बुधवार को चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने केंद्र सरकार की ओर से दी गई इस आश्वासन को अपने आदेश में दर्ज किया। सरकार ने कोर्ट को बताया कि महिला की मेडिकल स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसे मुफ्त इलाज और सभी जरूरी सुविधाएं दी जाएंगी। साथ ही बच्चे की दिन-प्रतिदिन की देखभाल का भी पूरा इंतजाम किया जाएगा।
यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट के सितंबर महीने के उस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) पर सुनवाई के दौरान सामने आया था, जिसमें हाईकोर्ट ने महिला और बच्चे को वापस लाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट का यह आदेश महिला के पिता भोदू शेख की याचिका पर आया था।
याचिका के अनुसार, भोदू शेख पश्चिम बंगाल के स्थायी निवासी हैं और उनका परिवार काम की तलाश में दिल्ली आया था। गृह मंत्रालय के 2 मई के नोटिफिकेशन के बाद चले पहचान सत्यापन अभियान में सोनाली खातून, उनके पति और 8 साल के बेटे को 26 जून को हिरासत में लेकर बांग्लादेश डिपोर्ट कर दिया गया था। याचिकाकर्ता का दावा है कि उनकी बेटी और दामाद जन्म से भारतीय नागरिक हैं, जबकि केंद्र सरकार का कहना था कि उन्होंने भारतीय नागरिकता का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं दिया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि महिला और बच्चे को आधिकारिक चैनल के जरिए सिर्फ और सिर्फ मानवीय आधार पर वापस लाया जा रहा है। यह कदम निर्वासन आदेश की वैधता पर सरकार के पक्ष को किसी भी तरह प्रभावित नहीं करेगा और इसका गलत नजीर के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि भोदू शेख की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश का पालन न करने पर अवमानना याचिका दायर की गई है, लेकिन चूंकि अब मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है, इसलिए अवमानना की चिंता करने की जरूरत नहीं है।
जस्टिस बागची ने मौखिक रूप से केंद्र सरकार से सुझाव दिया कि भोदू शेख की भारतीय नागरिकता की जांच की जाए। अगर वे भारतीय नागरिक पाए जाते हैं तो खून के रिश्ते के आधार पर उनकी बेटी और पोता भी स्वतः भारतीय नागरिक माने जाएंगे।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर 2025 को होगी।

