नोएडा प्राधिकरण की पॉलिसी इतनी लाचार बना दी गई थी बिल्डरों ने उसका पूरा फायदा उठाया। अब भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी के कैग की रिपोर्ट में निकाल कर सामने आया है। कैग की रिपोर्ट के आधार पर शासन में तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कदम उठाए हैं। हालांकि कार्रवाई क्या होगी फिलहाल तय नहीं किया गया। प्राधिकरण की ओर से रिपोर्ट देने के बाद अब शासन स्तर पर पब्लिक अकाउंट कमेटी इस मामले की सुनवाई कर रही है। पब्लिक अकाउंट कमेटी की बैठक के बाद अंतिम तौर पर यह तय होगा कि कैग की ओर से रिपोर्ट में उठाए गए सवाल के आधार पर किसके नाम आरोप तय किए जाएं। दरअसल हुआ यूं था कि बिल्डर के लिए स्कीम लाई गई।
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जिसमें 10 प्रतिशत भूखंड की कीमत का जमा करने के बाद उन्हें 3 से 5 साल का जीरो पीरियड दिया जाता था। इसी के चलते बिल्डर लगातार प्राधिकरण से जमीन लेते गए और लोगों को फ्लैट बेचते रहे। अब ना तो उन्होंने प्राधिकरण का पैसा दिया है और ना ही लोगों को फ्लैट। हजारों बायर्स जो अपने घर का सपना सजोए हुए हैं, लेकिन उनको अभी तक उम्मीद की किरण भी नहीं दिख रही है। कैग ने ग्रुप हाउसिंग के किए गए भूखंड आवंटन नीतियों पर बड़े सवाल उठाएं। इसमें अधिकांश भूखंडों पर निर्माण कार्य भी पूरे नहीं हुए हैं। इतना ही नहीं प्राधिकरण की मूल धनराशि तक वापस नहीं आ पाई। एक ऐसी कंपनी निकाल कर सामने आई है जिसे कई-कई भूखंड आवंटित कर दिए गए हैं। तकनीकी पात्रता मापदंड को भी दरकिनार किया गया। केवल जमीन देकर ही प्राधिकरण स्पोर्ट्स सिटी खेलों की सुविधा दी जाए, लेकिन यहां भी बिल्डरों में इस जमीन पर अपनी मर्जी से ही छोटे-छोटे बिल्डर भूखण्ड बनाकर भेज दिए।