सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज की याचिका खारिज की, कैश कांड मामले में जांच प्रक्रिया की वैधता पर उठाए थे सवाल

Yashwant Verma News: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ कैश कांड मामले में सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच प्रक्रिया की वैधता को चुनौती दी थी। जस्टिस वर्मा पर उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास से भारी मात्रा में जली हुई नकदी बरामद होने का आरोप है, जिसके बाद यह मामला सुर्खियों में आया था।
मामले की शुरुआत और विवाद
यह विवाद 14 मार्च 2025 को शुरू हुआ, जब जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में आग लगने की सूचना मिली। आग बुझाने पहुंची अग्निशमन टीम को वहां से जली हुई 500 रुपये की नोटों की गड्डियां बरामद हुईं। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति का गठन किया, जिसने जस्टिस वर्मा को कदाचार का दोषी पाया और उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की।
जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने 8 मई 2025 को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महाभियोग की सिफारिश की थी। जस्टिस वर्मा ने इस रिपोर्ट और सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए दावा किया कि जांच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ। उन्होंने कहा कि उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया और जांच पूर्वाग्रह से ग्रसित थी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने जस्टिस वर्मा की याचिका ascend: याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की और कहा कि जस्टिस वर्मा ने इन-हाउस जांच प्रक्रिया में हिस्सा लिया था, इसलिए अब वे इसकी वैधता पर सवाल नहीं उठा सकते। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन-हाउस जांच प्रक्रिया देश के कानून और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों पर आधारित है।
कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल से बुलेट प्वाइंट में जवाब मांगने के बाद, 30 जुलाई 2025 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। 7 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए जांच प्रक्रिया को वैध ठहराया।
महाभियोग की प्रक्रिया और ट्रांसफर
जांच समिति की रिपोर्ट के बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया और उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है, जिसमें लोकसभा के 145 और राज्यसभा 63 सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
जस्टिस वर्मा का पक्ष
जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए इसे उनकी छवि खराब करने की साजिश बताया। उन्होंने दावा किया कि आग उनके मुख्य आवास में नहीं, बल्कि बाहरी हिस्से में लगी थी और कोई ठोस सबूत नहीं है कि बरामद नकदी उनकी थी।
आगे की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह मामला संसद में महाभियोग प्रस्ताव के रूप में आगे बढ़ सकता है। राजनीतिक हलकों में इस मामले को लेकर चर्चा तेज है, और संसद के दोनों सदनों में जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की सहमति बनती नज़र आ रही है।

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