उन्नाव बलात्कार पीड़िता की मां को मिलेगी सुरक्षा? सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को दो हफ्तों में खतरे की आशंका पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया

Unnao Rape News: उन्नाव बलात्कार मामले में पीड़िता की मां की जान को खतरा होने की आशंका के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली सरकार को कड़ा निर्देश दिया है। अदालत ने दिल्ली सरकार को दो हफ्तों के अंदर एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें पीड़िता की मां और उनके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा को लेकर खतरे की आशंका का आकलन किया जाए। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया जाए कि क्या उन्होंने स्थानीय प्राधिकरण से सुरक्षा की मांग की है या नहीं।

यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पीड़िता की मां की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की सुरक्षा बहाल करने की मांग की है। याचिका में दावा किया गया है कि मार्च 2025 में कोर्ट के एक आदेश के बाद सीआरपीएफ की सुरक्षा हटाए जाने के तुरंत बाद उनकी कोठी पर हमला हुआ और लूटपाट की गई। याचिकाकर्ता का आरोप है कि दोषी व्यक्ति अभी भी प्रभावशाली है और परिवार की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस पंकज मिश्रा और जस्टिस पीबी वराले की बेंच के समक्ष याचिकाकर्ता की वकील विदुषी बाजपेयी ने तर्क दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आखिरी बार 2022 में खतरे की आशंका पर हलफनामा दाखिल किया था, उसके बाद कोई रिपोर्ट नहीं आई। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भी हर तीन महीने में खतरे का आकलन करने का निर्देश था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जस्टिस वराले ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “जब तक आप यह नहीं दिखाते, तो कोई आदेश देना मुश्किल होगा।” बेंच ने याचिकाकर्ता को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की इजाजत दी और दिल्ली सरकार को दो हफ्तों में जवाब देने का समय दिया।

उन्नाव मामले का संक्षिप्त इतिहास:
यह मामला 2017 का है, जब उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक नाबालिग लड़की का बलात्कार हुआ। आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर थे, जिन्हें 2019 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया। मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं, खासकर जब 2019 में पीड़िता के परिवार पर ट्रक हमला हुआ, जिसमें उनकी दो चाची की मौत हो गई और पीड़िता व उनके वकील गंभीर रूप से घायल हुए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सभी केसों को लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर कर दिए और पीड़िता, उनके परिवार व गवाहों को सीआरपीएफ सुरक्षा प्रदान की।

हालांकि, मार्च 2025 में केंद्र सरकार की याचिका पर कोर्ट ने परिवार के लिए सीआरपीएफ सुरक्षा हटाने की इजाजत दे दी थी, जबकि पीड़िता को सुरक्षा बरकरार रखी गई। अब मां की नई याचिका (एमए 1415/2025 इन एसएमडब्ल्यू(सीआरएल) नंबर 1/2019) इसी आदेश को रद्द करने की मांग करती है। दिल्ली सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता ने स्थानीय प्राधिकरण से सुरक्षा की मांग नहीं की, जबकि दिल्ली लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के समक्ष एक आवेदन लंबित है। जस्टिस मिश्रा ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर उत्तर प्रदेश सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

यह मामला महिलाओं की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की निगरानी पर फिर से बहस छेड़ सकता है। पीड़िता का परिवार लंबे समय से न्याय की लड़ाई लड़ रहा है, और यह याचिका उनके संघर्ष का एक नया अध्याय है। अगली सुनवाई दो हफ्तों बाद होगी, जब दिल्ली सरकार का जवाब आएगा।

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