कौटिल्या की पुस्तक में 40 प्रकार भ्रष्टाचार
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कौटिल्या की पुस्तक में 40 प्रकार भ्रष्टाचार

 

आम जीवन में नियम-मूल्यों के विरुद्ध आचरण को भ्रष्ट आचरण माना जाता है। जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के नियमों के विपरीत जाकर, अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए गलत व्यवहार करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। विज्ञान और तकनीक ने जहां मानव के जीवन को आसान बनाया तो वही मानव की निजी चाहतों ने उसे स्वार्थी बनाया। मानव की विकासयात्रा की शुरुआत के साथ ही समाज मे भ्रष्टाचार भी पनपने लगा था। कौटिल्य ने भी अपनी अहम किताब अर्थशास्त्र में 40 प्रकार के भ्रष्टाचारों का उल्लेख किया है। इसके साथ ही जैन और बौद्ध ग्रंथो में भी भ्रष्टाचार की प्रकृति और इसके स्वरूपो का उल्लेख किया गया है।
भारत को वर्ष 2021 में 85वां स्थान
भ्रष्टाचार आज भी समाज की रगो में समा चुका है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत को वर्ष 2021 के लिए 85वां स्थान दिया गया है। भारत को मिली यह रैंकिंग इस बात को दर्शाती है कि हमारे नीति-नियंताओं को सुशासन स्थापित करने की दिशा में अभी काफी काम करना है।

जीवन में भ्रष्टाचार को आर्थिक लाभ से ही जोड़ा जाता है। हालांकि भ्रष्टाचार हर उस क्षेत्र से जुड़ा है जो किसी न किसी रूप में मानव के कृत्यों और उनके व्यवहार से जुड़े हैं। मिशाल के तौर पर, एक सरकारी अधिकारी यदि अपने कार्यालय द्वारा मिले वाहन का उपयोग निजी कार्यों के लिए करता है तो यह भी एक नैतिक भ्रष्टाचार है। किसी भी किस्म के निजी लाभ के लिएअपने पद का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार की ही परिधि में आता है।

अगर भ्रष्टाचार के कारणों पर रोशनी डालें तो इसके प्रमुख कारण हैं- राजनीतिक कारक, आर्थिक कारक, सामाजिक-सांस्कृतिक कारक, कानूनी और प्रशासनिक कारक। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट भ्रष्टाचार को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से जोड़ती है। इसका मानना है कि ब्रिटिश कालीन अफसरशाही, लालफीताशाही और लेटलतीफी ने भारतीय प्रशासन में भ्रष्टाचार को सहज बनाया है। प्रशासन और शक्तियों के केंद्रीकरण ने जनता को प्रशासन से दूर किया है। इसके साथ ही मानवीय मूल्यों का क्षरण, शिक्षा की कमी, संवैधानिक निरक्षरता, पारदर्शिता की कमी, निम्न बुद्धि लब्धता और उचित प्रशिक्षण के अभाव में भी मनुष्य भ्रष्टाचार को एक सामाजिक प्रक्रिया मान बैठता है।

भ्रष्टाचार समाज में जहां सामाजिक मूल्यों में गिरावट का कारण बनता है जबकि सर्वाधिक मार गरीबों पर पड़ती है। भ्रष्टाचार के कारण जी समाज मे आर्थिक असमानता बढ़ती जाती है। यह आर्थिक वृद्धि में गिरावट का भी कारण बनता है। यही कारण है कि 2004-2009 की अपेक्षा भारत में 2009-2014 में आर्थिक वृद्धि धीमी रही। बता दें, वर्ष 2009-2014 के मध्य विभिन्न आर्थिक घोटालों जैसे टू जी (स्प्रेक्टम) घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला के कारण जहाँ देश का राजकोष खाली हुआ तो वही इस पीरियड में नीतिगत अपंगता भी रही।

हम अगर, भ्रष्टाचार की समस्या के समाधान को तलाशें तो इसे अभिशासन में सुधार करके और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनभागीदारी को सुनिश्चित कर इसे दूर किया जा सकता है। अभिशासन में सुधार के लिए शासन में अधिक से अधिक पारदर्शिता, विकेंद्रीकरण, जवाबदेहिता आदि के उपायों को शामिल करना होगा। इसके साथ ही अवसर की समानता को सुनिश्चित करने के लिए शासन को विभिन्न क्षेत्रों में एकाधिकार के बरक्स प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना होगा।

