नेताओं की जीत, बिहारी प्रवासियों को हार

Bihar Election News: “मैं बिहार हूँ, नेता की जीत, मेरी सिर्फ़ हार हुई।” यह व्यंग्यात्मक पंक्ति आज बिहार की राजनीति में तूफान ला रही है। विधानसभा चुनाव के पहले चरण में लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार ने धूमधाम से मतदान किया, लेकिन प्रवासी बिहारियों की आवाज़ दब सी गई है। परिवार की एकजुटता तो दिखी, मगर बिहार के करोड़ों बेटों की बेरोज़गारी और पलायन का दर्द कहीं नज़र नहीं आया। क्या यह चुनाव सिर्फ़ सियासी घरानों की जंग बनकर रह गया है?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का आगाज़ गुरुवार को धूमधाम से हुआ। पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर वोटिंग चली, जिसमें कुल 3.75 करोड़ मतदाताओं ने हिस्सा लिया। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने परिवार संग पटना के वेटरनरी कॉलेज पोलिंग बूथ पर वोट डाला। उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, उनकी पत्नी राजश्री यादव, बेटी रोहिणी आचार्य और मीसा भारती मौजूद रहीं। लालू ने व्हीलचेयर पर पहुंचकर वोट डाला और बोले, “बदलाव होगा।”

तेजस्वी ने कहा, “बदलाव की लहर है, जनता रोज़गार और विकास पर वोट दे रही है।” राबड़ी देवी ने ममता का पुट देते हुए दोनों बेटों—तेजस्वी और तेज प्रताप—को आशीर्वाद दिया। तेज प्रताप ने महुआ सीट से नामांकन भरा है, जबकि तेजस्वी राघोपुर से मैदान में हैं।

परिवार की यह तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। राजद समर्थकों ने इसे ‘परिवारवाद की मिसाल’ बताया, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे ‘वोटबैंक की राजनीति’ करार दिया। भाजपा नेता अमित मालवीय ने तंज कसा, “लालू का जंगलराज आज भी गूंज रहा है। गरीबों की ज़मीन हड़पने वाले परिवार बिहार का भला कैसे करेंगे?” वहीं, सोशल मीडिया पर एक यूज़र ने लिखा, “लालू परिवार एकजुट, लेकिन बिहारी प्रवासी बिखरे हुए।

करोड़ों बेटे दिल्ली-मुंबई में मजदूरी कर रहे, और यहां वोट सिर्फ़ परिवार को!” यह पोस्ट हज़ारों लाइक्स बटोर चुकी है।
विवाद की जड़ है लालू परिवार का ‘लैंड फॉर जॉब’ घोटाला।

कोर्ट ने हाल ही में लालू, राबड़ी और तेजस्वी के खिलाफ़ आरोप तय किए। मामला 2004-09 का है, जब नौकरियों के बदले गरीबों की ज़मीनें परिवार के नाम कर ली गईं। प्रवासी बिहारी युवाओं का कहना है, “हम नौकरी के लिए घर छोड़ते हैं, और ये लोग नौकरी के नाम पर ज़मीन लूटते हैं। हमारा वोट तो गया, लेकिन हमारी आवाज़ कहां?” एक सर्वे में 13% यादव वोटरों ने भी एनडीए को सपोर्ट करने की बात कही। तेज प्रताप को पार्टी से ‘बाहर’ करने की अफ़वाहें भी हैं, जो परिवार में दरार की ओर इशारा करती हैं।

चुनावी समर में महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) और एनडीए (बीजेपी-जदयू) के बीच कांटे की टक्कर है। पहले चरण में 1314 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसमें खेसारी लाल, मैथिली ठाकुर जैसे सितारे भी शामिल। मतगणना 14 नवंबर को होगी।

लेकिन सवाल वही है—क्या बिहार का विकास परिवारवाद से ऊपर उठेगा? प्रवासियों की पुकार है: “हमारी जीत कब होगी?”

