आरा से गूंजी युवा पीड़ा: चाय की चुस्कियों में छिपी पढ़ाई की आस, पढ़िये बीए के छात्र राहुल की आंसुओं भरी दास्तां

Ara Bihar News: बिहार की धरती पर जहां चुनावी हलचल तेज हो रही है, वहीं बेरोजगार युवाओं की सिसकियां भी सुनाई देने लगी हैं। आरा शहर की तंग गलियों में सुबह-शाम चाय की भट्टी सजाने वाले बीए (ऑनर्स) के छात्र राहुल की कहानी आज सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है। “सुबह-शाम चाय बेचते हैं, रात में पढ़ते हैं” – यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि हजारों बिहारी युवाओं की जद्दोजहद की सच्चाई बायाँ कर रही है। अपनी व्यथा बयां करते हुए राहुल फूट-फूटकर रो पड़े, और देखने वालों की आंखें भी नम हो गईं।

एक न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर की ग्राउंड रिपोर्ट में राहुल ने बताया कि पेपर लीक की घटनाओं ने उनकी जिंदगी को तहस-नहस कर दिया है। “पापा को शर्म आती है कि मैं चाय बेचता हूं,” कहते हुए उनकी आवाज कांप उठी। घर से और पैसे मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाते, इसलिए दोस्त के साथ मिलकर दिन भर चाय बेचते हैं। शाम ढलते ही किताबें खोल लेते हैं, लेकिन थकान और आर्थिक तंगी सपनों को चैन नहीं लेने देती। राहुल जैसे हजारों युवा बेरोजगारी, पेपर लीक और महंगाई के जाल में फंसकर ऐसे ही संघर्ष कर रहे हैं। बिहार चुनाव 2025 के बीच यह वीडियो युवा असंतोष की आग को और भड़का रहा है।

राहुल का गांव आरा के बाहरी इलाके में है, जहां शिक्षा का सपना देखने वाले परिवारों की संख्या भले बढ़ रही हो, लेकिन संसाधनों की कमी उन्हें मजदूर बना देती है। राहुल के पिता एक छोटे से किसान हैं, जो खुद महंगाई से जूझ रहे हैं। पेपर लीक की वजह से परीक्षाएं रद्द होने से राहुल को नई तैयारी करनी पड़ी, लेकिन कोचिंग और किताबों का खर्च उठाना मुश्किल हो गया।

“रात को पढ़ते हैं तो आंखें धुंधला जाती हैं, लेकिन हार मानना तो विकल्प ही नहीं,” उन्होंने कहा। उनका दोस्त भी उसी हाल में है – दोनों मिलकर सुबह 6 बजे से शाम 8 बजे तक चाय की दुकान चलाते हैं, जहां एक कप चाय के 10 रुपये ही कमाई का सहारा हैं।

यह कहानी अकेली नहीं। बिहार में पिछले कुछ वर्षों में पेपर लीक के 50 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिससे लाखों छात्र प्रभावित हुए हैं। युवा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में बेरोजगारी दर 15 प्रतिशत से ऊपर है, और ग्रेजुएट युवाओं में यह 20 प्रतिशत तक पहुंच रही है। आरा जैसे शहरों में चाय की दुकानें अब सिर्फ प्यास बुझाने का जरिया नहीं, बल्कि शिक्षा का अनकहा साथी बन गई हैं। राहुल की रिपोर्ट देखकर सोशल मीडिया पर लोग भावुक हो उठे। एक यूजर ने लिखा, “यह बिहार का सच है, जहां सपने चाय की भाप में उड़ जाते हैं।” वहीं, कई ने सरकार से मांग की कि युवाओं के लिए स्कॉलरशिप और रोजगार योजनाओं को मजबूत किया जाए।

राहुल की यह दास्तां बिहार चुनाव के संदर्भ में और भी अहम हो जाती है। जहां एक तरफ पार्टियां वादे बांट रही हैं, वहीं युवा सड़कों पर चाय बेचकर वोट मांगने वालों को देख रहे हैं। राहुल ने कहा, “हमें नौकरी चाहिए, चाय बेचनी नहीं।” क्या यह आंसुओं की आवाज चुनावी मैदान में गूंज पाएगी? समय ही बताएगा। फिलहाल, राहुल की कहानी हर उस युवा की पीड़ा बन चुकी है जो रात की तन्हाई में किताबें थामे सपने बुन रहा है।

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