150 साल पुरानी लखनऊ की लाइब्रेरी,यहां ताड़ के पत्तों पे लिखा है बौद्ध साहित्य…

लखनऊ के कैसरबाग में सफेद बारादरी से चंद कदमों के फासले पर लखनऊ की सबसे पुरानी लाइब्रेरी है। इसकी स्थापना 1886 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हुई थी। उस वक्त इसे प्रांतीय संग्रहालय के रूप में जाना गया। जिसका एक हस्सा लाइब्रेरी भी थी। बाद में 1887 में इस लाइब्रेरी को छात्रों के लिए खोल दिया गया है। स्मार्ट सिटी परियोजना में इस लाइब्रेरी को चुना गया है।
लाइब्रेरी के बाहर लाल पथर पर इनका इतिहास दर्ज है। कहते हैं कि 1907 में लाइब्रेरी को लाल बारादरी की ऊपरी मंजिल पर स्थानांतरित किया गया। इसके बाद यह लाइब्रेरी 1910 में छतर मंजिल ले जाई गई। यहा वहां पब्लिक लाइब्रेरी के नाम से मशहूर हो गई। जहां लम्बे समय तक सीडीआरआई का दफ्तर रहा,वहां स्थानांतरित कर दी गई। 1926 में इसे मौजूदा स्थल पर फिर से खोला गया। खास इसी लाइब्रेरी के लिए इमारत बनाई थी,जिसकी आधारशिला सर हरकोट बटलर ने 1921 में रखी थी।

लाइब्रेरी के बाहर लगे पत्थरों पर उकेरी गई इबारत के अनुसार महमूदाबाद के राजा नवाब अली खां के पुत्र अमार बसन खां अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी जागीर के उत्तराधिकारी बने थे। उनको अमीरूद्दौला की उपाधि से नवाजा गया। उनके सम्मान का प्रतीक लखनऊ की अमीरूद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी हैा वहीं इतिहासविदों के अनुसार यह पुस्तकालय अवध के तालुकेदारों की ओर से संयुक्त् प्रांत की सरकार को उपहार स्वरूप दिया गया था।

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