ट्रम्प प्रशासन की फार्मास्यूटिकल आयात, पर जांच के नतीजे अभी लंबित, क्या होगा भारत के दवा निर्यात पर संभावित असर

US Pharmaceutical News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन द्वारा फार्मास्यूटिकल आयात और सेक्टर-विशिष्ट टैरिफ पर शुरू की गई जांच के परिणामों की घोषणा अभी कुछ हफ्तों तक टल सकती है। शुरुआती वादों के उलट, ट्रम्प प्रशासन का ध्यान अन्य मुद्दों पर केंद्रित होने के कारण इस घोषणा में देरी हो रही है। यह जांच अमेरिका में दवा आयात की राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए टैरिफ नीतियों का मूल्यांकन कर रही है। इस बीच, भारत, जो अमेरिका को सस्ती जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, इस नीति से संभावित रूप से प्रभावित हो सकता है।
जांच का उद्देश्य और देरी
ट्रम्प प्रशासन ने अप्रैल 2025 में धारा 232 के तहत फार्मास्यूटिकल आयात पर जांच शुरू की थी, जिसका मकसद यह समझना था कि विदेशी दवाओं पर निर्भरता अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है। इस जांच के परिणामों को जल्द घोषित करने की बात कही गई थी, लेकिन हाल के अपडेट्स के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन अन्य प्राथमिकताओं, जैसे व्यापार समझौते और अन्य सेक्टरों पर टैरिफ, पर अधिक ध्यान दे रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि परिणामों की घोषणा सितंबर 2025 तक हो सकती है, क्योंकि प्रशासन अभी सेमीकंडक्टर और अन्य उद्योगों पर टैरिफ नीतियों को अंतिम रूप दे रहा है।
ट्रम्प ने पहले संकेत दिया था कि फार्मास्यूटिकल आयात पर शुरुआती तौर पर 25% टैरिफ लगाया जा सकता है, जिसे 18 महीनों में 150% और बाद में 250% तक बढ़ाया जा सकता है। उनका दावा है कि यह कदम अमेरिका में दवा उत्पादन को बढ़ावा देगा और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगा। हालांकि, इस नीति की घोषणा में देरी ने भारतीय दवा कंपनियों में अनिश्चितता बढ़ा दी है।
भारत के फार्मास्यूटिकल निर्यात पर प्रभाव
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जेनेरिक दवा उत्पादक है और अमेरिका इसका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। वित्त वर्ष 2024 में, भारत ने अमेरिका को 8.73 बिलियन डॉलर की दवाएं निर्यात कीं, जो इसके कुल फार्मास्यूटिकल निर्यात का लगभग 31% है। अमेरिका में उपयोग होने वाली जेनेरिक दवाओं का करीब 40-47% भारत से आता है, जिससे अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली को सस्ती दवाएं मिलती हैं।
यदि प्रस्तावित टैरिफ लागू होते हैं, तो इसके कई संभावित परिणाम हो सकते हैं:
1. निर्यात में कमी: 25% से शुरू होने वाले टैरिफ से भारतीय दवाओं की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है, जिससे निर्यात में 5-10% की गिरावट संभव है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, 250% टैरिफ लागू होने पर भारत के दवा निर्यात में 200 मिलियन डॉलर तक की कमी आ सकती है।
2. लागत में वृद्धि: भारतीय दवा कंपनियों को या तो बढ़ी हुई टैरिफ लागत को खुद वहन करना होगा, जिससे उनका लाभ मार्जिन कम होगा, या इसे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर डालना होगा, जिससे दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। सन फार्मा के एमडी दिलीप सांघवी ने पहले ही संकेत दिया है कि अतिरिक्त लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डाला जा सकता है।
3. अमेरिका में उत्पादन का दबाव: ट्रम्प का लक्ष्य दवा उत्पादन को अमेरिका में स्थानांतरित करना है। हालांकि, भारत की तुलना में अमेरिका में उत्पादन लागत 3-4 गुना अधिक है, और नई सुविधाएं शुरू करने में 5-10 साल लग सकते हैं। इससे भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिका में निवेश करना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
4. वैकल्पिक बाजारों की खोज: टैरिफ के दबाव में भारतीय कंपनियां यूरोप, अफ्रीका और अन्य एशियाई बाजारों की ओर रुख कर सकती हैं, जहां सस्ती जेनेरिक दवाओं की मांग अधिक है।
भारतीय सरकार और उद्योग की प्रतिक्रिया
भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने संभावित टैरिफ जोखिमों को देखते हुए घरेलू फार्मा निर्यातकों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। सरकार स्थिति का बारीकी से आकलन कर रही है और वैकल्पिक व्यापार रणनीतियों पर विचार कर रही है, जैसे अन्य बाजारों में निर्यात बढ़ाना और जवाबी टैरिफ पर विचार। हालांकि, पूर्व राजनयिक जयंत दासगुप्ता ने चेतावनी दी है कि जवाबी टैरिफ भारत के लिए ही नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि भारत अमेरिका से कई आवश्यक वस्तुओं का आयात करता है।
भारतीय दवा कंपनियों, जैसे अरबिंदो फार्मा, लॉरस लैब्स, और ल्यूपिन, के शेयरों में हाल ही में 8% तक की गिरावट देखी गई, जो टैरिफ की आशंका से उत्पन्न अनिश्चितता को दर्शाता है। उद्योग विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को दीर्घकालिक रणनीति अपनानी होगी, जिसमें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को मजबूत करना और अन्य बाजारों में विस्तार करना शामिल है।
अमेरिका पर भी पड़ सकता है असर
टैरिफ का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिकी उपभोक्ताओं को सस्ती जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता कम होने से दवा की कीमतें 2-3 गुना बढ़ सकती हैं, जिसका सबसे अधिक असर अस्पतालों और वरिष्ठ नागरिकों पर पड़ेगा। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने अमेरिका को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवाएं आपूर्ति की थीं, और अब टैरिफ की धमकी को “एहसान का बदला” के रूप में देखा जा रहा है।
निष्कर्ष
ट्रम्प प्रशासन की फार्मास्यूटिकल आयात पर जांच के परिणाम अभी घोषित नहीं हुए हैं, लेकिन प्रस्तावित टैरिफ भारत के दवा उद्योग के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकते हैं। भारत को इस चुनौती से निपटने के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश, घरेलू उत्पादन क्षमता को मजबूत करना, और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। दूसरी ओर, अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी सस्ती दवाओं की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जो दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव को और बढ़ा सकता है।

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