एनसीपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव तस्नीम जारा ने 27 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया और ढाका-9 सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि जमात से गठबंधन पार्टी की सुधारवादी छवि और जुलाई विद्रोह की भावना से समझौता है।
एक दिन बाद संयुक्त संयोजक तजनुवा जाबीन ने भी इस्तीफा दे दिया। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में इसे “सावधानीपूर्वक इंजीनियर की गई” राजनीतिक चाल बताया, जिसने पार्टी के मूल्यों को खोखला कर दिया। जाबीन ने महिलाओं को चुनाव लड़ने के अवसर से वंचित करने की साजिश का भी संकेत दिया और चुनाव से पूरी तरह बाहर होने का फैसला किया।
एनसीपी की वरिष्ठ संयुक्त संयोजक सामंथा शर्मिन ने इस्तीफा नहीं दिया, लेकिन पार्टी पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि जमात के नेतृत्व वाले गठबंधन से पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी और यह मूल राजनीतिक उद्देश्य से भटकाव है। इसी तरह नुसरत तबस्सुम, मोनिरा शर्मिन और अन्य महिला नेताओं ने भी जमात या धर्म-आधारित दलों से गठबंधन का विरोध किया है।
विरोध की मुख्य वजह जमात-ए-इस्लामी का इतिहास है। 1971 के मुक्ति संग्राम में जमात ने पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था और युद्ध अपराधों में शामिल होने का आरोप है। कई जमात नेता शेख हसीना के शासन में युद्ध अपराधों के लिए सजा पा चुके हैं। महिला नेता इसे एनसीपी के लोकतांत्रिक और प्रगतिशील मूल्यों के खिलाफ मान रही हैं। जमात की महिलाओं संबंधी नीतियां भी आलोचना का विषय हैं – पार्टी महिलाओं की मुख्य भूमिका घरेलू मानती है और शरिया आधारित विचारधारा रखती है।
एनसीपी संयोजक नाहिद इस्लाम ने गठबंधन को “रणनीतिक, वैचारिक नहीं” बताया है। उनका कहना है कि पार्टी पहले सभी 300 सीटों पर अकेले लड़ने की तैयारी कर रही थी, लेकिन चुनावी जरूरतों के कारण यह कदम उठाया गया।
यह विवाद 2024 के छात्र आंदोलन से उभरी एनसीपी के लिए बड़ा झटका है, जिसने शेख हसीना सरकार को गिराया था। कई विश्लेषक मानते हैं कि जमात से गठबंधन पार्टी की युवा और प्रगतिशील छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। फरवरी 2026 के चुनाव से पहले एनसीपी में यह आंतरिक कलह और गहरा हो सकता है।

