White House News: व्हाइट हाउस की प्रवक्ता ने किया दावा, ट्रंप को मिले नोबेल शांति पुरस्कार, हर महीने रुकवाते हैं एक युद्ध

White House News: व्हाइट हाउस की प्रवक्ता सारा सैंडर्स ने हाल ही में एक बयान में दावा किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए, क्योंकि वह हर महीने औसतन एक अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को समाप्त कराने में सफल रहे हैं। यह बयान 1 अगस्त 2025 को व्हाइट हाउस की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिया गया, जिसने वैश्विक और भारतीय राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।

सैंडर्स ने अपने बयान में कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान, इज़राइल-ईरान, रवांडा-कांगो, थाईलैंड-कंबोडिया, मिस्र-इथियोपिया और सर्बिया-कोसोवो जैसे देशों के बीच युद्धविराम कराकर शांति स्थापित की है। उनके नेतृत्व में पिछले छह महीनों में हर महीने एक बड़े संघर्ष का अंत हुआ है।” विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच 2025 में हुए तनाव का ज़िक्र करते हुए सैंडर्स ने दावा किया कि ट्रंप ने “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान दोनों देशों पर व्यापारिक दबाव डालकर युद्धविराम सुनिश्चित किया।

पाकिस्तान की ओर से भी ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की बात सामने आई थी। पाकिस्तानी सरकार ने 21 जून 2025 को एक बयान में कहा कि ट्रंप के “निर्णायक कूटनीतिक हस्तक्षेप” ने भारत-पाकिस्तान तनाव को कम करने में मदद की। हालांकि, इस कदम का पाकिस्तान में ही कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और पूर्व राजनयिकों ने विरोध किया, जिन्होंने गाजा संकट में ट्रंप की नीतियों को आलोचना का विषय बताया।

इसके अतिरिक्त, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी जुलाई 2025 में ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था, विशेष रूप से मध्य पूर्व में शांति प्रयासों के लिए। ट्रंप ने स्वयं कई मौकों पर नोबेल पुरस्कार की इच्छा जताई है, और यह दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान, सर्बिया-कोसोवो, और मिस्र-इथियोपिया जैसे संघर्षों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालांकि, ट्रंप के इन दावों पर कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। कुछ का मानना है कि ट्रंप की नीतियां, जैसे कि गाजा पट्टी में विवादास्पद प्रस्ताव और रूस-यूक्रेन युद्ध में उनकी भूमिका, विवादों को जन्म दे रही हैं। भारत में भी ट्रंप के दावों को लेकर विपक्ष ने सरकार पर दबाव बनाया है, विशेष रूप से यह सवाल उठाया कि क्या भारत ने वाकई अमेरिका से मध्यस्थता स्वीकारी थी।

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