नाइजीरिया में ईसाइयों पर हिंसा: ट्रंप का सैन्य हस्तक्षेप का ऐलान, लेकिन विशेषज्ञों ने खारिज किया ‘नरसंहार’ का दावा

Violence against Christians in Nigeria/Abuja/Washington News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाइजीरिया में ईसाइयों के खिलाफ कथित “अस्तित्व का संकट” का हवाला देते हुए देश को अमेरिकी विदेश विभाग की “विशेष चिंता वाले देशों” (कंट्री ऑफ पार्टिकुलर कंसर्न) की सूची में शामिल करने की घोषणा की है। ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट कर कहा, “नाइजीरिया में ईसाई धर्म अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहा है। हजारों ईसाई मारे जा रहे हैं। रेडिकल इस्लामवादी इस नरसंहार के जिम्मेदार हैं।” उन्होंने नाइजीरियाई सरकार को चेतावनी दी कि यदि हिंसा नहीं रुकी, तो अमेरिका सभी सहायता बंद कर देगा और “तेज, क्रूर और मीठे” सैन्य कार्रवाई कर सकता है, जिसमें “इस्लामी आतंकवादियों को पूरी तरह खत्म करना” शामिल है।

ट्रंप का यह बयान अमेरिकी सीनेटर टेड क्रूज के हालिया दावों से प्रेरित लगता है, जिन्होंने नाइजीरिया को “ईसाई नरसंहार” (क्रिश्चियन जेनोसाइड) का दोषी ठहराया था। क्रूज ने सितंबर 2025 में “नाइजीरिया रिलीजियस फ्रीडम अकाउंटेबिलिटी एक्ट” पेश किया, जिसमें नाइजीरियाई अधिकारियों पर इस्लामी जिहादी हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया। ट्रंप ने पेंटागन को “संभावित कार्रवाई” की तैयारी करने का निर्देश भी दिया।

नाइजीरिया की जटिल सुरक्षा स्थिति
नाइजीरिया, जहां 22 करोड़ से अधिक आबादी में ईसाई और मुस्लिम लगभग बराबर हैं, लंबे समय से सुरक्षा संकट से जूझ रहा है। पूर्वोत्तर में बोको हराम और आईएस वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस (ISWAP) जैसे इस्लामी चरमपंथी समूहों ने 2009 से अब तक 40,000 से अधिक लोगों की जान ली है, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम ही हैं। ये समूह “अपर्याप्त मुस्लिम” को भी निशाना बनाते हैं। मध्य क्षेत्र (मिडल बेल्ट) में किसान-चरवाहा संघर्ष प्रमुख समस्या है, जहां मुख्यतः ईसाई किसान और मुस्लिम फुलानी चरवाहों के बीच भूमि, पानी और संसाधनों पर विवाद होता है। जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और गरीबी ने इसे और भयावह बना दिया है।

2024-2025 में दर्ज हमलों के आंकड़े बताते हैं कि हिंसा धार्मिक से अधिक संसाधन-आधारित है। एक्लेड (ACLED) के अनुसार, इस साल 1,923 नागरिक हमलों में से केवल 50 ईसाइयों को धार्मिक आधार पर निशाना बनाए गए। 2025 के पहले 220 दिनों में 7,000 से अधिक ईसाइयों की मौत की रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय ईसाई चिंता समूहों (जैसे ओपन डोर्स) ने जारी की, लेकिन ये आंकड़े फुलानी चरवाहों के हमलों से जुड़े हैं, जो अक्सर जातीय और आर्थिक हैं। बेनुए राज्य में जून 2025 में 200 लोगों का नरसंहार और मई में 36 ईसाइयों की हत्या जैसी घटनाएं हुईं, लेकिन विशेषज्ञ इन्हें “जेनोसाइड” नहीं मानते।

विशेषज्ञों का मत: नरसंहार नहीं, बहुआयामी संकट
विश्लेषकों ने ट्रंप के दावों को सरलीकृत और गलत बताया है। अल जजीरा के अनुसार, “नाइजीरिया में ईसाई नरसंहार जैसी कोई स्थिति नहीं है।” मानवाधिकार वकील बुलामा बुकर्ती ने कहा, “सभी आंकड़े दिखाते हैं कि मुस्लिम और ईसाई दोनों हिंसा के शिकार हैं।” संयुक्त राष्ट्र की जेनोसाइड परिभाषा—जिसमें किसी धार्मिक समूह को “पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट करने का इरादा” शामिल है—के अनुसार, नाइजीरिया की हिंसा इसमें फिट नहीं बैठती। यह किसान-चरवाहा संघर्ष, जातीय टकराव और चरमपंथी हमलों का मिश्रण है।

नाइजीरियाई सरकार ने ट्रंप के आरोपों को खारिज किया। राष्ट्रपति बोलाह अहमद तिनुबू (जो खुद मुस्लिम हैं लेकिन ईसाई पत्नी रखते हैं) ने कहा, “नाइजीरिया धार्मिक असहिष्णुता का प्रतिनिधित्व नहीं करता। हम सभी धर्मों की रक्षा के लिए प्रयासरत हैं।” सूचना मंत्री इद्रीस मुहम्मद ने जोर दिया कि सरकार किसी धर्म या जनजाति के खिलाफ भेदभाव नहीं करती।

हालांकि, आलोचक मानते हैं कि सरकार की प्रतिक्रिया कमजोर है—10,000 से अधिक मौतें और 30 लाख विस्थापित हुए हैं।
ईसाई संगठन जैसे कैन (क्रिश्चियन एसोसिएशन ऑफ नाइजीरिया) के पूर्व चेयरमैन जोसेफ हायाब ने कहा, “ईसाइयों पर हमले हो रहे हैं, लेकिन यह नरसंहार नहीं। सरकार को गांवों की सुरक्षा मजबूत करनी चाहिए।” कुछ ईसाई नेता, जैसे पादरी एजेकिएल दाचोमो, इसे “ईसाई नरसंहार” कहते हैं, लेकिन अधिकांश विश्लेषक इसे अतिशयोक्ति मानते हैं।

सोशल मीडिया पर बहस
एक्स (पूर्व ट्विटर) पर बहस तेज है। कुछ यूजर्स ट्रंप के हस्तक्षेप का समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य इसे “सोवरेन्टी का उल्लंघन” बता रहे हैं। एक पोस्ट में कहा गया, “ट्रंप अमेरिकी हितों के लिए संसाधनों पर नजर रख रहा है, न कि ईसाइयों की रक्षा।” दूसरी ओर, ईसाई कार्यकर्ता चुप्पी तोड़ने के लिए ट्रंप की तारीफ कर रहे हैं।

आगे क्या?
ट्रंप का कदम नाइजीरिया-अमेरिका संबंधों को तनावपूर्ण बना सकता है। नाइजीरिया ने अमेरिकी सहायता का स्वागत किया, लेकिन सैन्य हस्तक्षेप को “संप्रभुता का उल्लंघन” कहा। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सहायता, खुफिया जानकारी और आर्थिक दबाव से बेहतर मदद हो सकती है। नाइजीरिया को आंतरिक सुधार—जैसे सुरक्षा बलों को मजबूत करना और संसाधन विवाद सुलझाना—की जरूरत है।

यह संकट न केवल धार्मिक, बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय है। यदि अनदेखा रहा, तो यह और गहरा सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तथ्यों पर आधारित सहयोग बढ़ाना चाहिए, न कि राजनीतिक बयानबाजी पर।

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