जनमानस की भागीदारी से भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए सबसे पहले आम लोगों को सशक्त बनाना होगा। सरकार द्वारा शुरू किए गए विभिन्न सरकारी प्रयास जैसे सूचना का अधिकार, नागरिक चार्टर, सामाजिक अंकेक्षण, ई-अभिशासन आदि बेहद प्रभावी रहे हैं।

वहीं सूचना के अधिकार अधिनियम के अनुप्रयोग द्वारा भ्रष्टाचार के खुलासे की बात की जाए तो एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई याचिका के कारण ही 1,76, 645 करोड़ रूपये के भारी-भरकम सरकारी नुकसान वाले टू जी घोटाले का पर्दाफाश हुआ।

इसके साथ ही एक गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर की गई याचिका से ही इस रहस्य का उद्घाटन हुआ कि दिल्ली सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिये दलित समुदाय के कल्याण हेतु रखे गए फंड से 744 करोड़ रुपए निकाले थे। साथ ही आरटीआई से यह भी सामने आया कि निकाले गए पैसों का प्रयोग जिन सुविधाओं पर किया गया वे सभी मात्र कागजों पर ही थीं।

इन सरकारी कानूनों के उचित क्रियान्वयन के साथ ही सरकार को आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा। इस दिशा में व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण (संशोधन) एक्ट-2014 ऐसे लोगों की सुरक्षा और गोपनीयता का ध्यान रखता है जिन्होंने जनहित में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाई है। सूचना का अधिकार, अधिनियम-2005 नागरिक समाज को एक सूचित समाज का रूप देता है।

इसके साथ ही सरकार को आम नागरिकों को अपने संवैधानिक और नागरिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने की दिशा में भी काम करना चाहिए। इस लिहाज से भारतीय नागरिकों की संवैधानिक साक्षरता बेहद आवश्यक है। एक संवैधानिक साक्षर नागरिक न सिर्फ अपने अधिकारों को लेकर जागरूक रहता है बल्कि समाज के हाशिये के लोगों के उत्थान के लिए भी कार्य करता है। जनता को भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागरूक बनाने के साथ ही विभिन्न सरकारी दफतरों में नागरिक चार्टर को भी शक्ति के साथ लागू किया जाना चाहिए।

नागरिक चार्टर एक आम नागरिक का वह अधिकार पत्र है जो उसे मिलने वाली किसी सेवा के संबंध में पूरी जानकारी उपलब्ध करता है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की बारहवीं रिपोर्ट में इसकी व्याख्या की गई है। इसके अनुसार नागरिक चार्टर नियमों का एक ऐसा दस्तावेज है जो यह बताता है कि किसी नागरिक को अमुक सेवा कैसे प्रदान की जाएगी। इससे शासन में सच्चे अर्थों में पारदर्शिता, जवाबदेहिता स्थापित होती है। इसके साथ ही अभिशासन की यह प्रकृति नागरिक केंद्रित भी होती है।

भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सामाजिक निगरानी की  जरूरत

इसके साथ ही जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सामाजिक निगरानी की भी जरूरत है। इसी दिशा में केरल सरकार द्वारा वर्ष 2015 में सतर्क केरल नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया गया। इसके तहत सरकारी कार्यालयों से वीएसीबी मुख्यालय (सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) तक सात अलग-अलग स्तरों पर मुखबिरों, भ्रष्टाचार-विरोधी कार्यकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सतर्कता अधिकारियों, विभाग प्रमुखों और वरिष्ठ सिविल सेवकों की निगरानी प्रणाली होती है। ये सभी आपसी समन्वय के माध्यम से स्रोत पर ही भ्रष्टाचार रोका जा सकता है। जनता के साथ सरकार को भी सजग होने की आवश्यकता है।

देश के अन्य राज्यों को भी इसी मॉडल की तर्ज पर अपने राज्य और लोगों की जरूरतों के अनुरूप एक सामाजिक निगरानी तंत्र को अपनाकर विकास करना चाहिए। भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक कारगर लड़ाई के लिए आम नागरिकों का हर तरह से साथ बेहद आवश्यक है। इस संबंध मे कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रेडरिक स्टापेनहर्स्ट की यह टिप्पणी बेहद मानीखेज है-

SDG को प्राप्त करेंगे

राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के सुधारों को सफलतापूर्वक लागू करने की एक अभिन्न प्रक्रिया है, विशेष रूप से वे जो भ्रष्टाचार को कम करने के लिए लक्षित हैं। यदि सत्यनिष्ठा का स्तर नहीं बढ़ाया गया और भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ तो सतत और समान विकास को बढ़ावा देने के प्रयास कमजोर पड़ जाएँगे। इससे एसडीजी गोल को पूरा करने में असर्मथता होगी।

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