Taliban/Pakistan News: अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी का आठ दिवसीय भारत दौरा दक्षिण एशिया की कूटनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हो रहा है। 9 अक्टूबर को दिल्ली पहुंचे मुत्ताकी ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से गहन चर्चा की, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार, मानवीय सहायता, क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक निवेश जैसे मुद्दों पर सहमति बनी।
इस दौरे के दौरान भारत ने काबुल में अपने दूतावास को फिर से सक्रिय करने का ऐलान किया, जो 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद बंद हो गया था। हालांकि भारत ने अभी तालिबान शासन को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन यह कदम व्यावहारिक संबंधों को मजबूत करने का संकेत दे रहा है। लेकिन इस बीच, पाकिस्तान की नींद उड़ी हुई है। आखिर क्यों? आइए समझते हैं इसकी गहराई।
मुत्ताकी का यह दौरा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की मंजूरी के बाद संभव हुआ, जहां पाकिस्तान की ही अध्यक्षता वाली प्रतिबंध समिति ने यात्रा पर छूट दी।  मुत्ताकी ने न केवल जयशंकर से मुलाकात की, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी बातचीत की। चर्चा का फोकस अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण, खनिज संसाधनों में भारतीय निवेश, कृषि, स्वास्थ्य और खेल क्षेत्रों पर रहा। मुत्ताकी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम भारत को खनिज, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्रों में निवेश के लिए आमंत्रित करते हैं।” इसके अलावा, दोनों पक्षों ने हवाई गलियारों को मजबूत करने और वीजा सुविधाओं पर सहमति जताई।
भारत और तालिबान के संबंधों का इतिहास जटिल रहा है। 1996-2001 के तालिबान शासन के दौरान भारत ने इसे मान्यता नहीं दी थी, क्योंकि पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद का खतरा था। लेकिन 2021 में तालिबान की वापसी के बाद भारत ने सतर्क लेकिन व्यावहारिक नीति अपनाई। भारत ने अफगानिस्तान को 5 लाख टन गेहूं, दवाइयां और अन्य सहायता भेजी। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) जैसे मंचों के जरिए संपर्क बढ़ा। जनवरी 2025 में दुबई में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने मुत्ताकी से मुलाकात की थी।  मुत्ताकी ने देवबंद मदरसे का दौरा भी किया, जो दक्षिण एशिया में इस्लामी शिक्षा का प्रमुख केंद्र है और तालिबान नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है। हालांकि, ताजमहल दर्शन का उनका आगरा दौरा सुरक्षा कारणों से रद्द हो गया।
पाकिस्तान की चिंताओं के पीछे क्या राज?
पाकिस्तान के लिए यह दौरा ‘रणनीतिक झटका’ है। लंबे समय से पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को ‘रणनीतिक गहराई’ मानता रहा है। उसने तालिबान को जन्म दिया, पाला-पोसा और 2021 में सत्ता हासिल करने में मदद की। लेकिन अब तालिबान-पाक संबंध तनावपूर्ण हैं। कारण? सीमा पर झड़पें, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को तालिबान का कथित समर्थन, और अफगान शरणार्थियों का निर्वासन।  पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने संसद में कहा, “अफगान हमेशा भारत के साथ खड़े रहे हैं—कल, आज और कल। हमारी धैर्य की सीमा खत्म हो चुकी है।” 
पाकिस्तान के लिए यह दौरा ‘रणनीतिक झटका’ है। लंबे समय से पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को ‘रणनीतिक गहराई’ मानता रहा है। उसने तालिबान को जन्म दिया, पाला-पोसा और 2021 में सत्ता हासिल करने में मदद की। लेकिन अब तालिबान-पाक संबंध तनावपूर्ण हैं। कारण? सीमा पर झड़पें, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को तालिबान का कथित समर्थन, और अफगान शरणार्थियों का निर्वासन।  पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने संसद में कहा, “अफगान हमेशा भारत के साथ खड़े रहे हैं—कल, आज और कल। हमारी धैर्य की सीमा खत्म हो चुकी है।” 
