सोनू का सरेंडर माओवादी संगठन के लिए वैचारिक और संगठनात्मक दोनों स्तरों पर करारा प्रहार साबित हुआ है। 70 वर्षीय सोनू, जिन्हें भूपति, विवेक और अभय जैसे कई नामों से भी जाना जाता है, ने 14 अक्टूबर को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के समक्ष हथियार डाले। उनके साथ 60 कैडरों ने आत्मसमर्पण किया, जिसमें 54 हथियार जमा हुए। सोनू पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था और वे संगठन के प्रमुख प्रवक्ता व सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के सदस्य थे। महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार, सोनू के भाई किशनजी की 2011 में सुरक्षा बलों के हाथों मौत के बाद से ही वे निराश थे। उनकी पत्नी तारक्का ने पिछले साल ही सरेंडर कर लिया था।
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, सोनू ने अगस्त में एक पत्र जारी कर ‘सशस्त्र संघर्ष को अस्थायी रूप से रोकने’ की बात कही थी, जिसके बाद संगठन में फूट पड़ गई। सितंबर में उन्होंने इस्तीफे का ऐलान किया और शांति वार्ता की पेशकश की। इससे पहले, नॉर्थ बस्तर, गढ़चिरोली और आबूझमाड़ जैसे तीन डिवीजनों ने उनके पक्ष में बयान दिए। लेकिन सेंट्रल कमिटी ने इसे खारिज कर दिया। सोनू के सरेंडर के बाद छत्तीसगढ़ में भी 50 से अधिक कैडरों ने हथियार डाले, जबकि तेलंगाना के कोठागुडेम में टक्कलापल्ली वासुदेव राव उर्फ रूपेश (अशन्ना) ने भी सरेंडर किया। रूपेश आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर हमले के पीछे मास्टरमाइंड थे।
अब देवूजी ने ‘अभय’ नाम से दो प्रेस रिलीज जारी की हैं—एक 16 अक्टूबर को सोनू और रूपेश को नकारने वाली, दूसरी 24 अक्टूबर के बंद का ऐलान करने वाली। इंटेलिजेंस स्रोतों ने पुष्टि की कि ‘अभय’ नाम पहले सोनू इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब देवूजी (62 वर्ष) ने इसे अपना लिया है। तेलंगाना के जगतियाल जिले के रहने वाले देवूजी पहले सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख थे और अब महासचिव हैं। रिलीज में सोनू को ‘काउंटर रेवोल्यूशनरी’ और ‘पेटी-बुर्जुआ’ कहा गया है। इसमें कहा गया, “सोनू 2011 से ही गलत रास्ते पर था। पार्टी ने उन्हें सुधारने की कोशिश की, लेकिन वे जीवन के डर से सरेंडर कर गए। हम लोगों को आश्वासन देते हैं कि सोनू या सतीश (रूपेश) जैसे कोई भी सरेंडर करे, पार्टी हार नहीं मानेगी। हथियार डालना संगठन को कमजोर करता है।”
माओवादी विशेषज्ञों का मानना है कि यह सरेंडर लहर संगठन की वैचारिक कमजोरी को उजागर करती है। 2025 में अब तक 1,850 से अधिक कैडर सरेंडर कर चुके हैं, जबकि 2022-23 में यह संख्या मात्र 813 थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2026 तक नक्सलवाद मुक्त भारत का लक्ष्य रखा है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा, “नक्सलवाद का अंत नजदीक है। बाकी माओवादी या सरेंडर करें या सुरक्षा बलों के निर्णायक कार्रवाई के लिए तैयार रहें।” महाराष्ट्र सीएम फडणवीस ने सोनू के सरेंडर को ‘ऐतिहासिक’ बताते हुए कहा कि यह सुरक्षा, विकास और सेवा का प्रतीक है।
सुरक्षा बलों के दबाव और सरकारी पुनर्वास योजनाओं ने माओवादियों को कमजोर किया है। हाल के एनकाउंटर में संगठन के कई टॉप लीडर मारे गए, जैसे बसवराजू। देवूजी और माडवी हिड़मा जैसे सैन्य कमांडर अब बचे हैं, लेकिन वैचारिक नेतृत्व का अभाव उन्हें मुश्किल में डाल सकता है। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है, जहां यूजर्स सरेंडर को ‘शांति की जीत’ बता रहे हैं।
माओवादी संगठन ने सरेंडर करने वालों को ‘सजा देने’ की धमकी दी है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंतरिक कलह को दबाने की कोशिश मात्र है। देश नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापना की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

