Vrindavan News: विगत दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के आधार पर वृंदावन में स्थित श्री बांके बिहारी जी मंदिर कॉरिडोर के पुनर्निर्माण की अनुमति दी गई थी| जिसको अब 100 के करीब ब्रज वासियों ने सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वरिष्ठ वकील डॉ. ए पी सिंह जी के द्वारा पुनर्विचार याचिका के माध्यम से चुनौती दी है। मथुरा के वृंदावन में स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के आसपास प्रस्तावित कॉरिडोर निर्माण को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्थानीय ब्रजवासियों और गोस्वामी समाज द्वारा इस परियोजना का कड़ा विरोध किया जा रहा है, जिसके चलते यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। ब्रजवासियों का कहना है कि कॉरिडोर निर्माण से उनकी पीढ़ियों पुरानी विरासत और आजीविका खतरे में पड़ जाएगी, साथ ही सैकड़ों परिवार बेघर होने की कगार पर खड़े हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित 500 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला यह कॉरिडोर, मंदिर के आसपास 5 एकड़ भूमि पर बनाया जाना है। सरकार का तर्क है कि मंदिर में बढ़ती श्रद्धालुओं की भीड़ और संकरी गलियों के कारण होने वाली असुविधा को देखते हुए कॉरिडोर बनाना आवश्यक है। खास तौर पर 2022 में मंगला आरती के दौरान हुई भगदड़, जिसमें दो श्रद्धालुओं की मौत और कई के घायल होने की घटना के बाद, सरकार ने इस परियोजना को प्राथमिकता दी। कॉरिडोर में तीन प्रवेश द्वार, आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन की सुविधाएं शामिल करने की योजना है।
हालांकि, स्थानीय लोग और गोस्वामी समाज इस परियोजना को वृंदावन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरा मानते हैं। उनका कहना है कि कॉरिडोर निर्माण के लिए मंदिर के आसपास की 500 साल पुरानी कुंज गलियां, 200 से अधिक मकान और 100 से अधिक दुकानें प्रभावित होंगी, जिससे हजारों परिवारों की आजीविका और आवास पर संकट मंडरा रहा है। स्थानीय दुकानदार सुमित मिश्रा ने कहा, “हमारी पीढ़ियां इन गलियों में ठाकुरजी की सेवा और व्यापार करती आई हैं। कॉरिडोर बनने से हमारी आजीविका और वृंदावन का मूल स्वरूप नष्ट हो जाएगा।”
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कई बार सुनवाई हो चुकी है। 15 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर के 500 करोड़ रुपये के फंड से 5 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने की अनुमति दी, बशर्ते यह जमीन भगवान बांके बिहारी के नाम पर रजिस्टर्ड हो। हालांकि, मंदिर के सेवायतों और गोस्वामी समाज ने इसे अपनी निजी संपत्ति पर सरकारी हस्तक्षेप बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
27 मई 2025 को जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि यह “कानून का पूर्ण ब्रेक डाउन” जैसा है और सरकार से 26 मई को जारी अध्यादेश की कॉपी और परियोजना की पूरी रूपरेखा के साथ हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा, “मंदिर की जमा पूंजी और निजी संपत्ति का इस तरह उपयोग नहीं हो सकता। हमें अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए।” अगली सुनवाई 29 जुलाई 2025 को होनी है।
गोस्वामी समाज ने साफ कहा है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है और वे सरकार के इस अध्यादेश को स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे ठाकुर बांके बिहारी को लेकर वृंदावन से पलायन कर सकते हैं। 19 जुलाई 2025 को प्रदर्शनकारियों ने पुलिस चौकी के सामने 150 फीट चौड़ा और 200 फीट ऊंचा भव्य गेट बनाने का सुझाव दिया, ताकि भीड़ प्रबंधन हो सके और कुंज गलियों को नुकसान न पहुंचे।
ब्रजवासियों का कहना है कि कॉरिडोर निर्माण से उनकी पीढ़ियों पुरानी विरासत और आजीविका छिन जाएगी। कई परिवार, जो 90 से 100 साल से अधिक समय से वृंदावन में रह रहे हैं, बेघर होने के डर से परेशान हैं। स्थानीय निवासियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस मुद्दे पर संवेदनशीलता बरतने की अपील की है। कुछ लोगों ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां भी कई मंदिर और घर उजड़ गए, जिसका असर स्थानीय समुदाय पर पड़ा।
उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि कॉरिडोर निर्माण से श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी और मंदिर की व्यवस्था सुधरेगी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि कॉरिडोर का निर्माण मंदिर ट्रस्ट के माध्यम से होगा और सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। साथ ही, प्रभावित दुकानदारों को मुआवजा और दुकान के बदले दुकान देने का आश्वासन भी दिया गया है।
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, और 29 जुलाई को होने वाली सुनवाई में इस पर नया फैसला आ सकता है। ब्रजवासियों और गोस्वामी समाज का विरोध और सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना के बीच यह विवाद वृंदावन की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। क्या सरकार और स्थानीय समुदाय के बीच कोई बीच का रास्ता निकलेगा, या यह विवाद और गहराएगा? यह देखना बाकी है।
जाने माने वरिष्ठ वकील डॉ. सिंह ने राधा कृष्ण भवन, ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर, श्री धाम वृंदावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश में पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के अनुपालन में जो कार्यवाही की जा रही है, उससे वृंदावन की प्राचीन कुंज गलियों को ध्वस्त कर वहाँ पीढ़ियों से रह रहे ब्रजवासियों को जबरन बेघर किया जा रहा है।
वरिष्ठ वकील डॉ. ए पी सिंह ने कहा कि इस निर्माण कार्य के क्रियान्वयन में संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत नागरिकों को प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और धार्मिक संस्थाओं के स्वशासन के अधिकारों का खुलेआम स्पष्ट रूप से उल्लंघन हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर प्रतिपादित Essential Religious Practices Doctrine के अनुसार, यदि कोई परंपरा किसी धर्म की अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा है, तो उसे छेड़ना संविधान विरोधी गंभीर कृत्य माना जाएगा।
याचिकाकर्ता पंडित सोहन लाल मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि यह वही कुंज गलियाँ हैं जो श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की साक्षी रही हैं।
नारायणी सेना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आचार्य रामानुज मनीष भारद्वाज एवं रुक्मणी रमन गोस्वामी ने अपने संयुक्त संबोधन में कहा कि श्री धाम वृंदावन की यह गलियाँ केवल ईंट-पत्थर की नहीं, अपितु ब्रजधाम की आध्यात्मिक आत्मा हैं, जिनमें पीढ़ियों से रहने वाले ब्रजवासी निस्वार्थ भाव से श्री बांके बिहारी जी की सेवा करते आ रहे हैं।
याचिकाकर्ता राकेश कुमार अग्रवाल ने कहा कि इतिहास साक्षी है कि इन गलियों ने मुग़ल काल में भी मंदिर की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखा था।
इस जनविरोधी कार्यवाही के विरोध में सैकड़ो ब्रजवासियों ने पंडित सोहन लाल मिश्र की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा पुनर्विचार याचिका के माध्यम से खटखटाया है।
आज राधा कृष्ण भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में समस्त ब्रजवासी याचिकाकर्ता, सुप्रीम कोर्ट से गीता चौहान, एड. एचएन सिंह, पंडित प्रमोद दीक्षित, दीपक पाराशर, जिला प्रमुख, सुमित मिश्र, जिला महासचिव, किशोर मिश्र, गौतम जी, नारी शक्ति प्रमुख
शीतल आचार्य, नारी शक्ति महासचिव, डॉ. जमुना शर्मा, धर्मवीर सिंह सहित अनेक धार्मिक और सामाजिक संगठनो के पदाधिकारी भी शामिल हुए।
पत्रकार वार्ता में शामिल हुए अन्य वक्ताओं ने भी संयुक्त रूप से अपनी मांगों में कहा कि निर्माण कार्यों में ब्रज की आत्मा को सुरक्षित रखा जाए। कुंज गलियों का विध्वंस रोका जाए। ब्रजवासियों का पुनर्वास नहीं, उनका मूल अधिकार और संस्कृति बहाल की जाए। संविधान में निहित धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाए।

