Weather and pests wreak havoc on the cotton crop: बेमौसम बारिश, बाढ़ और कीटों के हमलों ने इस साल कपास की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में किसान परेशान हैं। गुणवत्ता प्रभावित होने से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद के मानकों में छूट की मांग तेज हो गई है। किसान संगठनों का कहना है कि अगर सरकार ने जल्द राहत नहीं दी तो लाखों किसान आर्थिक संकट में डूब जाएंगे।
कपास की खेती पर मानसून का असर भारी पड़ा है। अगस्त में भारी बारिश और जलभराव ने फसल की गुणवत्ता बिगाड़ दी, जबकि उच्च आर्द्रता ने ‘बोल रॉट’ जैसी बीमारियों को जन्म दिया। दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में कीटों का प्रकोप बढ़ गया है, जहां लंबे समय तक चले मानसून ने कीटों को पनपने का मौका दिया।पंजाब और हरियाणा में बाढ़ ने करीब 30,000 एकड़ कपास की फसल को तबाह कर दिया। किसान नेता हरप्रीत सिंह ने कहा, “हमारी फसल पहले ही मौसम की मार झेल चुकी है। अब सख्त खरीद मानक (एफएक्यू) लागू करने से एमएसपी का फायदा नहीं मिलेगा। सरकार को तुरंत छूट देनी चाहिए।”
सरकार ने जुलाई 2025 में 2025-26 सीजन के लिए कपास का एमएसपी तय किया था। मध्यम रेशा वाली कपास के लिए 7,710 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे रेशा वाली के लिए 8,110 रुपये प्रति क्विंटल का मूल्य निर्धारित किया गया। लेकिन प्रतिकूल मौसम से प्रभावित फसल की गुणवत्ता खराब होने के कारण केंद्रीय कपास निगम (सीसीआई) के एफएक्यू मानकों पर खरीद मुश्किल हो रही है। किसान संगठनों ने वस्त्र मंत्रालय से मांग की है कि बेमौसम बारिश, जलभराव और कीटों से प्रभावित क्षेत्रों में खरीद मानकों में ढील दी जाए।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल कपास का उत्पादन 24-25 मिलियन बेल के आसपास रहने का अनुमान है, जो पिछले साल से थोड़ा अधिक है। लेकिन रकबा कम होने और मौसम की मार से गुणवत्ता प्रभावित हुई है। महाराष्ट्र और गुजरात में रकबा घटा है, जबकि दक्षिण भारत में कीटों का हमला चिंता का विषय बना हुआ है। इसके अलावा, दिसंबर 2025 तक कपास आयात शुल्क माफ करने का फैसला किसानों के लिए और झटका है, क्योंकि इससे घरेलू बाजार में सस्ता आयातित कपास आएगा।
किसान संगठन ‘किसान एकता’ के संयोजक ने बताया, “हम दिल्ली में धरना देने को तैयार हैं। सरकार को कम से कम 10-15 प्रतिशत एफएक्यू मानकों में छूट देनी चाहिए, ताकि किसान एमएसपी का पूरा लाभ ले सकें।” दूसरी ओर, सीसीआई ने ‘कपास किसान’ मोबाइल ऐप लॉन्च किया है, जो किसानों को खरीद प्रक्रिया और बाजार जानकारी उपलब्ध कराएगा। लेकिन किसान इसे अपर्याप्त मान रहे हैं।
विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर स्मार्ट कृषि तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ाया जाए। 2025 तक 30 प्रतिशत से अधिक कपास खेतों में प्रेसिजन एग्रीकल्चर अपनाने का लक्ष्य है, जो उपज बढ़ाने और कीट नियंत्रण में मदद करेगा। फिलहाल, किसानों की मांग पर सरकार का फैसला लंबित है। अगर समय रहते राहत नहीं मिली तो कपास बेल्ट में आंदोलन की आशंका बढ़ गई है।

