पूर्व सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के राम मंदिर वाले बयान ने फिर मचाया हंगामा, ‘निर्माण ही अपवित्रता का मूल कार्य था’

Former CJI DY Chandrachud’s statement on the Ram Temple: पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ इन दिनों इंटरव्यूज की श्रृंखला में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। न्यूजलॉन्ड्री को दिए एक हालिया इंटरव्यू में राम मंदिर फैसले पर उनके बयानों ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। पत्रकार श्रीनिवासन जैन से बातचीत के दौरान चंद्रचूड़ ने बाबरी मस्जिद के निर्माण को “fundamental act of desecration” (अपवित्रता का मूल कार्य) करार दिया, जिससे राजनीतिक और कानूनी हलकों में बहस छिड़ गई है। आलोचकों का कहना है कि यह बयान सुप्रीम कोर्ट के 2019 के ऐतिहासिक फैसले से मेल नहीं खाता, जबकि समर्थक इसे हिंदू आस्था की पुष्टि बताते हैं।
इंटरव्यू में चंद्रचूड़ ने अयोध्या विवाद के फैसले को “शांति और सामंजस्य” की दृष्टि से उचित ठहराया। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद का 16वीं शताब्दी में निर्माण ही एक मंदिर के कथित ध्वंस पर आधारित था, और इसलिए मस्जिद के ध्वंस को न्यायोचित ठहराया जा सकता है। यह बयान न्यूजलॉन्ड्री के 24 सितंबर को प्रकाशित इंटरव्यू ‘फेथ वर्सेज एविडेंस’ में आया, जहां चंद्रचूड़ ने अयोध्या, ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे और कठिन फैसलों में “ईश्वर से मार्गदर्शन” लेने की बात भी की।

फैसले से मेल नहीं? आलोचना का दौर
सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर 2019 के फैसले में पांच जजों की बेंच (जिसके चंद्रचूड़ सदस्य थे) ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन हिंदू पक्ष को राम मंदिर निर्माण के लिए सौंप दी थी, लेकिन मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। फैसले में मंदिर के ध्वंस का कोई निर्णायक पुरातात्विक प्रमाण स्वीकार नहीं किया गया था; बल्कि हिंदू पक्ष की “आस्था” को प्राथमिकता दी गई। चंद्रचूड़ का यह नया बयान आलोचकों को लग रहा है कि यह फैसले के मूल तर्क से अलग है। वकील प्रशांत भूषण ने सोशल मीडिया पर इसे “चंद्रचूड़ का सांप्रदायिक मानसिकता उजागर करने वाला” बताया।
द वायर और द न्यूज मिनट जैसे माध्यमों में छपी रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चंद्रचूड़ का बयान फैसले के सह-लेखक होने के बावजूद विरोधाभासी लगता है, क्योंकि कोर्ट ने मस्जिद निर्माण को “अवैध” नहीं ठहराया था। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी बहस तेज है। एक यूजर ने लिखा, “चंद्रचूड़ कहते हैं कि मंदिर तोड़ा गया तो मस्जिद तोड़ी गई—लेकिन फैसले में यह तर्क नहीं था।” एक अन्य पोस्ट में कहा गया कि यह बयान “राजनीतिक” ज्यादा लगता है।

समर्थन और ऐतिहासिक संदर्भ
दूसरी ओर, ओपइंडिया जैसी वेबसाइट्स ने चंद्रचूड़ के बयान का बचाव किया है। उनका दावा है कि फैसले के एक “एडेंडम” (परिशिष्ट) में हिंदू आस्था की पुष्टि की गई थी, और चंद्रचूड़ का बयान उसी का विस्तार है। चंद्रचूड़ ने इंटरव्यू में जोर दिया कि फैसला “लोगों की शांति” को ध्यान में रखकर लिया गया था, और इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के बाद भी कोई हिंसा नहीं हुई थी। उन्होंने कहा, “संविधान न्यायाधीशों को नास्तिक होने की मांग नहीं करता; आस्था महत्वपूर्ण है, लेकिन न्याय सबके लिए समान है।”
यह विवाद चंद्रचूड़ के हाल के अन्य इंटरव्यूज से जुड़ता है। बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने राम मंदिर, अनुच्छेद 370 रद्द करने और राहुल गांधी पर सवालों का जवाब दिया था। बरखा दत्त के साथ भी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर बात की। पूर्व में ज्ञानवापी मामले में उनके एक टिप्पणी पर भी विवाद हुआ था, जहां उन्होंने “पूजा स्थल अधिनियम” के तहत धार्मिक चरित्र की जांच की संभावना जताई थी।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि चंद्रचूड़ के बयान से राम मंदिर फैसले पर नई बहस छिड़ सकती है, खासकर जब देश धार्मिक स्थलों पर चल रहे मुकदमों से जूझ रहा है। माक्तूब मीडिया ने इसे “सांप्रदायिक पूर्वाग्रह” का संकेत बताया, जबकि स्क्रॉल.इन ने कहा कि यह बयान “500 साल पुराने ध्वंस” को आधार बनाकर “विनाशकों को जमीन देने” का तर्क देता है। हालांकि, चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि कोर्ट की सुनवाई में उठने वाली चर्चा अंतिम फैसले का हिस्सा नहीं होती।
यह विवाद चंद्रचूड़ की विदाई के बाद भी उनके विरासत पर सवाल खड़े कर रहा है। राम मंदिर फैसला, जो शांति का प्रतीक बना, अब फिर राजनीतिक रंग ले रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे बयान न्यायपालिका की निष्पक्षता पर असर डाल सकते हैं। इधर, सोशल मीडिया पर #Chandrachud और #RamMandir ट्रेंड कर रहे हैं, जहां दोनों पक्षों की राय बंटी हुई है।

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