डिजी यात्री डेटा का असली मालिक कौन?

Air Travel System ‘Digi Yatri’ News: भारत की चेहरे की पहचान (फेशियल रिकग्निशन) पर आधारित हवाई यात्रा प्रणाली ‘डिजी यात्री’ (Digi Yatra) एक बार फिर गोपनीयता और डेटा स्वामित्व के विवादों के केंद्र में आ गई है। दिल्ली हाईकोर्ट में डिजी यात्री फाउंडेशन (DYF) और उसके पूर्व तकनीकी पार्टनर डेटा एवॉल्व सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड (Data Evolve) के बीच चल रहे वाणिज्यिक मुकदमे ने न केवल डेटा के मालिकाना हक पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उपयोगकर्ता गोपनीयता और सरकारी जवाबदेही पर भी गंभीर बहस छेड़ दी है। यह मामला लाखों यात्रियों के संवेदनशील बायोमेट्रिक डेटा—जैसे चेहरे की स्कैनिंग और आधार-लिंक्ड जानकारी—की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा रहा है।

डिजी यात्री, जो 2022 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) की नीति के तहत लॉन्च हुई, एयरपोर्ट पर संपर्क रहित यात्रा को सुगम बनाती है। यह ऐप यात्रियों को टर्मिनल एंट्री, सिक्योरिटी चेक, बैग ड्रॉप और बोर्डिंग जैसे चेकपॉइंट्स पर फेशियल रिकग्निशन तकनीक से सत्यापन करने की सुविधा देती है। वर्तमान में यह दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद, कोच्चि समेत 14 एयरपोर्ट्स पर सक्रिय है, और 90 लाख से अधिक उपयोगकर्ता इसके पंजीकृत हैं। लेकिन इसकी डिजाइनिंग और प्रबंधन में डेटा एवॉल्व की भूमिका ने विवाद को जन्म दिया है।

कोर्ट में विवाद
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुब्रमोनियम प्रसाद ने 29 अक्टूबर 2025 को डिजी यात्री सेंट्रल इकोसिस्टम (DYCE)—जो बायोमेट्रिक-आधारित एंट्री प्लेटफॉर्म का मूल ढांचा है—के स्वामित्व को मुकदमे का मुख्य मुद्दा बनाया। DYF, एक सेक्शन-8 नॉन-प्रॉफिट कंपनी, का दावा है कि 2021 की मास्टर वैल्यू एग्रीमेंट (MVA) के तहत सारी सॉफ्टवेयर, संशोधन और डेरिवेटिव वर्क्स का मालिकाना हक फाउंडेशन के पास है। वहीं, पूर्व पार्टनर डेटा एवॉल्व का कहना है कि उन्होंने प्लेटफॉर्म को विकसित किया था, इसलिए उनका हक बनता है।

कोर्ट ने पहले ही डेटा एवॉल्व को सर्वर एक्सेस, ऐप कंट्रोल, सोर्स कोड, AWS क्रेडेंशियल्स और अन्य तकनीकी संपत्तियों का हस्तांतरण करने का आदेश दिया है। मार्च 2024 में जारी एक अंतरिम आदेश में हाईकोर्ट ने DYF के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि डिजी यात्री एक ‘क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर’ है, और किसी भी व्यवधान से यात्रियों को नुकसान होगा। मामला अगली सुनवाई 15 दिसंबर 2025 को संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष होगा।

DYF की संरचना भी सवालों के घेरे में है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) के पास 26% शेयर हैं, जबकि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद और कोच्चि इंटरनेशनल एयरपोर्ट्स के पास बाकी 74% (प्रत्येक 14.8%) हैं। फाउंडेशन सरकारी फंडिंग नहीं लेता, लेकिन MoCA की 2021 नीति के तहत स्थापित है। आलोचकों का कहना है कि यह ‘पब्लिक-प्राइवेट’ मॉडल गोपनीयता कानूनों का पालन करने में कमजोर है।

डेटा गोपनीयता पर बढ़ती चिंताएं
विवाद के बीच डिजी यात्री की डेटा हैंडलिंग पर सवाल तेज हो गए हैं। फाउंडेशन का दावा है कि यात्रियों का डेटा डिसेंट्रलाइज्ड तरीके से यूजर्स के डिवाइस पर ही एन्क्रिप्टेड फॉर्मेट में स्टोर होता है, और कोई सेंट्रल स्टोरेज नहीं है। पूर्व CEO सुरेश खड़कभवी ने अप्रैल 2024 में कहा था कि डेटा एवॉल्व को यात्रियों का पर्सनल डेटा कभी एक्सेस नहीं मिला। लेकिन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (IFF) जैसी संस्थाओं ने इसे खारिज किया है। IFF की रिपोर्ट के मुताबिक, डेटा एवॉल्व को बायोमेट्रिक और आधार डेटा तक पहुंच थी, और 2024 में एक डेटा लीक से 33 लाख यूजर्स प्रभावित हुए।

डिजिटल राइट्स ग्रुप एक्सेस नाउ ने फेशियल रिकग्निशन तकनीक (FRT) के असीमित इस्तेमाल पर सवाल उठाए हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के पुत्तास्वामी केस (2017) में तय तीन-स्तरीय टेस्ट—कानूनीता, आवश्यकता और समानुपातिकता—का उल्लंघन करता है। दिसंबर 2024 में एक और विवाद सामने आया जब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने डिजी यात्री डेटा को टैक्स फाइलिंग से क्रॉस-चेक करने की योजना बनाई, जिसे फाउंडेशन ने खारिज कर दिया।

2024 में डेटा एवॉल्व के संस्थापक अविनाश कोमिरेड्डी की आंध्र प्रदेश में फंड एम्बेजलमेंट केस में गिरफ्तारी के बाद फाउंडेशन ने ऐप को नया वर्जन लॉन्च किया, लेकिन यूजर्स को कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी। इससे यूजर बेस में 65% की गिरावट आई। हाल के एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट्स में भी #DigiYatraPrivacy ट्रेंड कर रहा है, जहां यूजर्स गोपनीयता उल्लंघन की शिकायत कर रहे हैं।

सरकारी जवाबदेही का सवाल
यह मामला भारत की डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमजोरियों को उजागर करता है। डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP) 2023 लागू होने के बावजूद, ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर पारदर्शिता की कमी है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को डेटा शेयरिंग, ऑडिट और थर्ड-पार्टी एक्सेस पर सख्त नियम बनाने चाहिए। MoCA ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, लेकिन कोर्ट फैसला DYF की विश्वसनीयता तय करेगा।

यात्रियों से अपील है कि ऐप इस्तेमाल से पहले गोपनीयता नीति पढ़ें और वैकल्पिक तरीकों का सहारा लें। जैसा कि एक डिजिटल राइट्स एक्टिविस्ट ने कहा, “डिजी यात्री सुविधा देती है, लेकिन आपकी पहचान बेचने का जोखिम भी।” यह विवाद न केवल डेटा के मालिकाना हक, बल्कि लाखों भारतीयों की निजता की रक्षा का परीक्षण है।

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