नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवाओं का उग्र आंदोलन, क्षति, मृत्यु, और क्या रही अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ

Kathmandu/Fierce movement of youth News: नेपाल की राजधानी काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों में सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ जनरेशन Z के युवाओं का विरोध प्रदर्शन चरम पर पहुँच गया है। नेपाल सरकार द्वारा 4 सितंबर 2025 को फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, एक्स, और अन्य 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने के फैसले ने युवाओं में आक्रोश की लहर दौड़ा दी। इस आंदोलन को अब “जेन-Z क्रांति” के रूप में देखा जा रहा है, जो न केवल डिजिटल स्वतंत्रता की मांग कर रहा है, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और सरकारी तानाशाही के खिलाफ भी आवाज बुलंद कर रहा है।

विरोध का दायरा और क्षति
नेपाल की राजधानी काठमांडू के मैतीघर, बानेश्वर, सिंहदरबार, और संसद भवन के आसपास हजारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुसने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस के साथ हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस ने लाठीचार्ज, आंसू गैस, और रबर की गोलियों का इस्तेमाल किया। विभिन्न समाचार स्रोतों के अनुसार, इस हिंसा में कम से कम 1 से 14 लोगों की मौत की खबरें सामने आई हैं, हालांकि आधिकारिक तौर पर केवल एक मृत्यु की पुष्टि हुई है। इसके अलावा, 42 से 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं। काठमांडू के बानेश्वर और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है, और सेना को तैनात किया गया है।

नेपाल के स्थानीय मीडिया, जैसे काठमांडू पोस्ट और अन्य, इस आंदोलन को एक ऐतिहासिक युवा विद्रोह के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। काठमांडू पोस्ट ने इसे “नेपो किड” ट्रेंड से जोड़ा, जिसमें युवा सोशल मीडिया (विशेषकर टिकटॉक, जो बैन से मुक्त है) पर नेताओं के बच्चों की विलासिता भरी जिंदगी की तुलना आम नागरिकों की समस्याओं से कर रहे हैं। यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, राजनीतिक भाई-भतीजावाद, और बेरोजगारी जैसे गहरे सामाजिक मुद्दों को उजागर कर रहा है। नेपाल के मीडिया ने प्रदर्शनकारियों के साहस की सराहना की, लेकिन कुछ ने हिंसा और अराजकता की आलोचना भी की, यह दावा करते हुए कि कुछ असामाजिक तत्व भीड़ में घुस आए हैं।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया और नेताओं की प्रतिक्रिया
अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस आंदोलन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले और नेपाल में बढ़ती सरकारी सेंसरशिप के प्रतीक के रूप में देखा है। द प्रिंट और एनडीटीवी जैसे भारतीय मीडिया हाउस ने इसे “जेन-Z क्रांति” करार दिया और इसे बांग्लादेश में हाल के आंदोलनों से जोड़ा। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने बताया कि प्रदर्शनकारी न केवल सोशल मीडिया बैन, बल्कि संस्थागत भ्रष्टाचार के खिलाफ भी लड़ रहे हैं।
नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” के लिए जरूरी कदम बताया, लेकिन उनकी यह टिप्पणी आलोचकों को और भड़काने वाली साबित हुई। आलोचकों ने इसे प्रेस स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार दिया। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने नेपाल सरकार से बैन हटाने और प्रदर्शनकारियों के साथ संवाद करने की मांग की है।

पड़ोसी देशों पर संभावित प्रभाव
नेपाल का यह आंदोलन, विशेष रूप से भारत और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में, युवा आंदोलनों को प्रेरित कर सकता है। भारत में, जहाँ सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण की बहस पहले से चल रही है, यह आंदोलन युवाओं को अपनी आवाज बुलंद करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। बांग्लादेश में हाल ही में हुए छात्र आंदोलनों की सफलता को देखते हुए, नेपाल का यह विद्रोह क्षेत्रीय स्तर पर सरकारों के लिए एक चेतावनी हो सकता है। यह दक्षिण एशिया में डिजिटल स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन को जन्म दे सकता है।

बैन का कारण और भविष्य
नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया बैन को फर्जी खबरों, साइबर अपराध, और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में औचित्य ठहराया। 2023 में जारी सोशल मीडिया उपयोग नियमन निर्देशिका 2080 के तहत, सभी प्लेटफॉर्म्स को नेपाल में रजिस्टर करना अनिवार्य है। टिकटॉक और वाइबर जैसे कुछ प्लेटफॉर्म्स ने इस नियम का पालन किया, लेकिन मेटा और गूगल जैसी बड़ी कंपनियों ने इसे अनदेखा किया, जिसके परिणामस्वरूप 4 सितंबर को बैन लागू हुआ।

आने वाले समय में, यदि सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच संवाद नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और उग्र हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है, जिसका असर भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंधों पर भी पड़ सकता है।

निष्कर्ष

नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन अब एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक विद्रोह का रूप ले चुका है। युवाओं की यह क्रांति न केवल नेपाल, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में बदलाव की मांग को और तेज कर सकती है। सरकार को इस संकट से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे, वरना यह आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है।

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