ट्रंप ने यह बयान पिछले सप्ताह अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के बाद दिया, जिसमें उन्होंने रक्षा विभाग को “परमाणु हथियारों का परीक्षण तुरंत शुरू करने” का निर्देश दिया था। यह घोषणा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ दक्षिण कोरिया में उनकी बैठक से ठीक पहले की गई थी। ट्रंप ने तर्क दिया कि अमेरिकी हथियार प्रणालियों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण जरूरी है, खासकर रूस के हालिया उन्नत परमाणु-सक्षम सिस्टम्स जैसे पोजीडॉन अंडरवाटर ड्रोन के परीक्षण के बाद। उन्होंने दावा किया कि अमेरिका के पास “दुनिया के सबसे अधिक परमाणु हथियार” हैं, जो “दुनिया को 150 बार उड़ा सकते हैं।”
हालांकि, अमेरिकी ऊर्जा सचिव क्रिस राइट ने सोमवार को फॉक्स न्यूज पर स्पष्ट किया कि वर्तमान चर्चा “गैर-क्रिटिकल सिस्टम टेस्ट” से संबंधित है, न कि पूर्ण परमाणु विस्फोटों से। उन्होंने कहा, “ये परीक्षण परमाणु विस्फोट नहीं हैं, बल्कि हथियार के अन्य हिस्सों की जांच है ताकि वे सही ज्यामिति दें और विस्फोट की सेटिंग करें।” राइट ने जोर दिया कि अमेरिका के पास कंप्यूटर सिमुलेशन और सबक्रिटिकल टेस्टिंग से अपनी आर्सेनल की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने की क्षमता है।
अमेरिका ने आखिरी परमाणु विस्फोट 1992 में किया था, और तब से वैकल्पिक तरीकों का सहारा लिया जा रहा है।
ट्रंप के दावे पर पाकिस्तान की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। पूर्व पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “ट्रंप का पाकिस्तान के परीक्षण का जिक्र उनके खुद के परीक्षण फिर शुरू करने की इच्छा से जुड़ा लगता है। ये सब कुछ कहना-करना लगता है।” कई भारतीय यूजर्स ने इसे भारत के लिए चेतावनी बताया, जबकि कुछ ने भारत को भी परीक्षण फिर शुरू करने की मांग की। एक्स पर #TrumpNuclearClaim ट्रेंड कर रहा है, जहां यूजर्स वैश्विक हथियारों की होड़ पर चिंता जता रहे हैं।
परमाणु विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप का दावा बिना सबूत के लगता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 1996 के व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) के बाद केवल उत्तर कोरिया ने 2017 में परीक्षण किया। रूस (1990), चीन (1996) और पाकिस्तान (1998) ने तब से कोई आधिकारिक विस्फोट नहीं किया। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, ट्रंप शायद रूस के हालिया डिलीवरी सिस्टम्स के परीक्षण को परमाणु विस्फोट से जोड़ रहे हैं। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स के अनुसार, रूस के पास सबसे बड़ा परमाणु भंडार है, उसके बाद अमेरिका।
भारत के संदर्भ में यह दावा चिंताजनक है। भारत ने 1998 के पोखरण-II परीक्षण के बाद कोई आधिकारिक टेस्ट नहीं किया, लेकिन ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति पर कायम है। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के कथित परीक्षण से दक्षिण एशिया में हथियारों की दौड़ तेज हो सकती है, जो भारत-पाकिस्तान संबंधों को और जटिल बना सकता है। ट्रंप ने इंटरव्यू में भारत-पाकिस्तान के मई 2025 के सैन्य टकराव का भी जिक्र किया, दावा किया कि उन्होंने व्यापार प्रतिबंधों से “परमाणु युद्ध” टाला।
ट्रंप प्रशासन का यह कदम न्यू स्टार्ट संधि के समाप्त होने से 100 दिन पहले आया है, जो अमेरिका-रूस के बीच आखिरी प्रमुख परमाणु नियंत्रण समझौता है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इससे वैश्विक अस्थिरता बढ़ सकती है। फिलहाल, अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियां ट्रंप के दावों की जांच कर रही हैं।

