नीतीश के फॉर्मूले में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और लोक दल अध्यक्ष जयंत चौधरी दिखाई नहीं दे रहे हैं क्योंकि चौटाला की रैली से भी दोनों को दूर रखा गया है ऐसा माना जा रहा है कि यदि इन दोनों को यूपी में साथ रखा जाएगा तो हो सकता है कि गठबंधन को नुकसान हो जाए
2024 के चुनाव के लिए विपक्षी दलों को एक साथ लाने की बिहार के सीएम नीतीश कुमार की कोशिश का कुछ ठोस नतीजा अभी नहीं निकला है।
नरेंद्र मोदी और बीजेपी से 2024 के चुनाव में मुकाबले के लिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार को अब तक कोई ठोस सफलता हाथ नहीं लगी है। ये ऐसा कदम है जिसमें महीनों का समय लग सकता है।
वैसे भी लोकसभा चुनाव लगभग डेढ़ साल दूर है। और, नीतीश के फॉर्मूले की धुरी कांग्रेस है जो स्वाभाविक रूप से विपक्ष में अपने नेता को पीएम कैंडिडेट मानती है। इसलिए जब लालू यादव के साथ नीतीश सोनिया गांधी से मिले तो दोनों के बीच क्या बात हुई, इस पर बहुत कुछ सामने नहीं आया। कई विपक्ष पार्टियां अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस से लड़ रही हैं।
लेकिन इस कोशिश की सबसे बड़ी चुनौती जो उभर कर आई है वो है सबसे ज्यादा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का नीतीश के फॉर्मूले में फिट नहीं हो पाना। जब अखिलेश को ही नीतीश के प्लान से किक नहीं मिल रहा है तो राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी भी मौन हैं। यही वजह रही कि हरियाणा के फतेहाबाद में 25 सितंबर को ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) की तरफ से देवीलाल की जयंती पर आयोजित रैली से यूपी का विपक्ष गायब रहा।