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बायर्स को ‘सुप्रीम राहत’

भरोसा टूट चुका था… उम्मीद की किरण नहीं दिख रही थी। जिंदगी भर की खून पसीने की कमाई अब अपने खाते में नहीं बल्कि बिल्डरों के खातों में जा चुकी थी। बैंकों से लिया गया ऋण सूद समेत वापस करने की टेंशन खाए जा रही है। इस सब के बीच सुप्रीम कोर्ट बॉयर्स के लिए ‘सुप्रीम राहत’ बनकर सामने आया है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार, नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, जिला प्रशासन और पुलिस से जब कोई राहत नहीं मिली तो बायर्स को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने बायर्स की याचिकाओं पर बिल्डरों के खिलाफ सख्त रूप दिखाया तो जिला प्रशासन और प्राधिकरण की सख्ती भी बढ़ गई। जिसने अधिकारियों के कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिल्डर और बायर्स के बीच सुलह के लिए हफ्तों बर्बाद किए गए। रिजल्ट रहा शून्य। बिल्डरों ने सुनी और अधिकारियों ने सुनी पर बायर्स को राहत फिर भी नहीं मिली। कोर्ट के कड़े रुख पर जिला प्रशासन भी सख्त हुआ है। अब जिला प्रशासन ने अपना बकाया लेने के लिए 3सी बिल्डर की कुर्की के लिए तहसील की रिकवरी टीम जाकर मुनादी कर रही है। आम्रपाली के डायरेक्टर को तहसील हवालात में बंद कर पैसे वसूले जा चुके हैं। शुभकामना बिल्डर के मालिकों पर बकाया निकलने पर मुनादी कराकर शिकंजा कसा गया। इसके अलावा अन्य बिल्डरों पर भी सेस, लेबर सेस तथा अन्य कर के रूप में बकाया धन वसूलने के लिए जिला प्रशासन ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले क्या प्राधिकरण, जिला प्रशासन और पुलिस सोई हुई थी। अब एफआईआर भी दर्ज हो रही हैं। अपना धन वसूलने के लिए जिला प्रशासन मुनादी, कुर्की जैसी कार्रवाई कर रहा है। प्राधिकरण भूखंडों को रद्द करने के लिए नोटिस भी भेज रहा है।  आखिर इससे पहले ये सभी सरकारी तंत्र किसके बस में था?

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