“मैं बिहार हूँ, नेता की जीत, मेरी सिर्फ़ हार हुई।” यह व्यंग्यात्मक पंक्ति आज बिहार की राजनीति में तूफान ला रही है। विधानसभा चुनाव के पहले चरण में लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार ने धूमधाम से मतदान किया, लेकिन प्रवासी बिहारियों की आवाज़ दब सी गई है। परिवार की एकजुटता तो दिखी, मगर बिहार के करोड़ों बेटों की बेरोज़गारी और पलायन का दर्द कहीं नज़र नहीं आया। क्या यह चुनाव सिर्फ़ सियासी घरानों की जंग बनकर रह गया है?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का आगाज़ गुरुवार को धूमधाम से हुआ। पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर वोटिंग चली, जिसमें कुल 3.75 करोड़ मतदाताओं ने हिस्सा लिया। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने परिवार संग पटना के वेटरनरी कॉलेज पोलिंग बूथ पर वोट डाला। उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, उनकी पत्नी राजश्री यादव, बेटी रोहिणी आचार्य और मीसा भारती मौजूद रहीं। लालू ने व्हीलचेयर पर पहुंचकर वोट डाला और बोले, “बदलाव होगा।”

तेजस्वी ने कहा, “बदलाव की लहर है, जनता रोज़गार और विकास पर वोट दे रही है।” राबड़ी देवी ने ममता का पुट देते हुए दोनों बेटों—तेजस्वी और तेज प्रताप—को आशीर्वाद दिया। तेज प्रताप ने महुआ सीट से नामांकन भरा है, जबकि तेजस्वी राघोपुर से मैदान में हैं।

परिवार की यह तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। राजद समर्थकों ने इसे ‘परिवारवाद की मिसाल’ बताया, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे ‘वोटबैंक की राजनीति’ करार दिया। भाजपा नेता अमित मालवीय ने तंज कसा, “लालू का जंगलराज आज भी गूंज रहा है। गरीबों की ज़मीन हड़पने वाले परिवार बिहार का भला कैसे करेंगे?” वहीं, सोशल मीडिया पर एक यूज़र ने लिखा, “लालू परिवार एकजुट, लेकिन बिहारी प्रवासी बिखरे हुए।

करोड़ों बेटे दिल्ली-मुंबई में मजदूरी कर रहे, और यहां वोट सिर्फ़ परिवार को!” यह पोस्ट हज़ारों लाइक्स बटोर चुकी है।
विवाद की जड़ है लालू परिवार का ‘लैंड फॉर जॉब’ घोटाला।

कोर्ट ने हाल ही में लालू, राबड़ी और तेजस्वी के खिलाफ़ आरोप तय किए। मामला 2004-09 का है, जब नौकरियों के बदले गरीबों की ज़मीनें परिवार के नाम कर ली गईं। प्रवासी बिहारी युवाओं का कहना है, “हम नौकरी के लिए घर छोड़ते हैं, और ये लोग नौकरी के नाम पर ज़मीन लूटते हैं। हमारा वोट तो गया, लेकिन हमारी आवाज़ कहां?” एक सर्वे में 13% यादव वोटरों ने भी एनडीए को सपोर्ट करने की बात कही। तेज प्रताप को पार्टी से ‘बाहर’ करने की अफ़वाहें भी हैं, जो परिवार में दरार की ओर इशारा करती हैं।

चुनावी समर में महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) और एनडीए (बीजेपी-जदयू) के बीच कांटे की टक्कर है। पहले चरण में 1314 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसमें खेसारी लाल, मैथिली ठाकुर जैसे सितारे भी शामिल। मतगणना 14 नवंबर को होगी।

लेकिन सवाल वही है—क्या बिहार का विकास परिवारवाद से ऊपर उठेगा? प्रवासियों की पुकार है: “हमारी जीत कब होगी?”

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