मुत्ताकी के दौरे के दौरान काबुल में हुए धमाकों को पाकिस्तान ने TTP ठिकानों पर हमला बताया, जबकि तालिबान ने इसे पाकिस्तानी हवाई हमला करार दिया।  मुत्ताकी ने दिल्ली से ही पाकिस्तान को चेतावनी दी: “अफगानिस्तान की जमीन किसी देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे। अगर शांति नहीं चाहते, तो हमारे पास दूसरे विकल्प भी हैं। सोवियत संघ, अमेरिका और नाटो से पूछ लो।”  यह बयान पाकिस्तान के लिए तीखा तीर था, खासकर जब भारत-अफगान संयुक्त बयान में जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बताया गया।  पाकिस्तान ने अफगान राजदूत को तलब कर ‘कड़ी आपत्ति’ जताई।
पाकिस्तान को डर है कि भारत-अफगान नजदीकी से उसका CPEC प्रोजेक्ट प्रभावित होगा। बालूचिस्तान जैसे संवेदनशील इलाकों में भारत का कथित हस्तक्षेप बढ़ सकता है। विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा, “यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका है, जो तालिबान शासन की डी फैक्टो मान्यता की ओर इशारा करता है।”  एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पाकिस्तानी यूजर्स का मेल्टडाउन साफ दिख रहा है, जहां वे इसे ‘भारतीय साजिश’ बता रहे हैं। 
क्षेत्रीय प्रभाव: चीन-अमेरिका की नजर में क्या?
यह दौरा केवल भारत-पाक के बीच नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र को प्रभावित करेगा। चीन को चिंता है क्योंकि भारत की अफगान उपस्थिति उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को चुनौती दे सकती है। अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने बगराम एयरबेस पर फिर कब्जा करने की बात कही, जिसका मुत्ताकी ने मॉस्को में विरोध किया—भारत समेत कई देशों के साथ।  ईरान और मध्य एशिया के देशों के साथ भारत की कनेक्टिविटी मजबूत होगी, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सकारात्मक है। लेकिन ISIS-K जैसे खतरों पर सहयोग जरूरी है। मुत्ताकी ने आतंकवाद के खिलाफ भारत का साथ मांगा, लेकिन तालिबान की महिलाओं के अधिकारों और समावेशी सरकार पर नीतियां विवादास्पद बनी हुई हैं।
यह दौरा केवल भारत-पाक के बीच नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र को प्रभावित करेगा। चीन को चिंता है क्योंकि भारत की अफगान उपस्थिति उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को चुनौती दे सकती है। अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने बगराम एयरबेस पर फिर कब्जा करने की बात कही, जिसका मुत्ताकी ने मॉस्को में विरोध किया—भारत समेत कई देशों के साथ।  ईरान और मध्य एशिया के देशों के साथ भारत की कनेक्टिविटी मजबूत होगी, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सकारात्मक है। लेकिन ISIS-K जैसे खतरों पर सहयोग जरूरी है। मुत्ताकी ने आतंकवाद के खिलाफ भारत का साथ मांगा, लेकिन तालिबान की महिलाओं के अधिकारों और समावेशी सरकार पर नीतियां विवादास्पद बनी हुई हैं।
निष्कर्ष: भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति का हिस्सा
मुत्ताकी का दौरा भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति का प्रमाण है, जो अफगानिस्तान को अस्थिरता से बचाने पर जोर देती है। पाकिस्तान की बेचैनी जायज है, लेकिन यह उसके अपने कदमों का नतीजा लगता है। जैसे-जैसे तालिबान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आता जा रहा है, दक्षिण एशिया का शक्ति संतुलन बदल रहा है।
मुत्ताकी का दौरा भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति का प्रमाण है, जो अफगानिस्तान को अस्थिरता से बचाने पर जोर देती है। पाकिस्तान की बेचैनी जायज है, लेकिन यह उसके अपने कदमों का नतीजा लगता है। जैसे-जैसे तालिबान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आता जा रहा है, दक्षिण एशिया का शक्ति संतुलन बदल रहा है।
सवाल यह है: क्या यह शांति की दिशा में कदम है या नई तनावों की शुरुआत? समय ही बताएगा।

