प्रेमानंद महाराज ने दूर किया संशय कहा पितरों के पुनर्जन्म के बाद भी पहुंचता है श्राद्ध और तर्पण का पुण्य

Premanand Maharaj explained the virtue of Shraddha and Tarpana: पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण की परंपरा हिंदू धर्म में गहराई से जुड़ी हुई है। लेकिन एक सवाल अक्सर लोगों के मन में उठता है- अगर पितरों का पुनर्जन्म हो चुका हो, तो उनके लिए किया गया श्राद्ध और तर्पण उन तक कैसे पहुंचता है? वृंदावन के प्रसिद्ध संत श्री हिट प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने हाल ही में अपने प्रवचन में इस संशय को दूर किया है। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराज ने स्पष्ट किया कि मृतक एक शुद्ध प्राणी है और जो भी श्राद्ध या तर्पण किया जाता है, वह जहां कहीं भी हो, किसी भी योनि में हो, उस तक अवश्य पहुंचता है।

प्रेमानंद महाराज के भजन मार्ग पर आधारित इस व्याख्या में उन्होंने कहा कि श्राद्ध का पुण्य उसी आत्मा तक पहुंचता है, जिसके लिए संकल्प लिया गया हो। चाहे आत्मा किसी भी रूप में हो या कहीं भी हो, वह पुण्य उसे प्राप्त होता है। एक भक्त के सवाल पर जवाब देते हुए महाराज ने इसे सरल लेकिन गहन तरीके से समझाया। लाइव हिंदुस्तान की रिपोर्ट में उल्लेख है कि महाराज के नवीनतम प्रवचन में उन्होंने पुनर्जन्म के बाद श्राद्ध के फल पर विस्तार से बात की। इसी प्रकार, एबीपी लाइव में प्रकाशित एक लेख में महाराज ने बताया कि मृत्यु के बाद परिवार से संबंध टूट जाता है, लेकिन श्राद्ध का लाभ आत्मा को मिलता रहता है, क्योंकि यह पूर्वजों की शांति और खुशहाली के लिए किया जाता है।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध न केवल पितरों को तृप्त करता है, बल्कि देवताओं और ऋषियों को भी संतुष्ट करता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने कहा है कि श्राद्ध से पितर, देवता और ऋषि सभी तृप्त होते हैं। गया, गंगा, पुष्कर और हरिद्वार जैसी पवित्र स्थलों पर पिंडदान करने से पितर विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं। यदि आत्मा प्रेतयोनि में हो, जो एक दुर्गति है, तो श्राद्ध और तर्पण उनकी सद्गति में सहयोग करते हैं। जो पूर्वज पितृलोक नहीं पहुंच सके या जिनका पुनर्जन्म नहीं हुआ, उनके लिए यह क्रिया विशेष महत्वपूर्ण है।

पितृ पक्ष में कौवों को भोजन कराने की परंपरा भी इसी से जुड़ी है। मान्यता है कि कौवों के माध्यम से भोजन पितरों तक पहुंचता है। फेसबुक पर एक पोस्ट में बताया गया है कि इस दौरान श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और पूजा से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। आजतक की विजुअल स्टोरी में प्रेमानंद महाराज के हवाले से कहा गया है कि तर्पण का पुण्य रूप उसी आत्मा तक जाता है, जिसके नाम से किया गया हो।

यह व्याख्या न केवल धार्मिक संशयों को दूर करती है, बल्कि पितृ पक्ष की परंपराओं को मजबूत करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि श्राद्ध कर्म से न केवल पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि वर्तमान जीवन में सुख-समृद्धि भी बढ़ती है। पितृ पक्ष 2025 में इस विषय पर और अधिक चर्चाएं हो रही हैं, जो हिंदू समाज में जागरूकता फैला रही हैं।

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