनडीए को 45 प्रतिशत वोट शेयर मिलने का अनुमान है, जिसमें महिला वोटरों की भूमिका अहम है। वोट वाइब सर्वे भी एनडीए को मामूली बढ़त देता है, खासकर ‘महिला रोजगार योजना’ के चलते। नीतीश कुमार की सरकार ने महिलाओं के लिए कई कदम उठाए हैं।
‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के तहत 1 करोड़ महिलाओं को 10-10 हजार रुपये स्वरोजगार के लिए दिए जा चुके हैं, जिससे 58 प्रतिशत लाभार्थियों ने अपना छोटा कारोबार शुरू किया। इसके अलावा, शराबबंदी, 35 प्रतिशत आरक्षण सरकारी नौकरियों में, और जीविका दीदियों की सशक्तिकरण जैसी योजनाओं ने महिलाओं का भरोसा जीता। मुजफ्फरपुर, वैशाली और सीतामढ़ी जैसे जिलों में महिला वोटरों की संख्या 50 हजार से ज्यादा बढ़ी है, जहां एनडीए की जीत पक्की मानी जा रही। एनडीए ने उम्मीदवारों की सूची में भी महिलाओं को प्राथमिकता दी है। बीजेपी और जदयू ने क्रमशः 13-13 महिलाओं को 101-101 सीटों पर टिकट दिए, कुल 35 महिलाएं मैदान में। जन सुराज पार्टी ने तो 40 सीटों पर महिलाओं को टिकट देने का वादा किया है। विपक्ष की रणनीति: तेजस्वी का ‘जीविका दीदी’ वादा, लेकिन चुनौतियां बरकरार महागठबंधन भी चुप नहीं बैठा। तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों को 30 हजार रुपये मासिक वेतन देने का ऐलान किया, जो महिला वोटरों को सीधे प्रभावित कर सकता है। आरजेडी ने 143 सीटों पर 24 महिलाओं को टिकट दिए, जबकि कांग्रेस ने 61 में से 5। लेकिन सर्वे बताते हैं कि विपक्ष को मुस्लिम-यादव और एससी वोटरों पर भरोसा है, जबकि ऊपरी जाति, एनवाईओबीसी और ईबीसी महिलाएं एनडीए की ओर हैं। 2020 में जहां महिलाओं ने एनडीए को फायदा पहुंचाया, वहीं इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी युवा और महिला वोट काट सकती है। फिर भी, एनडीए को महिला टर्नआउट से 175 सीटें मिलने का अनुमान है, अगर महिलाएं पुरुषों से 3 प्रतिशत ज्यादा वोट दें। चुनौतियां: प्रतिनिधित्व की कमी और मतदाता सूची विवाद महिला वोटरों की ताकत के बावजूद, उम्मीदवारों में उनका प्रतिनिधित्व महज 12-16 प्रतिशत है। 2010 में 34 महिला विधायक चुनी गईं, जो अब घटकर 23 रह गईं। विपक्ष का आरोप है कि एनडीए ने मतदाता सूची के विशेष संशोधन (SIR) में 22.7 लाख महिलाओं के नाम काटे, जबकि पुरुषों के 15.5 लाख। इससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है। चुनाव आयोग ने बुर्का या घूंघट में वोटिंग पर पाबंदी लगाई है, जिसकी एनडीए ने सराहना की, लेकिन विपक्ष ने इसे ‘राजनीतिक साजिश’ बताया। निष्कर्ष: महिला शक्ति तय करेगी बिहार का भविष्य बिहार की राजनीति अब ‘नारी शक्ति’ पर केंद्रित है। एनडीए की योजनाओं से मजबूत पकड़ तो है, लेकिन विपक्ष के वादे और युवा अपील से मुकाबला कड़ा। विशेषज्ञ कहते हैं, “जिसकी ओर महिला वोट गई, सत्ता उसी के हाथ।” 11 नवंबर को मतदान के दिन यह साफ हो जाएगा कि बिहार की आधी आबादी किसके साथ है। फिलहाल, एनडीए को फायदा नजर आ रहा, लेकिन अंतिम गेंद चुनावी पिच पर ही बोलेगी।

