Diwali history: आज देश भर में दीपावली का त्योहार मनाया जा रहा है ऐसे में हर व्यक्ति के मन में सवाल उठता है कि आख़िर दिवाली क्यों मनाई जाती है। इसके पीछे का क्या इतिहास है ।दिल्ली NCR में पटाखे जलाने की सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दे दी है तो लोग दियों के साथ साथ पटाखे भी जला रहे हैं। ऐसे हमें दिवाली का मज़ा दोगुना हो जाता है।
बता दें कि भारत का सबसे बड़ा और सबसे अधिक प्रतीक्षित त्योहार, दीपावली, हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। ‘दीप’ (दीपक) और ‘आवली’ (पंक्ति) से मिलकर बना यह शब्द, सचमुच दीपों की श्रृंखला का त्योहार है, जो न केवल घरों को, बल्कि जीवन को भी प्रकाश से भर देता है। परंतु, इस प्रकाश पर्व को मनाने के पीछे सिर्फ एक नहीं, बल्कि कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएँ हैं, जो इसके महत्व को बहुआयामी बनाती हैं। चलिए विस्तार से बताते हैं…
दीपावली का गौरवशाली इतिहास
दीपावली को मनाने के पीछे कई प्रमुख कारण हैं, जो इसे सनातन धर्म के इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाते है।
1. भगवान राम का चौदह वर्ष बाद अयोध्या लौटना:
दीपावली का सबसे प्रचलित और सर्वमान्य कारण भगवान राम से जुड़ा है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान राम, अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ, लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध कर और चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे।
प्रभु राम के आगमन से अयोध्यावासियों का हृदय हर्ष और उल्लास से भर गया था। कार्तिक मास की वह गहन काली अमावस्या की रात्रि थी, जिसे अयोध्या के लोगों ने घी के असंख्य दीपक जलाकर जगमग कर दिया था। यह प्रकाश सिर्फ राजा के स्वागत का नहीं था, बल्कि अधर्म पर धर्म की, अंधकार पर प्रकाश की और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक था। तभी से यह परंपरा हर वर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।
2. देवी लक्ष्मी का प्राकट्य और पूजन:
एक अन्य महत्वपूर्ण पौराणिक कथा के अनुसार, दीपावली के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस दिन माता लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है। लोग अपने घरों को स्वच्छ और प्रकाशित करते हैं ताकि देवी लक्ष्मी उनके यहाँ वास करें।
इसके साथ ही, भगवान गणेश (बुद्धि और शुभता के देवता) की पूजा भी की जाती है, क्योंकि यह मान्यता है कि धन का सही उपयोग तभी हो सकता है जब उसके साथ विवेक और बुद्धि हो।
3. भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध:
द्वापर युग की एक कथा के अनुसार, दीपावली से ठीक एक दिन पहले, जिसे नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली कहते हैं, भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध किया था, जिसने सोलह हजार स्त्रियों को बंदी बना रखा था। इस विजय की खुशी में अगले दिन, अमावस्या को, गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियाँ मनाई थीं। यह घटना भी बुराई और अत्याचार के अंत का प्रतीक है।
4. जैन धर्म में महत्व:
जैन धर्म के अनुसार, दीपावली के दिन ही चौबीसवें तीर्थंकर, भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष (निर्वाण) की प्राप्ति हुई थी। जैन समुदाय इस दिन को ‘निर्वाण दिवस’ के रूप में मनाता है और ज्ञान के प्रकाश को फैलाने के लिए दीप प्रज्वलित करता है।
5. सिक्ख धर्म में बंदी छोड़ दिवस:
सिक्ख समुदाय भी दीपावली को विशेष रूप से मनाता है, जिसे ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में जाना जाता है। इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह जी को मुगल शासक जहाँगीर की कैद से मुक्त किया गया था और वे अन्य 52 राजाओं के साथ अमृतसर लौटे थे। इस खुशी में स्वर्ण मंदिर को दीपों से सजाया गया था।
दीपावली का वर्तमान में महत्व
आज दीपावली केवल धार्मिक कारणों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका एक गहरा सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक महत्व है:
आध्यात्मिक अर्थ: यह पर्व हमें भीतर के अंधकार (अज्ञानता, अहंकार, ईर्ष्या) को ज्ञान के प्रकाश से दूर करने का संदेश देता है।
आर्थिक महत्व: व्यापारी वर्ग के लिए यह दिन नया वित्तीय वर्ष (न्यू ईयर) माना जाता है। इस दिन लक्ष्मी-पूजन के साथ नए बहीखाते शुरू किए जाते हैं, जो कारोबार में समृद्धि की कामना का प्रतीक है।
सामाजिक समरसता: यह पर्व पारिवारिक मिलन और सामाजिक सौहार्द का अवसर होता है। लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयाँ और उपहार बाँटते हैं, जिससे रिश्तों में मिठास आती है।
कृषि और प्रकृति: यह समय खरीफ की फसल कटने के बाद का होता है, इसलिए किसान अपनी समृद्धि और खुशहाली का जश्न मनाते हैं।
दीपावली का यह पंच दिवसीय उत्सव धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलता है, जिसमें हर दिन का अपना विशिष्ट महत्व है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अंततः जीत हमेशा सत्य की होती है और जीवन में हमें हमेशा अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
प्रकाश के इस महापर्व की सभी देशवासियों को शुभकामनाएँ!

