Cyclone Ditwah News: भारतीय महासागर क्षेत्र में हाल ही में उत्पन्न चक्रवात दित्वाह ने श्रीलंका को अभूतपूर्व तबाही की चपेट में ले लिया है। कम से कम 410 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 336 अन्य लापता बताए जा रहे हैं। कैंडी क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, जहां 88 मौतें और 150 से अधिक लोग गायब हैं। संयुक्त राष्ट्र की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, 15,000 से ज्यादा घर नष्ट हो चुके हैं, 200 से अधिक सड़कें अवरुद्ध हैं और कम से कम 10 पुल ध्वस्त हो गए हैं। आर्थिक संकट से जूझ रही श्रीलंका के लिए यह आपदा एक बड़ा झटका साबित हुई है, जो देश की आपदा प्रबंधन व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है।
चक्रवात दित्वाह 25 नवंबर को दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी में विकसित हुए निम्न दाब के क्षेत्र से उभरा था। यह क्षेत्र सामान्यतः चक्रवातों के जन्मस्थान के रूप में जाना नहीं जाता, लेकिन दो अनुकूल परिस्थितियों ने इसे संभव बनाया। उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Intertropical Convergence Zone) सक्रिय था, जहां पूर्वोत्तर और दक्षिण-पश्चिम व्यापारिक हवाओं का संगम बादलों और गरज-चमक के साथ तूफान पैदा करता है। साथ ही, भूमध्यरेखीय तरंगें (equatorial waves) भी विकसित हुईं, जिनकी संयुक्त ऊर्जा ने 27 नवंबर को दित्वाह को जन्म दिया। उस समय यह सिस्टम श्रीलंका के पूर्वी तट पर बत्तिकलोआ के उत्तर-पश्चिम में लगभग 90 किलोमीटर दूर था।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा के अनुसार, “ऐतिहासिक रूप से श्रीलंका में चक्रवातों की आवृत्ति बहुत कम है। 2000 के बाद से यहां केवल 16 चक्रवात आए हैं, जो भारत के तटों पर आने वाले तूफानों की तुलना में काफी हल्के रहे हैं।” दित्वाह मात्र ‘चक्रवाती तूफान’ श्रेणी का था, जो दूसरी सबसे कमजोर श्रेणी है। हवा की गति 60-90 किलोमीटर प्रति घंटा के बीच थी, लेकिन इसकी तीव्रता से ज्यादा इसका मार्ग और गति घातक साबित हुई।
असामान्य मार्ग ने बढ़ाई तबाही
श्रीलंका भूमध्य रेखा के करीब (5-10 डिग्री उत्तर अक्षांश) स्थित है, जहां कोरियोलिस बल कमजोर होता है, जिससे चक्रवातों का निर्माण मुश्किल होता है। दित्वाह 26 नवंबर को श्रीलंका के दक्षिण-पूर्व में जन्मा और धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ा, देश के पूर्वी तट के समानांतर। सामान्य चक्रवात भूमि की ओर बढ़कर जल्दी कमजोर हो जाते हैं, लेकिन दित्वाह ने तट के साथ लंबे समय तक डेरा डाला। इसकी धीमी गति (केवल कुछ किलोमीटर प्रति घंटा) ने इसे और विनाशकारी बना दिया।
मोहापात्रा ने कहा, “यह चक्रवात बहुत धीरे चला, जिससे नुकसान बढ़ गया।” 28 नवंबर से 29 नवंबर की शुरुआत तक भारी वर्षा ने पूर्वी तट को भारी नुकसान पहुंचाया। 24 घंटों में 400 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई, जिससे पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन और तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल का घुसना हुआ। कोलंबो के बाहरी इलाकों में बाढ़ग्रस्त सड़कों पर वाहन डूबते नजर आए, जबकि कैंडी और पूर्वी जिलों में घर-बार उजड़ गए।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, बाढ़ के कारण स्वयंसेवकों का जज्बा जाग उठा है, लेकिन सरकार की विफलताओं ने भी सुर्खियां बटोरीं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (DW) के अनुसार, आपदा प्रबंधन केंद्र ने मौतों की संख्या 410 बताई है, लेकिन पूर्व चेतावनी के बावजूद निकासी सीमित रही। श्रीलंका में भारत जैसी विस्तृत निकासी व्यवस्था का अभाव है, जो लाखों लोगों को तुरंत सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा सके।
IMD की चेतावनी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग
IMD का क्षेत्रीय विशेषज्ञ मौसम केंद्र (RSMC) इस क्षेत्र की निगरानी करता है और बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका व थाईलैंड जैसे देशों को अलर्ट जारी करता है। IMD ने 13 नवंबर को ही अवसाद की भविष्यवाणी की थी और 20 नवंबर को चक्रवात निर्माण की संभावना जताई। 23 नवंबर से तीन-छह घंटे के अपडेट साझा किए गए। हालांकि, श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति—छोटा क्षेत्र और पहाड़ी इलाके—ने बाढ़ व भूस्खलन को बढ़ावा दिया।
अंतरराष्ट्रीय आप्रवासन संगठन (IOM) ने बताया कि दित्वाह ने 2,09,000 से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया। रॉयटर्स के अनुसार, देश आर्थिक पुनर्वास से जूझ रहा है, और यह आपदा “शुरुआत से पुनर्निर्माण” की चुनौती पेश कर रही है। द गार्जियन ने पीड़ितों के हवाले से कहा, “हम सब बहुत डर गए थे।”
आगे की राह
मंगलवार दोपहर तक दित्वाह कमजोर होकर तमिलनाडु तट के दक्षिण-पूर्व में 40 किलोमीटर दूर पहुंच चुका था और दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ रहा था। IMD बुलेटिन के अनुसार, यह मंगलवार शाम तक अवसाद के रूप में बना रहेगा और उसके बाद निम्न दाब क्षेत्र में बदल जाएगा। बुधवार तक यह पूरी तरह विघटित हो सकता है।
श्रीलंका सरकार राहत कार्यों में जुटी है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के दौर में ऐसे असामान्य चक्रवात बढ़ सकते हैं। पूर्वी तट पर सड़कों की मरम्मत और बाढ़ प्रभावित परिवारों को सहायता प्रदान करना प्राथमिकता है। भारत ने भी सहायता का वादा किया है, जो द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा।
यह आपदा श्रीलंका को मजबूत आपदा प्रबंधन प्रणाली विकसित करने की याद दिलाती है, ताकि भविष्य में ऐसी विपत्तियां कम नुकसान पहुंचा सकें।
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